श्री श्री रविशंकर को एक आम आदमी का पत्र

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श्री श्री रविशंकर को एक आम आदमी का पत्रgaon connection, गाँव कनेक्शन

आदरणीय श्री श्री रविशंकर जी तक कोई इस सन्देश को पहुँचा दे तो उसका भला हो, ना भी पहुँचे तो क्या? मुझे भी अपने 'मन की बात' कहने का हक़ तो है ही, कोई ना कोई तो समझेगा, कम से कम मेरा "ब्लैक शीप" तो समझ ही जाएगा।

आदरणीय श्री श्री रवि शंकर जी, 

दो दिन पहले दिल्ली जाना हुआ था। नोएडा की तरफ बढ़ते कदमों ने यमुना किनारे आपके 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' के बैनर तले होने वाले 'इंटरनेशनल कल्चरल फेस्टिवल' के तामझाम को देखकर मैं बेजा गदगद हुआ और दुखी भी। गदगद इसलिए कि हमारे देश की आज़ादी से लेकर आज तक मध्यप्रदेश की पातालकोट घाटी में चिमटीपुर और सूखाभांड गाँव के बीच 20 फीट का पुलिया नहीं बन पाया, आज भी दो पहाड़ों के बीच पेड़ की बल्लियों को लेटाकर वनवासी आना जाना करते हैं, थोड़ी सी भी चूक और जिंदगी को हाथ से धो बैठने वाली हालत। लेकिन यमुना पर आपने वो कर दिखाया जिसके लिए आप सरकार को ठेंगा दिखा सकते हैं। आपने एक पंटून पुलिया बना दी, दूसरा निर्माणाधीन है और अभी कुछ और बनने बाकी हैं, वो भी 20 फीट नहीं आधे से एक किलोमीटर लंबे, वाह। मेरे गदगद होने की एक वजह ये भी है कि सुना है आपके आयोजन में आने वाले मेहमानों के लिए 650 से ज्यादा पोर्टेबल टॉयलेट्स भी बनेंगे। ये भी एक करारा तमाचा सा होगा सरकार के उन नुमाइंदों के गाल पर, जो ट्रेन के अंदर बैठे बैठे पटरी किनारे शौच करते देशवासियों को देख ये कहते हैं कि इनको अकल कब आएगी। एक और ख़ास वजह मेरे गदगद होने की, रिकॉर्ड समय में तैयार हुआ पांच मंजिलों जितना ऊंचा आपका स्टेज, नदी किनारे तैयार साफ़-सपाट मैदान और पक्की सड़कों के आलावा ड्रेनेज की व्यवस्था, सब रिकॉर्ड टाइम में, गजब। हमारे अहमदाबाद में प्रह्लादनगर से जोधपुरगाम के बीच 4 इंच की मोटाई की 2 किमी की सड़क, और मानसी से वस्त्रापुर के बीच आधे किमी में ड्रेनेज का काम महीनो से हो रहा है, मुझे तो लग रहा है कि इधर के इंजीनीयर्स को एक राउंड मार आना चाहिए आपके आयोजन स्थल का, आपके मैनेजमेंट और पूरे तामझाम को सलाम। ये तो थी गदगद होने की वजहें, अब दुःख की वजह भी जान लीजिये।

श्री श्री जी, यमुना जी की हालत की दिल्ली वालों ने पहले ही बैंड बजाये रखी हैं, जो थोड़े बहुत चील, कौव्वे, टिटहरी दिखते हैं, उनका क्या होगा? यमुना और यमुना किनारे की प्रकृति और जैव विविधता को नुकसान तो होगा ही, ऐसे में आप रामलीला मैदान चल देते या तालकटोरा। आप यमुना जी के आसपास जीव जंतुओं के प्रकृति के सामंजस्य से तैयार उनके आर्ट ऑफ़ लिविंग को भी समझ लेते तो अच्छा होता। खैर, मैं तो कंकड़ भी नहीं आपके विशालकाय चट्टान स्वरुप व्यक्तित्व के आगे, पर जितनी समझ उतनी ही बात कर रहा, आपको ये भी सोचना होगा कि आखिर नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने आपके इस कार्यक्रम के आयोजकों पर या आपके 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' पर 100 करोड़ के जुर्माने की सिफारिश क्यों की है? उम्मीद है आप मेरी सोच को किसी राजनीतिक सोच, संप्रदाय या श्री श्री के नाम को इस्तेमाल कर चीप पॉपुलैरिटी पाने से जोड़कर देखने के बजाए हक़ीक़त समझने की कोशिश करेंगे।

आपके 'आर्ट ऑफ़ लिविंग' के 35 सफलतम वर्ष पूरे होने की ढेर सारी शुभकामनाएं

दीपक आचार्य

 

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