जैविक तरीके से करें मधुमक्खियों के रोग का इलाज

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जैविक तरीके से करें मधुमक्खियों के रोग का इलाज
पिछले तीन वर्षों से प्रदेश में घटते शहद उत्पादन की वजह से मधुमक्खी पालक अपना व्यवसाय तक छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पिछले तीन वर्षों से प्रदेश में घटते शहद उत्पादन की वजह से मधुमक्खी पालक अपना व्यवसाय तक छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। एक तरफ तो उत्पादन चौपट है ऊपर से मक्खियों की देखरेख का खर्च उन्हें अलग से भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश के 75 फीसदी पालक इस बात से अंजान हैं कि मक्खियों के रोगों के उपचार के लिए जैविक उपाय भी है।

मधुमक्खियों की सही देखरेख बहुत जरूरी है। समय-समय पर उनको चेक करना पड़ता है कि कहीं किसी एक मक्खी को भी कोई रोग या कीट तो नहीं लग रहा वरना पूरे बॉक्स में रोग फैलने का खतरा होता है। एक बॉक्स में 25000 मक्खियां होती हैं इसलिए एक की वजह से पूरा मौनवंश खत्म हो सकता है।
राजधानी में बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन किए जाने की वजह से हनीब्लॉक कहे जाने वाले गोसाईंगंज के मधुमक्खी पालक दिनेश

शुरू से यही दवाएं लेते आए हैं। बाकी पालक भी यही छिड़कते हैं। किसी को कुछ पता ही नहीं है कि देसी तरीका क्या है कि नुकसान न हो।
आशाराम, मधुमक्खी पालक

मक्खियों के रोगों को जैविक तरीके से भी ठीक किया जा सकता है। इसके लिए पालक को कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। जैविक का मतलब है कि देसी इलाज। आसानी से मिलने वाली अजवाइन, नीम और गोमूत्र से भी इलाज हो सकता है और जो कि बिल्कुल कारगर है।”
डॉ. नितिन कुमार सिंह, जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ मुन्सटर और मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन की ओर से इज़राइल से मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण लेकर आए शोधकर्ता और विशेषज्ञ

दिनेश के पास आठ बक्से हैं। अगर मक्खियों को कोई बीमारी हो जाती है तो जानकारी के अभाव में पालक रासायनिक दवाओं का उपयोग करते हैं यह मक्खियों के लिए जानलेवा भी हो सकती हैं।

अगर इन देसी विकल्पों को सही खुराक में उपयोग किया जाए तो बेहतर है। बीमारियों के शुरुआती दौर में 10 पीपीएम की मात्रा में इनका उपयोग करें और अगर पूरे बक्से पर असर है तो ज्यादा से ज्यादा 15 पीपीएम देना चाहिए।
डॉ. नितिन कुमार सिंह

इनके उपयोग से मक्खियों का पालन-पोषण और विकास भी अच्छे ढंग से होता है और उनके बच्चे भी स्वस्थ होते हैं।
डॉ. नितिन कुमार सिंह

ये देसी उपचार मक्खियों को सूक्ष्मजीवियों से होने वाली बीमारियों से बचाएगा और उपचार करेगा। इसके साथ ही अगर समय पर इनका उपयोग किया जाए तो बीमारियों से मक्खियों को बचाया जा सकता है।

अजवाइन का रस रुई के बड़े टुकड़े में डुबोकर पालक बक्से के प्रवेश द्वार पर ही रख सकते हैं। इसकी तेज गंध से किसी भी तरह का कीट बक्से में नहीं आ पाएगा और बक्से के अंदर के कीट भी खत्म हो जाएंगे। इसी तरह औषधीय गुणों वाली नीम की पत्तियों के रस का भी उपयोग किया जा सकता है। गोमूत्र में भी औषधीय गुण मौजूद होते हैं जो कई तरह के विकार और रोगों के लिए कारगर हैं। इसके छिड़काव से मक्खियां ज्यादा फुर्ती में दिखाई देती हैं। यह मूत्र उन्हें बीमारियों से बचाता है।
डॉ. नितिन

रासायनिक दवाओं से होता है नुकसान

मक्खियों को कई तरह की बीमारी होती हैं, कीट भी लगते हैं। जब पालकों को मक्खियों में किसी बीमारी का लक्षण दिखता है तब वे बाजार की दवाओं का स्प्रे करते हैं।
अमृत कुमार वर्मा, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उप्र के वरिष्ठ स्रोत सहायक

गौमूत्र के बारे में सुना है लेकिन कभी करके देखा नहीं है। सब दवा ही डालते हैं तो हम भी वही करते हैं।
दिनेश, मधुमक्खी पालक

फॉलवेक्स पट्टी, मिथाइल सेलीसिलेट, थाईमोल, फ्यूमिजैलिन नामक दवाओं का मधुमक्खियों पर पड़ता है बुरा असर। रोगग्रस्त मक्खियों से गंजे शिशु पैदे होते हैं जो एक तरह का विकार है। इसके साथ जहां मोमी पतंगे से पूरा छत्ता प्रभावित होता है वहीं वैरोरा माइट भी मक्खियों के लिए घातक है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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