उत्तर प्रदेश में बढ़ रही लेमनग्रास की खेती, बनते हैं इतने प्रोडक्ट
Ajay Mishra | Jul 19, 2017, 15:05 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
कन्नौज। लेमनग्रास का उपयोग सिर्फ लेमन-टी में ही नहीं होता है। तेल, डिटजेंट, वाशिंग पाउडर, हेयर आयल व मच्छर लोशन में भी इसका उपयोग है।
सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) कन्नौज में अवर शोधकर्ता कमलेश कुमार बताते हैं, ‘‘जिले में लेमनग्रास की खेती हो रही है। इसकी पत्ती से लेमन-टी यानि नीबू चाय भी बनती है। साथ ही साबुन, निरमा, डिटर्जेंट, तेल, हेयर आयल, मच्छर लोशन, सिरदर्द की दवा व कास्मेटिक बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।”
लेमनग्रास लगाने का सही समय जुलाई से अगस्त में होता है। दो-दो फिट की दूरी पर इसे लगाया जाता है। एक एकड़ में 14-15 हजार स्लिप लगते हैं। एक स्लिप (पत्ती) एक रुपए के हिसाब से लगाने के लिए मिलती है। एफएफडीसी कन्नौज में भी इसकी खेती होती है।
छह महीने तक देखरेख के बाद पहली कटिंग की जाती है। हर चार महीने में आगे की कटिंग होती है। जड़ से एक फिट की जगह छोड़कर पत्तियों को काटा जाता है। इसके बाद आसवन तकनीक से तेल निकाला जाता है।
एक बार लगाने के बाद फसल पांच साल तक चलती है। एक हेक्टेयर जगह में सभी परिस्थितियां बेहतर रहने पर 150 किलो तेल प्रति वर्ष निकलता है। दूसरे और तीसरे साल फसल काफी बेहतर होती है। तेल का भाव 800-950 रुपए प्रति लीटर होता है।
वैसे तो यह फसल असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में होती है, लेकिन केरल में काफी उत्पादन होता है। वहां के किसान बड़े स्तर पर इसकी खेती करते हैं।
प्रतिवर्ष छह से आठ सिंचाई बताई गई है। जरुरत पड़ने पर सिंचाई बढ़ाई भी जा सकती है। प्रारंभिक अवस्था में सिर्फ दो निराई की जरूरत होती है। इसके बाद खरपतवार नहीं पनप पाती है, क्योंकि लेमनग्रास का पौधा फैलने लगता है।
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कन्नौज। लेमनग्रास का उपयोग सिर्फ लेमन-टी में ही नहीं होता है। तेल, डिटजेंट, वाशिंग पाउडर, हेयर आयल व मच्छर लोशन में भी इसका उपयोग है।
सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) कन्नौज में अवर शोधकर्ता कमलेश कुमार बताते हैं, ‘‘जिले में लेमनग्रास की खेती हो रही है। इसकी पत्ती से लेमन-टी यानि नीबू चाय भी बनती है। साथ ही साबुन, निरमा, डिटर्जेंट, तेल, हेयर आयल, मच्छर लोशन, सिरदर्द की दवा व कास्मेटिक बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।”
जुलाई-अगस्त है सही समय
ऐसे होती है कटिंग
एक बार में पांच साल चलती है फसल
केरल में फसल का बोलबाला
सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई
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