कोल्हू पर गन्ना बेचने को मजबूर किसान

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कोल्हू पर गन्ना बेचने को मजबूर किसान235 से 300 रुपये प्रति कुंतल तक कोल्हू पर गन्ना बेचने पर मजबूर हुए किसान।

दिवेन्द्र सिंह, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। लखीमपुर जिले के किसान दिलजिंदर सहोता ने चार हजार कुंतल गन्ना घाटा सह कर भी कोल्हू पर बेच दिया क्योंकि सही समय पर गन्ना का मूल्य का भुगतान ही नहीं हो पाता है।

चीनी मिलों की मनमानी और सही समय पर गन्ने का भुगतान न होने से दिलजिंदर जैसे सैकड़ों किसान कोल्हू पर गन्ना देने को मजबूर होते हैं। सीतापुर से लखीमपुर जाने वाली सड़क पर पचास से अधिक कोल्हू चलते हैं, जिसमें ट्रैक्टर, बैलगाड़ी भरकर किसान गन्ना बेचने आते हैं।

सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी. दूर महोली ब्लॉक में दो दर्जन से भी अधिक गुड़ बनाने के लिए कोल्हू लगे हैं। कोल्हू संचालक शुगर मिल चलने से पहले ही गन्ना खरीद करना शुरू कर देते हैं। किसान भी शुगर मिल के बजाय कोल्हू पर ही गन्ना बेचना चाहते हैं। महोली ब्लॉक के हाजीपुर गाँव के किसान अजय वर्मा (35 वर्ष) कहते हैं, “कोल्हू पर हमें चीनी मिल से कम रुपए मिलते हैं, लेकिन हमें नकद रुपए मिल जाता है। चीनी मिल पर घंटों लाइन लगाने के बाद भी समय से पैसा नहीं मिलता है, इसलिए हम कोल्हू पर गन्ना देते हैं।”

गुड़ बनाने के लिए जो कोल्हू इस्तेमाल होते हैं, उनसे छह-सात प्रतिशत रिकवरी होती है, यानि दस किलो गन्ना पेरो, तब जाकर छह-सात किलो गुड़ तैयार होता है। ऐसे में गुड़ बनाने के तरीके को भी आधनिक करने की जरूरत है।
डॉ. ए.के. साह, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक।

इस बार सात नंवबर से पेराई सत्र चालू हुआ है, जो करीब सालभर चलता है। मिलों में समय से भुगतान न होने से छोटे किसान कम दाम पर गन्ना कोल्हू पर बेचने को मजबूर हैं, जिससे उनका घर चल सके। लखीमपुर जिले के मोहनपुरवा गाँव के किसान दिलजिंदर सहोता (35 वर्ष) खेत में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल किए बगैर गन्ने की खेती कर रहे हैं। दिलजिंदर ने इस बार 15 एकड़ में गन्ना लगाया है। उन्हें चार हजार कुंतल गन्ना कोल्हू पर बेचना पड़ा।

दिलजिंदर कहते हैं, “हमारे यहां खम्भार खेड़ा की शुगर मिल सात नवंबर को शुरू हुई है, यहां पर तो किसानों से सिर्फ अगेती किस्म का ही गन्ना ले रहे हैं, ऐसे में जिस किसान ने सामान्य किस्म का गन्ना लगाया है, वो कोल्हू पर गन्ना देने पर मजबूर है। सात नवंबर से मिल तो शुरू हो गयी लेकिन अभी सिर्फ 26 नवंबर तक का ही भुगतान हुआ है।”

चीनी मिलों में 305 से 315 रुपए में गन्ना खरीद रहे हैं, जबकि कोल्हू पर किसान 235 से 300 रुपए तक गन्ना बेचने पर मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश में 40-45 जिलों में कम या ज्यादा गन्ना उगाया जाता है। 35 लाख से ज्यादा किसान सीधे तौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हैं। यूपी में 168 गन्ना समितियां हैं। साथ ही 119 गन्ना मिल और 2700 करोड़ से ज्यादा गन्ने से जुड़ा व्यवसाय है।

दिलजिंदर किसानों की मजबूरी के बारे में बताते हैं, “हमें मजदूरों को 30 रुपए गन्ना की छिलाई और 10-15 रुपए ढुलाई देनी पड़ती है। ऐसे में किसान क्या कर सकता है, जितना खर्च लगता है, उतना भी नहीं मिल पाता है।” सरकारी आंकड़ों के अनुसार गन्ना किसान की प्रति कुंतल गन्ने पर 250 रुपए की लागत आती है। ऐसे में किसानों का लागत मूल्य भी नहीं निकल पाता है।

कोल्हू पर भी निर्धारित हो समर्थन मूल्य

डॉ. ए. के साह बताते हैं “इतने बड़े स्तर पर उत्पादन के बावजूद गुड़ बाजार पर कोई नियंत्रण नहीं है। यदि होता तो गन्ना किसानों की स्थिति में सुधार हो जाता।” डॉ. साह आगे कहते हैं, “हर जिले में गन्ना अधिकारी होता है, उसे अतिरिक्त जिम्मेदारियां देकर सरकार गुड़ के बाजार को संगठित करने का प्रयास कर सकती है। सरकार को चाहिए कि गन्ने के मूल्य की तरह ही कोल्हुओं पर भी प्रति कुंतल गन्ने का न्यूनतम मूल्य निर्धारित करना चाहिए।”

लगातार घट रहा है रकबा

देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती का रकबा लगातार घट रहा है। साल 2012-13 में जहां प्रदेश में 24.24 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती हुई थी वहीं इस साल 2016-17 में घटकर 20.53 लाख हेक्टेयर रह गया है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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