आख़िर कब थमेगा मासूमों से बलात्कार का सिलसिला?

हैरानी की बात तो यह है कि अभी कुछ दिन पहले ही पॉक्सो एक्ट लागू हुआ है और उसके बाद इन घटनाओं में जो इज़ाफ़ा हुआ है वह चौंकाने वाला है। क्या क़ानून का डर नहीं रहा अब बलात्कारियों में?

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आख़िर कब थमेगा मासूमों से बलात्कार का सिलसिला?

बच्चियाँ इतनीं छोटी की उन्हें ये तक पता नहीं होता कि उनके साथ आख़िर हो क्या रहा है। जो हो रहा है उसे पूरा हो जाने से पहले ही उनका बदन ठंडा पर जाता होगा। शायद बीच में ही दम तोड़ देती होंगी। आखिर बिसात ही क्या होती है दो साल की बच्ची की या चार साल की बच्ची की। वो सुन्न पर जाती होंगी। दर्द से छोड़ जाती होंगी शरीर को बलात्कारी के लिए। यही होता होगा न। इसे लिखते वक़्त नम पड़ रही हैं मेरी अंगुलियां। शायद लड़की हूँ इसलिए।


सभी बच्चियों की उम्र 12 बरस से कम थी

तय कर लिया था कि अब बलात्कार पर नहीं लिखूंगी। लिख भी नहीं रही थी काफ़ी दिनों से, मगर सिर्फ पिछले दो सप्ताह में 2 साल से ले कर 10 साल की बच्चियों के साथ हुई बलात्कार की घटनाओं ने झकझोड़ कर रख दिया है। अभी तो कठुआ कांड के दोषियों को सज़ा भी नहीं मिली थी कि पहले गीता और अब मंदसौर की घटना ने तोड़ दिया धैर्य की सीमा को। मंदसौर वाली घटना में जब दोषियों को पकड़ा जा रहा था और टीवी चैनलों पर बहस जारी थी बलात्कार और बलात्कारी के दिमाग़ी स्थिति को ले कर, तभी दिल्ली के बॉर्डर पर माँ-बाप के बीच में सो रही चार साल की बच्ची को कोई उठा कर ले जाता है और बलात्कार करने के बाद उसके योनि में शीशे की बोतल घुसेड़ जान से मार कर सड़क पर फेंक जाता है।

उसी के अगले दिन हरियाणा में एक आदमी सात साल की बच्ची का बलात्कार करता है। बलात्कार के बाद उसे ख़ून में लथपत मरने के लिए छोड़ कर बगल में बैठ कर शराब पीता है। तो देश के किसी और कोने में उसी दिन दो साल की बच्ची को दरवाजे पर से पड़ोस के लड़के उठा कर ले जाते हैं और बलात्कार करने के बाद जान से मार कर नाली में फेंक देते हैं। और भी दसियों ऐसी घटनाएं सिर्फ़ बीते दो सप्ताह में घटी है। किनका ज़िक्र करूँ और किन्हें छोडूं?

अब कानून डर नहीं पैदा करता

इन सारे बलात्कार के मामलों में अगर एक चीज़ कॉमन है तो वो है इन सभी बच्चियों का 12 साल से कम उम्र का होना। हैरानी की बात तो यह है कि अभी कुछ दिन पहले ही पॉक्सो एक्ट लागू हुआ है और उसके बाद इन घटनाओं में जो इज़ाफ़ा हुआ है वह चौंकाने वाला है। क्या क़ानून का डर नहीं रहा अब बलात्कारियों में? कौन दोषी है इन बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं के लिए? आख़िर क्या चलता रहता है बलात्कारी के दिमाग में? इन सारे सवालों के जवाब हमें ढूंढने ही होंगे? सिर्फ़ बहस कर के और न्यूज़ में दिखा देने से कुछ भी नहीं बदलने वाला।

सबसे पहले एनसीआरबी के द्वारा 2015 और 2016 के ज़ारी आंकड़ों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि साल दर साल ये आंकड़ें बढ़े ही हैं। जहाँ 2015 में बच्चों पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार के 10854 मामले सामने आए थे वहीं 2016 में ये बढ़ कर 19765 हो चुका है। 2017 के आंकड़े आने बाकी हैं ज़ाहिर सी बात है कि ये और बढ़े ही होंगे घटने का तो सवाल ही नहीं है।

कुंठा है बड़ी वजह


तो आख़िर क्या वजह है जो पॉक्सो जैसे कानून के पास हो जाने के बाद भी नहीं थम रहा है बलात्कारों का सिलसिला?

