नारियल के रेशों से उगा रहे सब्जी

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नारियल के रेशों से उगा रहे सब्जीकोकोपीट तकनीक से लोग छतों पर फूलों के साथ हर तरह की सब्जियों और फलों का उत्पादन भी कर सकते हैं।

सव्यं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। नारियल का फल जितना उपयोगी है उतना ही उपयोगी उसका अक्सर फेंका जाने वाला बाहरी हिस्सा (रेशेदार छिलका) होता है। नारियल के रेशे में कई तरह के जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं जो पौधों के विकास के लिए मिट्टी में होते हैं। छोटे स्तर पर टेरेस फार्मिंग करने वाले लोगों के लिए नारियल की भूसी और खाद से तैयार की गई कृत्रिम मिट्टी की यह तकनीक (कोकोपीट तकनीक) काफी कारगर है। पर्याप्त मिट्टी न मिल पाने के बावजूद बागवानी के शौकीन इसके जरिए आसानी से खेती कर सकते हैं।

नारियल के रेशे भारी गैसों को खींचकर पर्यावरण को भी शुद्ध रखता है। इस तकनीक का उपयोग ज्यादातर विदेशो‍ं में होता है लेकिन यूपी में भी जो लोग छोटे स्तर पर फार्मिंग करना चाहते हैं वह इनका उपयोग खेती करने में कर सकते हैं। पॉलीहाउस में भी इस तरह खेती कर सकते हैं।
प्रभाकर कुमार, कृषि विशेषज्ञ

बागवानी में रुचि रखने वाले लोग जमीन की कमी की वजह से अक्सर घरों की छतों पर खेती करते हैं। छतों पर ही किसी तरह संसाधनों को जुटाते हैं। इसके लिए पानी और खाद तो आसानी से मिल जाती है लेकिन पर्याप्त मात्रा में मिट्टी नहीं मिल पाती है। ऐसे में कोकोपीट तकनीक का उपयोग अच्छा उपाय है। इस तकनीक में नारियल के रेशेदार छिलके को कम मिट्टी के साथ उपयोग में लाया जाता है। इन रेशों के साथ जैविक खाद का भी उपयोग किया जाता है। खास बात ये है कि ये रेशे मिट्टी की कमी को आसानी से पूरा कर सकते हैं। इस तकनीक से लोग छतों पर फूलों के साथ हर तरह की सब्जियों और फलों का उत्पादन भी कर सकते हैं।

गमलों में ही कुछ उगाने का सोच रहे हैं तो नारियल का छिलका बेहतर विकल्प है। जिनके पास बगीचा या लॉन नहीं होता वे लोग गमलों में ही पौधे लगाते हैं। ऐसे में मिट्टी कहां से लें, ये दिक्कत आती है इसलिए इन रेशों का पाउडर बनाकर गमलों में खाद के साथ भरकर पौधरोपण कर सकते हैं।
शोभा, बागवान विशेषज्ञ, लखनऊ

पूरी तरह से पककर तैयार नारियल के भूरे रेशों में नमी काफी लंबे समय तक कायम रहती है। इन रेशों में प्राकृतिक तौर पर पानी को सोखने की क्षमता अधिक होती है। इस तरह से इन रेशों को खेती में इस्तेमाल किए जाने पर पौधों को सींचने के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। नारियल के ये रेशे बीज को मिट्टी समान पोषक तत्व देकर उसे पनपने और उसके विकास में काफी सहायक होते हैं।

मिट्टी की कटान रोकता है रेशा

कृषि विशेषज्ञ प्रभाकर कुमार ने बताया कि इस तकनीक में कम मेहनत और पानी की भी बचत है। गैर व्यावसायिक लोग इसका आसानी से उपयोग कर सकते हैं। नारियल रेशा बहुत उपयोगी होता है। रेशों की विशेषताओं और उसके गुणों की वजह से ही इसका उपयोग उद्योग जगत के साथ खेती-किसानी में भी किया जाता है। मृदा संरक्षण के लिए भी देश के दक्षिण क्षेत्रों में इसका बड़े पैमाने पर विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जाता है इसलिए वहां नदियों या जल स्रोत के किनारे नारियल के पेड़ लगाए जाते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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