प्रोटीन के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं ये दालें

डॉ दीपक आचार्य | Aug 24, 2017, 19:16 IST
अरहर
लखनऊ। हिंदुस्तान की कोई ऐसी रसोई नहीं जहां दाल ना पकायी जाती हो। दाल का नाम सुनते ही हमें अरहर, मूंग, उड़द, चना, मसूर से बनी स्वादिष्ट दालों का ख़याल आता है। आम तौर पर सभी जानते हैं कि दालों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन्स पाए जाते हैं और ये सेहत के लिए टॉनिक की तरह कार्य करती हैं लेकिन इनके कई ख़ास अन्य औषधीय गुण भी हैं जिन्हें आमतौर पर लोग नहीं जानते और इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम इस सप्ताह उड़द और अरहर (तुअर) के ख़ास गुणों की जानकारी अपने पाठकों को परोस रहें हैं, उम्मीद है जानकारी रोचक लगेगी।

उड़द

उड़द के बीजों से प्राप्त होने वाली दाल भारतीय किचन का एक प्रमुख हिस्सा है, इसकी खेती पूरे भारत में होती है। छिल्कों वाली उड़द को काली उड़द और बगैर छिल्कों की उड़द को सफेद उड़द के नाम से बाजार में जाना जाता है। उड़द का वानस्पतिक नाम विग्ना मुंगो है। उड़द को एक अत्यंत पौष्टिक दाल के रूप में जाना जाता है। छिल्कों वाली उड़द की दाल में विटामिन, खनिज लवण तो खूब पाए जाते हैं और ख़ास बात ये कि इसमे कोलेस्ट्रॉल नगण्य मात्रा में होता है। इसमें कैल्सियम, पोटेशियम, लौह तत्व, मैग्नेशियम, मैंगनीज जैसे तत्व आदि भी भरपूर पाए जाते है और आदिवासी अंचलों में इसे बतौर औषधि कई हर्बल नुस्खों में उपयोग में लाया जाता है।

  • आदिवासियों के अनुसार पुरुषों में शक्ति और यौवन बनाए रखने के लिए उड़द एक बेहतर उपाय है। इस हेतु इसकी दाल का पानी के सेवन की सलाह दी जाती है और यह भी माना जाता है कि इसकी दाल पकाकर प्रतिदिन खाना चाहिए। पोटेशियम की अधिकता की वजह से आधुनिक विज्ञान भी इसे मर्दाना शक्ति बढ़ाने के लिए मानता है।
  • छिल्कों वाली उड़द की दाल को एक सूती कपड़े में लपेट कर तवे पर गर्म किया जाए और जोड़ दर्द से परेशान व्यक्ति के दर्द वाले हिस्सों पर सेंकाई की जाए तो दर्द में तेजी से आराम मिलता है। आदिवासी काली उड़द को खाने के तेल के साथ गर्म करते हैं और उस तेल से दर्द वाले हिस्सों की मालिश की जाती है जिससे दर्द में तेजी से आराम मिलता है। इसी तेल को लकवे से ग्रस्त व्यक्ति के लकवा ग्रस्त शारीरिक अंगों पर मालिश करनी चाहिए, फायदा होता है।
  • दुबले लोग यदि छिलके वाली उड़द दाल का सेवन करे तो यह वजन बढ़ाने में मदद करती है। अपने भोजन में उड़द दाल का सेवन करने वाले लोग अक्सर वजन में तेजी से इजाफा देख सकते हैं। आदिवासी जानकारी के अनुसार इसकी दाल का नियमित सेवन और उबली दाल के पानी को रोज सुबह पीना वजन बढ़ाने में सहायक होता है।
  • डाँग गुजरात के आदिवासियों के अनुसार गंजेपन दूर करने के लिए उड़द दाल एक अच्छा उपाय है। दाल को उबालकर पीस लिया जाए और इसका लेप रात सोने से एक घंटे पहले सिर पर कर लिया जाए और सोने से पहले सर धो लिया जाए। प्रतिदिन ऐसा करने से जल्द ही गंजापन धीरे-धीरे दूर होने लगता है और नए बालों के आने की शुरुआत हो जाती है।
  • उड़द की बिना छिलके की दाल को रात को दूध में भिगो दिया जाए और सुबह इसे बारीक पीस लिया जाए। इसमें कुछ बूँदें नींबू के रस और शहद की डालकर चेहरे पर लेप किया जाए और एक घंटे बाद इसे धो लिया जाए। ऐसा लगातार कुछ दिनों तक करने से चेहरे के मुहांसे और दाग दूर हो जाते हैं और चेहरे में नयी चमक आ जाती है।
  • डाँग- गुजरात के आदिवासी मानते है कि उड़द के आटे की लोई तैयार करके दागयुक्त त्वचा पर लगाया जाए और नहा लिया जाए तो ल्युकोडर्मा (सफेद दाग) जैसी समस्या में भी आराम मिलता है।
  • जिन्हें अपचन की शिकायत हो या बवासीर जैसी समस्याएं हो, उन्हें उड़द की दाल का सेवन अक्सर करना चाहिए, दर असल इसके सेवन से मल त्याग आसानी से होता है और आहिस्ता आहिस्ता अपचन की समस्या से छुट्टी मिल जाती है।
  • फोड़े फुन्सियों, घाव और पके हुए जख्मों पर उड़द के आटे की पट्टी बाँधकर रखने से आराम मिलता है। दिन में 3-4 बार ऐसा करने से आराम मिल जाता है।
  • काली उड़द की दाल (करीब 10 ग्राम), बारीक पीसा हुआ अदरक (4 ग्राम) को सरसों के तेल (50 मिली) में 5 मिनिट तक गर्म किया जाए और जब यह पूरा गर्म हो जाए तो इसमें पिसा हुआ कर्पूर (2 ग्राम) चूरा करके डाल दिया जाए। इस तेल को छानकर अलग कर लिया जाए। जब तेल गुनगुना या हल्का सा गर्म हो तो इस तेल से दर्द वाले हिस्सों या जोड़ों की मालिश की जाए, जल्द ही दर्द में तेजी से आराम मिलता है। ऐसा दिन में 2 से 3 बार किया जाना चाहिए। यह तेल आर्थरायटिस जैसे दर्दकारक रोगों में भी गजब काम करता है।