मनोविशेषज्ञों की मानें तो बच्चों के साथ जो लोग बलात्कार करते हैं उनमें से अधिकांश लोग ऐसे होते हैं, जिनकी परवरिश सही से नहीं हुई है। जिनका लालन-पालन बहुत कठोर अनुशासन में हुआ हो या फिर जिनके साथ ख़ुद बचपन में ऐसा हुआ हो। ऐसे लोगों में बच्चों के प्रति यौन रुझान कम ही होता है। वे प्रतिशोध की भावना से उनका बलात्कार करते हैं। वहीं कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि वैसे लोग जो अपने उम्र के साथी के साथ न तो ढंग के शारीरिक रिश्ते बना पाते हैं और न ही मानसिक ऐसे लोग अपनी कुंठा को मिटाने के लिए बच्चों के साथ ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देते हैं। यहां ये अपने पुरुषत्व को बलात्कार के जरिए साबित करते हैं।

अक्सर अपराधी जान-पहचान वाले ही होते हैं

वैसे एनसीआरबी का एक और तथ्य चौंकाने वाला है, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। अक्सर ये बलात्कारी जान-पहचान वाले होते हैं, जिनका घर में आना-जाना रहता है, जो बच्चों से काफी घुले-मिले होते हैं। ये पहले खेल-खेल में बच्चों को ग़लत तरीक़े से छूते हैं। मासूमों को इतनी समझ कहां होती है कि वे समझ सकें गुड-टच और बैड टच को। फिर नहीं पकड़े जाने पर इनका हौसला बढ़ता है और धीरे-धीरे इनकी हरकतें भी। ऐसे में जब उनका हौसला अपने चरम पर होता है तब वे बलात्कार की इस घिनौनी घटना को अंजाम तक पहुंचा देते हैं।

सिर्फ़ क़ानून बना देने से और सरकार को कोसने से ये घटनाएं नहीं थमने वालीं, इसके लिए हमारे समाज को सेंसेटाइज होने की दरकार है। जब तक हम सेक्स को टैबू मान कर बंद कमरों तक सीमित रखेंगे तब तक यह घिनौना खेल चलता रहेगा। बलात्कार हर बार सेक्स के लिए किया जाता है ये गलत धारणा है। बच्चों के साथ हुई अधिकांश घटनाएं किसी न किसी कुंठा का नतीजा हैं। जब तक हम लड़कियों को दुपट्टा संभाल कर चलना सिखाते रहेंगे। सेक्स को शादी के बाद होने वाली रस्म बताते रहेंगे तब तक ये सब बदस्तूर जारी रहेगा।


सस्ते स्मार्टफोन और सस्ते इंटरनेट की भूमिका

और हाँ, एक सबसे अहम चीज़ तो छूट ही रहा था, स्मार्ट फोन और सस्ते इंटरनेट के पैक। जिसके बदौलत लोग पॉर्न को जेब में ले कर घूमने लगे हैं। कई बलात्कार की घटनाएं पॉर्न क्लिप को देखने के बाद बढ़ी उत्तेजना को बुझाने भर के लिए किया जाता है। गुजरात का वो केस तो याद ही होगा जिसमें एक बेटे ने अपनी सगी माँ और बहन का बलात्कार किया था। पकड़े जाने पर उसने कबूला था कि वो घर पर बैठ कर पॉर्न देखता था और एक दिन जब उससे रहा नहीं गया तो पहले बहन और बाद में माँ का बलात्कार कर डाला।

जरूरत है देशव्यापी काउंसलिंग की

किसी एक चीज़ को हम बलात्कार का ज़िम्मेदार नहीं मान सकते। इसके पीछे कई कारण हैं जिस पर गहन चिंतन की जरूरत है। सख़्त कानून के साथ देश के लड़कों को लड़कियों के प्रति सामान्य व्यवहार की शिक्षा स्कूली स्तर से ही देनी होगी। बज़ाय लड़कियों को यह सिखाने की कि उन्हें कैसे रहना है और कैसे कपड़े पहनने हैं लड़कों को यह बताना चाहिए कि उन्हें किस तरह से लड़कियों के साथ पेश आना चाहिए। सेक्स एजुकेशन एक बड़ा रोल निभा सकता है अगर उसे ढंग से अपनाया जाए। देश के हर कोने में काउंसलिंग सेंटर खोलें जाएं, जहां युवकों से ले कर प्रौढ़ लोगों को यौन शिक्षा के बारे में बताया जाए। और आखिर में बलात्कार को इज़्ज़त लूटने से जोड़ कर देखा जाना बंद किया होना चाहिए। वरना वह दिन दूर नहीं जब 'थॉमसन रॉयटर्स' की रिपोर्ट सच साबित हो जाएगी और समूचे विश्व में भारत सच में महिलाओं के लिए नंबर वन असुरक्षित देश बन जाएगा।

( लेखिका अनु रॉय स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं)

         

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