गांवों के आंगन से भी गायब हो रही तुलसी
गाँव कनेक्शन 18 Nov 2016 3:07 PM GMT
अजय कश्यप, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
रामसनेहीघाट (बाराबंकी)। पिछले दिनों गुरु पूर्णिमा पर हजारों लोग तुसली का पूजन और विवाह कराना चाहते थे लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी क्योंकि आंगन में तुलसी नहीं थी, ये समस्या शहर के साथ अब गांवों में भी बढ़ रही है।
तुसली के पेड़ के बारे में बुजुर्ग लोग कहते रहे हैं, “तुलसी बिरवा बाग का सींचे से कोमलिहाय, वचन भरोसे नाम से पर्वत पर हरियाए।” इतना महत्व वाले तुलसी का पौधा आजकल बहुत कम घरों में नजर आया है जबकि इसका आध्यात्मिक के साथ चिकित्सीय क्षेत्र में भी काफी महत्व है। तुसली के पत्तों से भगवान का भोग तो लगता है इसकी चाय पीन से सर्दियों में काफी आराम मिलता है।
आयुर्वेद में तुलसी को जीवनदायी पौधा कहा गया है। सांस से जुड़ी बीमारियों खांसी-जुखाम आदि में बहुत लाभदायक है। य़े हवा और पानी दोनों को शुद्ध करती है।डॉ. दीपक आचार्य, हर्बल जानकार
पेड़-पौधों के अच्छे जानकार और हर्बल विषेशज्ञ डॉ. दीपक आचार्य बताते हैं, आयुर्वेद में तुलसी को जीवनदायी पौधा कहा गया है। इससे पानी और वायु दोनों साफ होते हैं, पहले घरों में इसी लिए इसे लगाया जाता था कि हवा साफ हो जाए। पानी को साफ कर देती हैं इसकी कुछ पत्तियां। सांस से जुड़ी बीमारियों खांसी-जुखाम आदि में बहुत लाभदायक है। इसमें कई रसायन और मिनरल होते हैं जो व्यक्ति के लिए बहुत जरुरी हैं।’
वाबजूद इसके अब तुलसी घरों में कम ही दिखती हैं। रासमनेही घाट निवासी रामरती बताती है, अब बहुत कम लोग इस लगाते हैं, पहले तो शादी व्याह आदि होने पर खाने में इसकी कुछ पत्तियां डाल देते थे, लोगों को भरोसा था कि इससे खाना कम नहीं होगा। और सर्दियों में काढ़ा तो पीते थे। मैंने आज भी तुलसी लगा रखी है।”
इसी गांव के गुलाबचंद बताते हैं, अब तो तुलसी का नाम दवा, मंजन आदि में ज्यादा नजर आता है, इसमें तुलसी है आदि-आदि। हम लोग भूलते जा रहे हैं बाकी दुनियावाले आजमा रहे हैं।” हालांकि आज भी बहुत से घरों में तुलसी के पौधे तो लगाए ही जाते हैं विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना भी होती है।
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