वृद्ध जनों के साथ, कितना न्याय कर पा रहा है समाज !

20 फरवरी-'विश्व सामाजिक न्याय दिवस' के रूप जाना जाता है; देश में आज 250 जिलों में केवल 400 वृद्धाश्रम संचालित हैं, जबकि लगभग 4000 वृद्धाश्रमों की तुरंत ज़रूरत है।

Dr Rajaram TripathiDr Rajaram Tripathi   19 Feb 2024 11:20 AM GMT

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वृद्ध जनों के साथ, कितना न्याय कर पा रहा है समाज !

पिछले दिनों हमने एक ख़बर पढ़ी कि अपने युवावस्था में रजत पट पर राज करने वाली देश की एक विख्यात अभिनेत्री अपने जीवन के अंतिम चरण में अपने कमरे में मृत पाई गईं। दुखद पहलू यह था कि उनकी मृत्यु का पता तब चला जब उनकी लाश बुरी तरह से सड़ गई और बदबू आस पड़ोस में फैल गई। अभिनेत्री काफी बूढी हो गई थीं और अकेले रहती थीं।

ऐसी ही एक और दु:खद ख़बर आई जिसमें एक वृद्ध दंपत्ति देश की राजधानी में दम तोड़ गए उनकी मृत्यु का पता भी पड़ोसियों को उनकी लाशें सड़ने की बदबू फैलने के बाद चला। दु:खद पहलू यह था कि इस अभागे दंपति के दो सफल बच्चे थे जो पत्नी बच्चों के साथ विदेश में रहते हैं। अब ऐसी खबरें आए दिन आम होने लगी है। मौत एक कठोर सच्चाई है और बुढापा मौत के पहले का पड़ाव है। सुखद मौत की प्रत्याशा हर व्यक्ति को रहती है, और सुखद मौत के लिए सुखमय बुढ़ापा ज़रूरी है।


सनातन धर्म में जीवन के चार चरण बताए गए हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। इसके अनुसार मनुष्य की आयु 100 वर्ष की मानते हुए आधा जीवन जी लेने के बाद आध्यात्मिक उन्नति के लिए वानप्रस्थ प्रस्थान कर सन्यासी का जीवन जीते हुए मृत्यु पार्यन्त, जीवन/मरण आवागमन से मुक्ति के लिए मोक्ष के लक्ष्य प्राप्ति के लिए तपस्या किया जाना चाहिए। पर अब न जंगल रहे, और ना ही मोक्ष की आशा।

प्राच्य वांग्मय में वृद्ध और वृद्धावस्था की बड़ी महिमा गाई गई है, यहाँ तक कहा गया है कि,

वृद्ध ही ईश्वर रूप, वृद्ध ही घर में भगवान हैं।

जिस घर हो वृद्ध-सम्मान, वह घर तीर्थ समान है।

और यह भी कहा गया है कि

"श्रोतव्यं खलु वृध्दानामिति शास्त्रनिदर्शनम्।"

यानी वृद्धों की बात सुननी चाहिए ऐसा शास्त्रों का कथन है। परंतु क्या सचमुच समाज में वृद्धो की स्थिति आज सम्माननीय है?

वृद्धावस्था में होने वाले सफेद बालों पर मीठी चुटकी लेते हुए श्रंगार रस के रससिद्ध महाकवि केशव लिखते हैं -

'केशव' केसन अस करी, जस अरिहू न करांहिं, चंद्रबदन मृगलोचनी, बाबा कहि कहि जांय।

लेकिन असल समस्या बहुत गंभीर है। अपने जीवन भर की कमाई, अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा अपने बच्चों की शिक्षा दीक्षा, देखभाल तथा उनके सुरक्षित भविष्य के लिए कुर्बान कर देने वाले माता-पिताओं को क्या बुढ़ापे में अपनी संतानों का प्रेम, सानिध्य तथा ज़रूरी देखभाल मिल पा रहा है?

