जानकारी के अभाव और समय पर जांच न हो पाने के कारण नहीं हो पाता टीबी का इलाज

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विश्व की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा टीबी से संक्रमित है। वार्षिक टीबी रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में वर्ष 2019 में लगभग 24.04 लाख टीबी रोगी थे। यह संख्या वर्ष 2018 की तुलना में टीबी 14 प्रतिशत अधिक हैं।

India Science WireIndia Science Wire   24 March 2021 1:33 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
जानकारी के अभाव और समय पर जांच न हो पाने के कारण नहीं हो पाता टीबी का इलाजविश्व के लगभग 21 प्रतिशत टीबी के रोगी भारत में हैं, और देश में हर वर्ष 22 लाख लोग टीबी से संक्रमित होते हैं। Photo: ILO Asia-Pacific, Flickr

नई दिल्ली। हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र हर समय रोगजनक जीवाणुओं से लड़ता रहता है। लेकिन, प्रतिरक्षा तंत्र जैसे ही कमजोर होता है, तो बीमारियां हावी होने लगती हैं। ऐसी ही, बीमारियों में से एक है टीबी की बीमारी। जिसे तपेदिक या क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। टीबी का पूरा नाम ट्यूबरक्लोसिस है, जो 'माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस' नामक जीवाणु से होता है। टीबी रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है। हालांकि, टीबी का वायरस आंत, मस्तिष्क, हड्डियों, जोड़ों, गुर्दे, त्वचा तथा हृदय को भी प्रभावित कर सकता है।

टीबी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 24 मार्च का दिन विश्व टीबी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को उन प्रयासों से अवगत कराना है, जो न केवल इस बीमारी को रोकने, बल्कि इसके उपचार के लिए किए जा रहे हैं। वर्ष 1882 में 24 मार्च के दिन जर्मन चिकित्सक और माइक्रो-बायोलॉजिस्ट डॉ. रॉबर्ट कोच ने अपने शोध में पाया था कि टीबी की बीमारी का कारण 'टीबी बैसिलस' है। वर्ष 2021 में विश्व टीबी दिवस की थीम 'द क्लॉक इज टीकिंग' यानी 'समय बीत रहा है 'तय की गई है।

दो हफ्ते या उससे अधिक समय से खांसी आना टीबी का मुख्य लक्षण हो सकता है। वहीं, शाम को बुखार आना, बलगम के साथ खून आना, वजन कम होना इसके अन्य लक्षणों में शामिल हैं। टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है। लेकिन, फेफड़ों की टीबी ही संक्रामक बीमारी है। फेफड़ों की टीबी के रोगी के बलगम में टीबी के जीवाणु पाए जाते हैं। रोगी के खांसने, छींकने और थूकने से ये जीवाणु हवा में फैल जाते हैं, और अन्य व्यक्ति के सांस लेने से यह जीवाणु उस व्यक्ति के फेफड़ों में पहुंच जाते है और उसे संक्रमित कर देते हैं।

टीबी का सांकेतिक एक्स-रे चित्र (फोटोः विकिमीडिया कॉमन्स)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विश्व की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा टीबी से संक्रमित है। वार्षिक टीबी रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में वर्ष 2019 में लगभग 24.04 लाख टीबी रोगी थे। यह संख्या वर्ष 2018 की तुलना में टीबी 14 प्रतिशत अधिक है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टीबी एंड रेस्पिरेटरी डिजीज के निदेशक डॉ. रविन्द्र कुमार दीवान ने बताया कि "देश में वर्ष 1950 से टीबी का इलाज मौजूद है। लेकिन, जानकारी के अभाव और समय पर जांच न हो पाने के कारण आज भी हमारे बीच टीबी का वायरस बना हुआ है।"

