बच्चे को होती हो पढ़ने में परेशानी तो हो जाएं सावधान, कहीं ये बीमारी तो नहीं

Shrinkhala Pandey | Jul 31, 2017, 22:34 IST
Health
लखनऊ। अगर आपने फिल्म 'तारे जमीन पर देखी हो' तो उसमें ईशान (8वर्ष के बच्चे) को दिखाया गया है, जो अपनी ही दुनिया में मस्त रहता है। ईशान अक्षरों को नहीं पहचान पाता उसकी रूचि पढ़ाई में नहीं होती लेकिन उसे रंगों से बहुत प्यार होता है। कई बार हम देखते हैं कि कुछ बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे होते हैं तो कुछ की रूचि खेल, डांस या आर्ट बनाने में होती है। वहीं दूसरी तरह ऐसे बच्चे भी होते हैं जिन्हें पढ़ने में परेशानी होती है वो शब्दों को सही तरीके से नहीं पहचान पाते हैं। टीचर और अभिवावकों के बार-बार समझाने के बाद भी वो गलतियां करते हैं, ये बीमारी है डिस्लेक्सिया।

डिस्लेक्सिया दुनियाभर में प्रति 10 में से एक बच्चे को होता है। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि यदि तरीका सही हो तो डिस्लेक्सिया वाले बच्चे भी सामान्य रूप से सीख सकते हैं। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं

डिस्लेक्सिया के बारे में बता रहे हैं लखनऊ के बाल मनोवैज्ञानिक डॉ राजेश पांडेय, “ये कोई बीमारी नहीं बल्कि कमजोरी है। इससे पीड़ित बच्चे को पढ़ने, लिखने और स्पेलिंग लिखने या बोलने में मुश्किल होती है। बहुत सारे पैरेंट्स डिस्लेकिसया और स्लो लर्नर को एक ही बात समझ लेते हैं लेकिन दोनों में फर्क है। स्लो लर्नर वाले बच्चों की समझने की क्षमता धीमी होती है जबकि डिस्लेक्सिया में सिर्फ बच्चे का शब्द ज्ञान कमजोर होता है।”

यह कोई बीमारी नहीं है ना ही को मानसिक अयोग्यता है। डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों को खास ध्यान, समय और साथ की जरूरत है, फिर वो ठीक हो जाते हैं।

लक्षण

शब्द की पहचान करने में दिक्कत

पढ़ने, समझने और याद करने में परेशानी

स्पैलिंग समझने में तकलीफ

दाएं और बाएं में अंतर समझने में तकलीफ

डिस्लेक्सिया से ग्रस्त व्यक्ति शब्दों या अक्षरों को उल्टा या गलत पढ़ता है। वे बी को डी समझ लेते हैं या 6 को 9 पढ़ बैठते हैं।

वह धीरे-धीरे पढ़ता है और अधिकांश समय उम्मीद से अधिक संकोच करता है।

कारण

कुपोषण इसका सबसे बड़ा कारण बन सकता है। शुरुआती सालों में ही बच्चों के पोषण का खयाल नहीं रखा गया तो उसके मानसिक विकास पर इसका असर होना तय है। वहीं यह समस्या तंत्रिका तंत्र की समस्या है जो जन्म से पहले के कारकों पर निर्भर करती हैं। मां का गर्भावस्था में संतुलित आहार की कमी होना या धूम्रपान का सेवन करना भी इसके कारण हो सकते हैं।

किस उम्र के बच्चों में समस्या होती है

यह विकार 3-15 साल उम्र के लगभग 3 प्रतिशत बच्चों में पाया जाता है, यानी जब बच्चा स्कूल जाना शुरू कर देता है। डॉक्टरों के मुताबिक, ज्यादातर बच्चों की प्रॉब्लम स्कूल जाने पर सामने आती हैं। उन्हें लिखने में दिक्कत आने लगती हैं। माता पिता उनके इन्हीं लक्षणों को देखकर डिस्लेक्सिया का पता लगा सकते हैं।

कैसे संभालें ऐसे बच्चों को

इन बच्चों की समझ धीमी होती है, इसलिए इन्हें ज्यादा समय देने की जरूरत होती है।

पढ़ाने का तरीका बदलें।

चीजों को आसान करके बताएं, तोड़-तोड़कर समझाएं।

पेंटिंग और कहानियों का सहारा लें।

-बच्चे को जिस चीज अक्षर को पहचानने या लिखने में दिक्कत होती हैं उसे बार-बार उन्हें बार-बार लिखवाएं। वोकेशनल ट्रेनिंग कराएं।

योग से ऐसे बच्चों में एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है।

अभिषेक बच्चन को भी थी ये परेशानी

ये बहुत कम लोगों को पता है कि अभिनेता अभिषेक बच्चन भी आम बच्चों की तरह नहीं थे। उन्हें डिस्लेक्सिया की समस्या थी, यानी वह अक्षर को पहचान नहीं सकते थे। ठीक वैसे, जैसा आपने फिल्म 'तारे जमीं पर' में ईशान को देखा होगा। अभिषेक स्पेशल स्कूल में जाते थे। उन्होंने न सिर्फ इस समस्या को दूर किया, बल्कि पिता की तरह सफल कलाकार भी साबित हुए।

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