गाय, भैंस या कुत्ता कुछ भी खरीदने या बेचने जा रहे हैं तो ये पढ़ लीजिए

दिति बाजपेई | May 29, 2017, 20:40 IST
Fishes
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अब मवेशियों की बिक्री और खरीद करने के लिए घोषणा पत्र तो देना होगा। वहीं जानवरों पर अत्याचार रोकने के लिए 1960 के पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम के तहत जो नियम है, उसमें बिना पंजीकरण के देश में रंगबिरंगी मछलियां और कुत्तों को भी नहीं बेचा जा सकेगा।

केन्द्र सरकार ने पशु क्रूरता निषेध अधिनियम के अंतर्गत पशुओं के बारे में क्रूरता निरोधक कड़ी नियमावली 2017 अधिसूचित की है। इस नियमावली के मुताबिक कुत्तों की पूंछ और कान को काटना या उसे रंगना नए नियमों के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है। कुत्ते सुंदर लगे इसके लिए उनके शरीर से छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता। पशुओं के साथ क्रूरता न हो और उसे ऐसे स्थान पर रखा जाए, जो उसके स्वास्थ्य के लिए बेहतर हो। नियमावली के अनुसार जब कुत्ते को उसका मालिक बेचेगा तो एक माइक्रोचिप में कुत्ते की नस्ल और जन्मतिथि का ब्यौरा खरीददार को देना होगा।

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जानवरों के हित में काम करने वाले गैर सरकारी संस्था एमआरएसपी सेवा समिति के अध्यक्ष प्रदीप पात्रा ने बताया, जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए दस साल पहले ही नियम बन गए थे। नियम बना दिए जाते है, लेकिन इसके लिए आम जनता को जागरुक होना पड़ेगा।

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नियमावली 2017 के अनुसार फिश टैंक या अक्वेरीयम की साफ-सफाई का ध्यान रखना होगा। इसके अलावा फिश टैंक में समुद्री कछुआ पालना भी प्रतिबधिंत होगा। रंग-बिरंगी मछली पालन के लिए भी टैंक को ऐसी जगह पर रखना होगा, जहां उजाले की उचित व्यवस्था हो। इसके साथ ही कई अन्य नियमों का वर्णन है।

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पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पशु क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार नियमन) 2017 के नाम से जारी राजपत्र में यह भी कहा गया है कि अब किसी भी मवेशी को तब-तक बाजार में नहीं बेचा जा सकता, जब तक उसके साथ लिखित में घोषणा पत्र न दिया जाये। साथ ही इसमें वर्णन करना होगा कि पशु को मांस के कारोबार और हत्या के मकसद से नहीं बेचा जा रहा है।

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उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. बीबीएस यादव ने बताया, सरकार द्वारा इस पर रोक तो लग गई है। पर किसानों की फसलों को नुकसान से बचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास करना पड़ेगा। इसके लिए सरकार को करोड़ों का बजट बनाना पड़ेगा जिससे इन पशुओं का रख-रखाव किया जा सके। वरना बुंदेलखंड की अन्ना प्रथा की तरह हर जिले का वहीं स्थिति होगी।

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