क्या वर्तमान समाज में वृद्ध सुविधा पूर्ण सम्मानित जीवन जी पा रहे हैं? ये वो सुलगते हुए सवाल हैं जो अपने परिवार को तथा समाज को अपना सब कुछ अर्पित कर देने के के बाद अपने लाचार शरीर के साथ अकेलापन झेलने को मज़बूर वृद्ध जन अपनी संतानों से, अपने परिवार से, तथा हमारे समाज से पूछ रहे हैं।

प्रेमचंद ने लिखा है कि बुढ़ापा प्रायः बचपन का पुनरागमन होता है। यहाँ यह विचारणीय तथ्य है कि बचपन में छोटे बच्चों को खिलाने पिलाने और उसकी देखभाल करने के लिए माता-पिता, अभिभावक होते हैं; लेकिन वही माता-पिता, अभिभावक जब बूढ़े हो जाते हैं और उन्हें देखभाल और सहारे की ज़रुरत होती है, तब उनकी संतानें अपना यह ज़रूरी कर्तव्य निभाने के बजाय या तो उन्हें किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं या फिर उन बेचारों को मरने के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 2023 की थीम वृद्ध व्यक्तियों के लिए मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के वादों को पूरा करना रखा गया था, लेकिन कारण चाहे जो भी रहे हों पर ज़मीनी हक़ीकत यही है कि आज उस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो पाए हैं।

इसी 20 फरवरी को हम 'विश्व सामाजिक न्याय दिवस' मनाने जा रहे हैं। सवाल है क्या हमारा समाज, अपने वृद्ध और अशक्त जनों के साथ समुचित सामाजिक न्याय कर रहा है?

हम अपने देश की अगर बात करें तो यहाँ वृद्ध जनों, वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विडंबना है कि वृद्ध जनों को पूर्व में दी जाने वाली रेलवे यात्रा टिकट में रियायत को भी वर्तमान में बंद कर दिया गया है। कुल मिलाकर वृद्ध जनों, वरिष्ठ नागरिकों के हितों की बातें तो बहुत होती हैं पर हकीकत यही है कि अपने बुढ़ापे को ढोते, मृत्यु की ओर अग्रसर बुजुर्गों के लिए वृद्ध जनों की सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक कल्याण, समुचित देखभाल, चिकित्सा और भरण पोषण को सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस काम के नाम पर आज तक कुछ भी खास नहीं किया है हमने।


यह विषय वर्तमान में इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि हमारे देश सहित पूरे विश्व में वृद्धो की संख्या आश्चर्यजनक तेज़ी से बढ़ रही है। आंकड़े गवाह हैं कि 2011-2021 के बीच भारत में बुजुर्गों की आबादी 35.5 फीसदी की दर से बढ़ी है। आगे 2021 से 2031 के बीच ये दर 40 फीसदी से ज़्यादा रहने का अनुमान है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक जुलाई 2022 तक देश में बुजुर्गों की आबादी 14.9 करोड़ थी और आबादी में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 10.5% थी। सन 2050 के आते तक बुजुर्गों की संख्या लगभग 35 करोड़ हो जाएगी अर्थात देश में हर सौ लोगों में 21 लोग बूढ़े होंगे। यानी कि बच्चों से ज्यादा संख्या बूढ़ों की होगी।

क्या हमारे देश ने आने वाले वक्त में अपने वृद्ध जनों के जीवन को सहज सुगम तथा सुखी बनाने की कोई ठोस रणनीति तैयार की है? जवाब में आपको लंबे सन्नाटे के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला। हमारे समाज का युवा यह भूल जाता है कि एक दिन चाहे अनचाहे उसे भी वृद्धों की लाइन में अनिवार्य रूप से खड़ा होना है। युवा यह भी भूल जाता है कि इस नामुराद वार्धक्य यानी बुढापे का बोझ उठाना व्यावहारिक रूप से कितना कठिन होता है।

इसे राजा भर्तृहरि के वैराग्यशतकम् के इस श्लोक से समझा जा सकता है।

"गात्रं सङ्कुचितं गतिर्विगलिता भ्रष्टा च दन्तावलिर्दृष्टिर्नश्यति वर्धते बधिरता वक्त्रं च लालायते ।

वाक्यं नाद्रियते च बान्धवजनो भार्या न शुश्रूषते हा कष्टं पुरुषस्य जीर्णवयसः पुत्रोऽप्यमित्रायते ॥

(भर्तृहरिरचित वैराग्यशतकम् -111)

भावार्थ यह है कि "वृद्धावस्था में आदमी की ऐसी दुर्गति होती है कि शरीर सिकुड़ने लगता है ,उसमें झुर्रिया पड़ जाती हैं व्यक्ति लड़खड़ाते हुए चलता है, दांत गिर जाते हैं, आंखों की ज्योति क्षीण हो जाती है, सुनाई भी कम देता है, मुँह से अनायास लार टपकने लगती है, अपने मुख पर भी नियंत्रण नहीं रह जाता है, परिजन, रिश्तेदार भी कहे गये वचन का सम्मान नहीं करते , पत्नी भी पूर्ववत सेवाभाव नहीं दर्शाती है, और पुत्र भी शत्रु की भांति व्यवहार करने लगता है; हाय! उम्र ढल जाने पर व्यक्ति का जीवन कितना कष्टप्रद हो जाता है!