उड़द की दाल में हैं कई गुण।

अरहर

दाल के रूप में उपयोग में लिए जाने वाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है। अरहर को तुअर या तुवर भी कहा जाता है। अरहर का वानस्पतिक नाम कजानस कजान है। अरहर के कच्चे दानों को उबालकर पर्याप्त पानी में छौंककर स्वादिष्ट सब्जी भी बनाई जाती है। आदिवासी अंचलों में लोग अरहर की हरी-हरी फलियों में से दाने निकालकर उन्हें तवे पर भूनकर भी खाते हैं। इनके अनुसार यह स्वादिष्ठ होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं।

  • अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस समान मात्रा में तैयार कर नाक में डालने से माईग्रेन में लाभ होता है।
  • भाँग का नशा उतारने के लिए आदिवासी अरहर की कच्ची दाल को पानी में पीसकर नशे से परेशान पिलाते हैं जिससे नशा उतर जाता है।
  • ज्यादा पसीना आने की शिकायत होने पर एक मुठ्ठी अरहर की दाल, एक चम्मच नमक और आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ लेकर सरसों के तेल छोंकना चाहिए और इसे शरीर पर मालिश चाहिए इससे अधिक पसीना आने की समस्या से निदान मिलता है।
  • डाँग- गुजरात के आदिवासी अरहर के कोमल पत्ते पीसकर घाव पर लगाते हैं, इनके अनुसार ऐसा करने से घाव जल्दी सूखने लगते हैं और पकते भी नहीं है।
  • जिन्हें दाँत दर्द की शिकायत हो, उन्हे अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करना चाहिए, ऐसा करने से पीड़ा खत्म होती है।
  • पातालकोट के आदिवासी अरहर की दाल छिलको सहित पानी में भिगोकर रख देते हैं। आदिवासी इस पानी से कुल्ले करने पर मुँह के छाले ठीक होने का दावा करते है। अरहर की ताजी हरी पत्तियों को चबाने से भी छालों में आराम मिलता है।
  • पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार अरहर के पत्तों और दालों को एक साथ पीसकर हल्का-सा गर्म करके प्रसव पश्चात महिला के स्तनों पर लगाते है, जिससे कि यदि अधिक मात्रा में दूध का स्रावण हो रहा है तो वह सामान्य हो जाता है।
  • डाँग-गुजरात के आदिवासी अरहर के पौधे की कोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को विशेष रूप से खिलाते हैं जिससे वे अधिक दूध देते हैं।


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