रेबीज़ संक्रमित दुधारू पशुओं का दूध पीने से इंसानों को खतरा

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रेबीज़ संक्रमित दुधारू पशुओं का दूध पीने से इंसानों को खतरारेबीज एक विषाणुजनित रोग है। दुधारू पशु के ज़रिए ये रोग मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। फोटो: गाँव कनेक्शन।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बरेली। एक महीने पहले किशोरी लाल (35 वर्ष) की गाय में रेबीज फैलने से उसकी मौत हो गई, जिससे उनको काफी आर्थिक नुकसान हुआ। किशोरी लाल के पास एक भैंस दो गाय थी, जिससे उनके परिवार का खर्चा चलता था। रेबीज़ की समस्या सिर्फ पशुओं तक की सीमित नहीं, संक्रमित पशु का दूध पीने से मनुष्यों में भी स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने की खबरे सामने आ रही हैं।

पंद्रह दिन पहले गाँव के किसी पागल कुत्ते ने हमारे पशु को काट लिया। हमको पता ही नहीं चला की कब इसमें रेबीज़ के लक्षण पनप गए। जब उसने खाना-पीना कम कर दिया तो डॉक्टर से उसकी जांच कराई फिर भी कुछ पता नहीं चला और वह मर गई। जब यही बीमारी दूसरी भैंस को हुई तो वह बार-बार रम्भाती थी और बिदक जाती थी। सही इलाज न मिलने पर वह भी मर गई।
किशोरी लाल, बोहित गाँव निवासी, (भोजीपुरा ब्लॉक, जिला- बरेली)

ग्रामीण भारत में बसे छोटे परिवारों के लिए उनके दुधारू पशु आय का प्रमुख स्रोत होते हैं, ऐसे में रेबीज़ जैसी बीमारी खामोशी से इन परिवारों के आय को झटका दे रही है।

हाल ही में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में गाय का दूध उपयोग करने से 80 लोगों के बीमार होने का मामला सामने आया है। इन लोगों ने रेबीज संक्रमित कुत्तों द्वारा काटी गई गायों के दूध का इस्तेमाल किया था।

इस घटना के बाद औरंगाबाद जिले के रेजिडेंट डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर विशम्बर गावड़े ने कुछ नमूने लैब टेस्ट के लिए भेजे थे। रिपोर्ट में भी पाया गया कि जिन गायों का दूध पीने से लोग बीमार पड़े उनमें से दो रेबीज़ के संक्रमण से ग्रसित थीं।

रेबीज एक विषाणुजनित रोग है। यह रोग कुत्ते, बिल्ली, बंदर, गीदड़, लोमड़ी या नेवले के काटने से स्वस्थ पशु के शरीर में प्रवेश करते हैं और नाड़ियों के द्वारा मस्तिष्क में पहुंच कर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं। रोग ग्रस्त पशु की लार में यह विषाणु ज्यादा होता है। रोगी पशु द्वारा दूसरे पशु को काट लेने से अथवा शरीर में पहले से मौजूद किसी घाव के ऊपर रोगी की लार लग जाने से यह बीमारी फैल जाती है।

दूध में तो लक्षण दिखता नहीं है। लेकिन इंसान जब रेबीज संक्रमित दूध पीता है तो उसमें लक्षण जैसे- जी मिचलाना, उलटी होना दिखने लगते हैं। ऐसे में तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। वरना संक्रमण पूरे शरीर में पहुंच जाता है।
संजय सिंह, पशु चिकित्सक, लखनऊ

पशुओं में रेबीज़ के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए लखनऊ स्थित पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ विजय कुमार सिंह बताते हैं, ‘’यह रोग जितना मनुष्यों के लिए घातक होता है उतना ही दुधारु पशु (गाय, भैंस, बकरी) के लिए भी होता है। अक्सर पशु जब चरने के लिए जाते है तो कुत्ते उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं और पशुपालकों को जानकारी न होने के कारण वह इसे समझ नहीं पाते है और पशु की मृत्यु जाती है। यह बीमारी एक पशु से दूसरे पशु में फैलती है जिससे पशुपालक को आर्थिक हानि भी होती है। बीमारी के लक्षण पैदा होने के बाद इसका कोई इलाज नहीं होता है।”

बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर निंदूरा ब्लॉक के मोलनिया गाँव के रुपेंद्र यादव (50 वर्ष) के पशु को रेबीज़ बीमारी हुई थी। रुपेंद्र बताते हैं, ‘’छह-सात महीने पहले हमारी भैंस को पागल कुत्ते के काटने से रेबीज़ फैल गया था समय पर पता लग गया तो उसे और पशुओं से अलग कर दिया लेकिन उसको बचा नहीं पाए थे क्योंकि काटने के चार दिन बाद पता चला था।”

रेबीज़ फैलने का कारण बताते हुए रुपेंद्र आगे बताते हैं, ‘’गाँव में आवारा कुत्तों की वजह से काफी आतंक रहता है हमारे पशु को ही नहीं बल्कि गाँव के और भी पशुपालकों के साथ इस तरह की घटना हुई है, जिससे लोगों को काफी नुकसान होता है।”

पशुओं में रेबीज़ लक्षण

  • ज़ोर-ज़ोर से रम्भाने लगता है और बीच-बीच में जम्भाइयां लेता हुआ दिखाई देता है।
  • पशु अपने सिर को किसी पेड़ अथवा दिवार पर मारता रहता है।
  • पानी पीने से डरने लगता है।
  • रोग ग्रस्त पशु दुबला हो जाता है।
  • एक दो दिन के अंदर उपचार न मिला तो पशु मर सकता है।

पशुओं को लगवाएं एंटी रेबीज टीका

अपनी बात को जारी रखते हुए सिंह आगे बताते हैं, ‘’पशुओं में इस बीमारी के बचाव के लिए साल में एक बार एंटी रेबीज का टीकाकारण पशुपालको को कराना चाहिए ताकि कोई जानवर अगर दुधारु पशु को काटे तो वो मरने से बच सकता है।”

पशुओं में रेबीज़ दो रूपों में देखा जाता है। पहला जिसमें रोग ग्रस्त पशु काफी भयानक हो जाता है जिसमें पशु में रोग के सभी लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। दूसरा जिसमें वह बिल्कुल शांत रहता है इसमें रोग के लक्षण बहुत कम अथवा नहीं के बराबर दिखाई देते हैं।

पशुपालक ऐसे करें बचाव

  • कुत्ता जिस दिन पशु को काटे उसी दिन, तीसरे, सातवें, 14 वें और 30 वें दिन पशु का वैक्सीनेशन कराना शुरु कर दे, अगर पशुपालक ऐसा नहीं करता है तो पशु मर भी सकता है। -जहां पर कुत्ते ने काटा है उस जगह को पानी से धोकर साबुन (लाइफबॉय) लगाएं क्योंकि उसमें कार्बोलिक एसिड की मात्रा जाता होती है। कार्बोलिक एसिड को पशुपालक मेडिकल स्टोर से खरीद भी सकता है।
  • पशुचिकित्सालय अस्पताल में तत्काल उपचार कराए।
  • पशुपालक अपने पशुओं में एंटी रेबीज का वैक्सीनेशन पहले से कराए।
  • काटे हुए पशु को अलग बांधे और उसका खाना-पीना भी अलग कर दे।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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