गाँव में कामधाम ठप, नुक्कड़ से लेकर खेत तक चुनाव की चर्चा

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गाँव में कामधाम ठप, नुक्कड़ से लेकर खेत तक चुनाव की चर्चागाँवों के लोगों का कहना है कि चुनाव आते ही विकास कार्य और दूसरे सरकारी काम बंद हो गए हैं।

वीरेन्द्र शुक्ला, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बाराबंकी। टिकट तय होने के बाद गांवों पर भी चुनावी माहौल का रंग चढ़ने लगा है। सुबह-शाम आग तापते लोग प्रत्याशी, पार्टी और देश की सियासी उठापटक पर चर्चा करते नजर आते हैं। गांव के रहने वाले तमाम कुछ मिलने की उम्मीद में टकटकी लगाए हुए हैं। हालांकि गांवों के लोगों में गुस्सा है कि चुनाव आते ही विकास कार्य और दूसरे सरकारी काम बंद हो गए हैं।

पिछले दिनों उत्तराखंड से अपने गांव मलौली पहुंचे जीतेंद्र त्रिपाठी (43 वर्ष) कहते है, “चुनाव का ज्यादा शोर शहरों में है। प्रचार सामग्री बांटने पर प्रतिबंध के चलते गांव में वो भीड़ नहीं जुटती लेकिन नुक्कड़ों और जहां चार लोग मिलते हैं चर्चा जरुर करते हैं।” वो आगे बताते हैं, “गांव के लोगों को राष्ट्रीय और स्टेट के मुद्दों से ज्यादा सरोकार नहीं रखते, उनके लिए अपने गांव, इलाके के मुद्दे ज्यादा प्राथमिक होते हैं। हालांकि इधर सारे काम ही बंद हैं।”

यूरी के गांवों में समस्या इसलिए भी हैं क्योंकि क्योंकि डेढ़ साल पहले ग्राम पंचायत (त्रिस्तरीय चुनाव) के चलते कामधाम ठप रहा और अब ये चुनाव आ गए हैं। बहुत सारे प्रधान इसलिए काम नहीं करवा पाए थे क्योंकि सरकार से पंचायत के लिए पैसा (14वें वित्त) नहीं पास करवा पाए। आचार संहिता के नाम पर कुछ अधिकारी भी ग्रामीणों को टरका रहे हैं।

सूरतगंज ब्लॉक के एक प्रधान ने नाम न छापने पर कहा, “ पिछले डेढ़ साल में गांव में एक भी काम नहीं हुआ। सालभर तो हमारी लोगों की योजनाएं पास नहीं हुईँ और अब आचार संहिता लग गई है अब जो होना होगा 11 मार्च के बाद ही होगा तब तक सारे काम रहेंगे। कुछ काम हो भी सकते हैं लेकिन अधिकारियों के पास चुनाव का बहाना है।’

गाँव से सफाई को लेकर बार प्रधान और ब्लॉक के अधिकारियों के पास गया लेकिन काम नहीं हुआ। सब कहते हैं चुनाव में बिजी हूं, बाद में देखता हूं।
अजय कुमार वर्मा (32) वर्ष, सूरतगंज के मटेहना गाँव निवासी

चुनाव में प्रचार से लेकर मतदान और मतगणना तक के लंबे समय पर सवाल उठाते हुए प्रगतिशील किसान वीरेंद्र सिंह कहते हैं, “चुनाव में समय बहुत बर्बाद होता है। बाजार से लेकर खेत तक चुनाव की ही चर्चा है। पिछले कई महीनों से चुनाव-चुनाव का शोर है, इससे काम बहुत प्रभावित होता है। सरकार को चाहिए की चुनाव 10-20 दिनों में निपटा का इंतजाम करे।” बाराबंकी के राजेश कुमार बताते हैं, “देखो परीक्षा का समय आ गया है लेकिन स्कूलों में इन दिनों सबसे कम पढ़ाई हो रही है।

मास्टर साहब गायब हैं, पूछो तो पता चलता है चुनाव में ड्यूटी लगी है। अब आगे एक दो महीने ऐसे ही निकलेंगे। ये साल बर्बाद मानो।” बहुत सारे लोग प्रत्याशियों के लिए प्रचार और समर्थन अपना कामधाम छोड़कर जुटे हैं। छेदा के बबलू मिश्रा कहते हैं, हमारे एक मित्र भी चुनाव लड़ने वाले थे, अब जब वो इलाके में दौरे पर होते हमें फोन करते तो जाना पड़ता था। कई बार तो हम आलू में पानी लगा रहे थे, फोन आया तो जाते थे।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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