यह श्लोक मनुष्य जीवन के उत्तरार्ध के शाश्वत कटु सत्य से साक्षात्कार कराता है।

आज शारीरिक रोगों के कई तरह के कारगर उपचार उपलब्ध होने के कारण संपन्न लोगों के लिए स्थिति उतनी गंभीर नहीं रहती है। किंतु कहाँ जाता है बुढ़ापा एक अनिवार्य लाइलाज बीमारी है। इसलिए चाहे धनी व्यक्ति हो अथवा गरीब हो, बुढापे में हर व्यक्ति का शरीर क्षीण और असमर्थ होने लगता है। भरपेट संतुलित भोजन प्राप्त न होने के कारण कुपोषण के शिकार गरीब व्यक्ति का बुढ़ापा और कठिन और नारकीय होता है।

कारण जो भी हों, हकीकत यही है कि आज बहुसंख्य बूढ़े लोगों को बुढ़ापा एक कठोर अभिशाप के तौर पर भोगना ही पड़ता है। समाज ने अपने बुजुर्गों का जीवन आज नर्क बना दिया है। न्यूक्लियर फैमिली में तो वृद्धों के लिए कोई जगह है ही नहीं। कुछ लोग वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं तो कई बेचारे तो भीख मांगने को मज़बूर हो जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि वृद्धजनों के समुचित देखभाल और पालन पोषण को लेकर कोई प्रयास नहीं किए गए। आजादी के बाद इस देश में वृद्धि जनों की सुरक्षा और देखभाल को लेकर कई कानून और नीतियाँ बनाई गई।

सरकारी कानून और प्रयास

1- साधन विहीन माता-पिता अपने साधन सम्पन्न बच्चों द्वारा सहयोग प्राप्त करने के अधिकार को आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 (1) (डी) तथा हिन्दू दतक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 ( 1 एवं 3 ) द्वारा मान्यता प्रदान किया गया है।

2- राष्‍ट्रीय वृद्धजन नीति 1999

राष्ट्रीय वृद्धजन नीति के पैरा 95 के प्रावधानो के अनुसार, सरकार ने सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्री की अध्‍यक्षता में 10 मई, 1999 को एनसीओपी का गठन किया था। एनसीओपी वृद्धजनों के लिए कल्‍याण नीति और कार्यक्रम तैयार करने तथा क्रियान्‍वित करने में सलाह देने तथा सरकार के साथ समन्‍वय करने के लिए शीर्षस्‍थ संस्‍था है।

3- माता पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून-2007

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 को माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकता के आधार पर उनका भरणपोषण और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए 29 दिसंबर, 2007 को अधिनियमित किया गया था।

4- माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 - बुजुर्गों के भरण पोषण तथा हित रक्षा हेतु इसमें कई संशोधन और नए प्रस्ताव रखे गए हैं।

5- बुजुर्गों के लिए समन्वित कार्यक्रम - सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लागू की गई इस योजना द्वारा वृद्धाश्रमों, दिवा देखभाल केन्द्र, मोबाइल मेडीकेयर इकाइयों की स्थापना करने, उनका रख रखाव करने तथा बुजुर्गों को गैर संस्थागत सेवाएँ प्रदान करने में किया जाता है।

इसके अलावा बुजुर्गों के लिए देखभाल गृह, अलजाइमर रोग / डिमेंसिया रोगियों के इलाज के लिए विशेष केंद्र और हेल्पलाइन तथा काउन्सिलंग केन्द्र भी हैं।

बुजुर्गों का देखभाल करने वालों को प्रशिक्षण देने के साथ जारूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। वरिष्ठ नागरिक संगठनों की स्थापना से इसमें काफी सहयोग मिला है।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी वृद्ध जनों तथा सीनियर सिटीजन के सतत कल्याण के दृष्टिकोण से प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जाता है।

(डॉ. राजाराम त्रिपाठी अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक, ये उनके निजी विचार हैं।)


World Day of Social Justice #old age home 

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