भारत सहित अन्य देश अपने-अपने स्तर पर टीबी को खत्म करने के प्रयास कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक विश्व से टीबी को पूर्ण रूप से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वहीं, भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को पूर्ण रूप से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए भारत सरकार रैपिड मॉलिक्यूलर टेस्ट के माध्यम से निःशुल्क परीक्षण को बढ़ावा दे रही है। इसके साथ ही, टीबी मरीजों के निःशुल्क उपचार, उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं, वित्तीय और पोषण संबंधी सहायता तथा गैर-सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र की सहभागिता से इस प्रयास को तेज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। डॉ. रविन्द्र कुमार दीवान ने कहा है कि कोविड-19 के कारण टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लक्ष्य को वर्ष 2025 तक प्राप्त कर पाना थोड़ा मुश्किल प्रतीत होता है। पर, यह लक्ष्य असंभव नहीं है। सरकार द्वारा इस दिशा में लगातार पूर्ण सहयोग मिल रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 में यह लक्ष्य पूरा नहीं होता, तो उसके ठीक बाद हम इसको अवश्य ही प्राप्त कर लेंगे।

टीबी एक ऐसी बीमारी है, जो शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है। इस संदर्भ में डॉ रविन्द्र कुमार दीवान ने बताया कि जो टीबी शरीर के किसी अन्य अंग में होती है, तो उसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं। इसके लक्षण भी सामान्य लक्षण से भिन्न होते हैं। उन्होंने बताया कि अगर किसी को पेट में टीबी होती है, तो उस मरीज को पेट में दर्द और दस्त की शिकायत रहेगी। उन्होंने बताया कि जो टीबी शरीर के किसी अन्य अंग में होती है, वह संक्रामक नहीं होती।

दो हफ्ते या उससे अधिक समय से खांसी आना टीबी का मुख्य लक्षण हो सकता है। Photo: Dayanita Singh, Flickr

टीबी से कैसे बचा जाए, इस संदर्भ में डॉ रविन्द्र कुमार दीवान ने बताया कि केवल फेफड़ों की टीबी ही संक्रामक होती है। उन्होंने बताया कि टीबी एक ड्रॉपलेट इंफेक्शन है। अगर कोई टीबी का मरीज छींकता है, या खांसता है, तो इसके ड्रॉपलेट पॉच फीट तक जाते हैं। ऐसे में, हम मास्क लगाकर और दूरी बनाकर टीबी के संक्रमण को रोक सकते हैं, और उसे खत्म कर सकते हैं।

टीबी के मरीज को खांसते या छींकते समय मुंह पर रूमाल या कोई साफ कपड़ा रखना चहिए। मरीज को सार्वजनिक जगहों पर थूकना नहीं चहिए। मरीज को अपनी बलगम को इकट्ठा करके उसे उबालकर बहते पानी में बहा देने या फिर जमीन में दबा देने से संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। टीबी के मरीजों को अपना उपचार पूरा कराने की सलाह दी जाती है। यदि बीच में उपचार छोड़ दिया जाए, तो टीबी से निजात पाना कठिन हो जाता है। डॉ रविन्द्र कुमार दीवान ने बताया कि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी का संक्रमण भी फेफड़ों से होता है। अगर इस संक्रमण को रोक लिया जाए तो एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी से बचा जा सकता है।

डॉ रविन्द्र कुमार दीवान ने बताया टीबी से लड़ने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार ने पूरे देश में जगह-जगह डॉट्स सेंटर बनाए हैं, जहां टीबी की निशुल्क जाँच और उपचार किया जाता है। वहीं, सरकार पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप) मॉडल के तहत भी टीबी के इलाज को बढ़ावा दे रही है।

विश्व के लगभग 21 प्रतिशत टीबी के रोगी भारत में हैं, और देश में हर वर्ष 22 लाख लोग टीबी से संक्रमित होते हैं। वहीं, इस संक्रमण के कारण एक मिनट में लगभग दो व्यक्तियों की मौत हो जाती है। टीबी का मरीज एक वर्ष में दस से पंद्रह लोगों को इस बीमारी से संक्रमित कर सकता है। ऐसे में, टीबी का समय रहते इलाज होना बेहद जरूरी है। डॉक्टर कहते हैं कि यह रोग किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। इसलिए, इसे छिपाने की नहीं,बल्कि इस रोग के इलाज की जरूरत है।

ये भी पढें: टीबी: एक बीमारी जो कोरोना वायरस जितना ही खतरनाक है, लेकिन बेपरवाह हैं हम

World TB Day #tuberculosis #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.