बच्चों ने लगाई गुहार: हमें चाहिए रंगीन और सुंदर दिखने वाली ड्रेस
दिवेंद्र सिंह 29 Oct 2016 7:37 PM GMT

दिवेन्द्र सिंह
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। प्राथमिक विद्यालय में लगने वाला खाकी रंग का यूनिफार्म अब बच्चों को नहीं भा रहा है, इसलिए बच्चों ने हस्ताक्षर अभियान चलाया।
सैकड़ों बच्चों ने की है मांग
वाराणसी जिले के भंदहा कला और कैथी प्राथमिक विद्यालय में ‘शिक्षा का अधिकार अभियान उत्तर प्रदेश’ और ‘आशा ट्रस्ट’ के संयुक्त तत्वावधान में संचालित किये गये हस्ताक्षर अभियान में सैकड़ों बच्चों और अभिभावकों ने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्रक पर हस्ताक्षर करके अगले सत्र से रंगीन और आकर्षक दिखने वाले यूनिफार्म प्रदान करने की मांग की है।
बच्चों के अंदर हीनभावना
मांग पत्र में कहा गया है कि सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के परिधान (यूनिफार्म) का रंग फीका और अनाकर्षक होने के कारण बच्चों का व्यक्तित्व प्राय: बहुत ही दीन हीन सा लगता है। आस-पड़ोस के बच्चे जब किसी अन्य निजी स्कूल के आकर्षक रंग-बिरंगे परिधान पहन कर विद्यालय जाते हैं तो बच्चों के अन्दर हीन भावना जन्म लेती है जो उनके व्यक्तित्व विकास के लिए बाधक बनती है।
मुख्यमंत्री और बीएसएस को भेजा जाएगा
सरकारी स्कूलों के बच्चों के वर्तमान खाकी रंग को बदल कर आकर्षक रंग के यूनिफार्म प्रदान करने की व्यवस्था अगले शैक्षणिक सत्र से प्रदेश में लागू करने हेतु एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान भी संचालित किया जा रहा है। 27 अक्टूबर से शुरू हुए हस्ताक्षर अभियान में बच्चों और उनके अभिभावकों ने मांग पत्र और एक बड़े फ्लेक्स पर हस्ताक्षर किया, जिसे जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री और बेसिक शिक्षा मंत्री को प्रेषित किया जाएगा।
तीन दर्जन जिलों में चलेगा अभियान
आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय कहते हैं, "प्रदेश के लगभग तीन दर्जन जिलों में इसी प्रकार हस्ताक्षर कराए जायेंगे और मुख्यमंत्री से अपील की जाएगी। इस अभियान में शिक्षा और बाल अधिकार पर काम करने वाले तमाम सामाजिक कार्यकर्ता और जन संगठन शामिल हैं।"
इन सुविधाओं के बिना शिक्षा की कल्पना अधूरी
वो आगे कहते हैं, "सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों के कुर्सी टेबल पर बैठने की व्यवस्था, खाने के लिए प्लेट और गिलास, पीने के लिए स्वच्छ पानी की व्यवस्था और पानी की सुविधा युक्त साफ़ सुथरे शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराए बिना हम शिक्षा के स्तर में सुधार की कल्पना भी नहीं कर सकते।"
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
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