बालिका वधु बनने के 14 साल बाद फिर शुरू की पढ़ाई

Pragya BhartiPragya Bharti   29 May 2019 9:44 AM GMT

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बहराइच, उत्तर प्रदेश। "पढ़ने के बाद अगर कोई नौकरी मिलेगी तो कर लेंगे नहीं तो अपना घर संभालेंगे। अगर नहीं भी नौकरी मिली तो अपने बच्चे को ही सुधारेंगे। कुछ पढ़े-लिखे रहेंगे तब तो बच्चों को पढ़ा सकेंगे नहीं तो क्या पढ़ाएंगे? जब खुद ही कुछ नहीं जानेंगे तो उन्हें क्या बताएंगे?" भारत-नेपाल सीमा के छोटे से गांव गोकुलपुर में रहने वालीं कुल्फा वर्मा कहती हैं।

28 साल की कुल्फा का 14 साल पहले बाल विवाह हुआ था। उनके तीन बच्चे हैं। कुल्फा ब्याह के बाद से गोकुलपुर में रह रही हैं, जहां लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने के बारे में सोचते तक नहीं हैं। पूरे गांव में कई सालों तक केवल एक लड़की कल्पना पढ़ती रही। उसके पिता बाहर रहते हैं तो जागरूक हैं कि पढ़ाई सबके लिए ज़रूरी है, बाकी लड़कियां या तो घर में रहती थीं या उनकी शादी करा दी जाती थी। ऐसे में कुल्फा के लिए शादी और तीन बच्चे होने के बाद अपनी पढ़ाई पूरी करने का फैसला लेना आसान नहीं था।

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बहराइच जिले के नवाबगंज ब्लॉक में भारत और नेपाल की सीमा पर एक छोटा सा गांव है गोकुलपुर। यहां रहने वालीं कुल्फा वर्मा अपने गांव में स्वयं सहायता समूह की सचिव हैं। गोकुलपुर में महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाया और अब मिलकर झाड़ू बनाती हैं। कुल्फा के पति राजधानी लखनऊ में गाड़ी चलाते हैं। प्राइवेट कम्पनी में ड्राइवर हैं।

गोकुलपुर-


कुल्फा का बड़ा बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता है। बाकी दोनों बेटे अभी स्कूल नहीं जाते, उनकी उम्र पांच और तीन साल है। साल 2018 में देहात संस्था की मदद से कुल्फा ने दोबारा पढ़ाई करने का मन बनाया और नौंवी कक्षा में दाखिला लेकर विद्यालय जाना शुरू किया। कुल्फा की परीक्षाएं हो गई हैं और वो बड़ी उम्मीद के साथ कहती हैं कि मैं पास हो जाऊंगी।

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भारत सरकार द्वारा संचालित आंकड़े ज़ाहिर करने वाली वेबसाइट data.gov.in के मुताबिक, उत्तर प्रदेश का शिक्षा दर पिछली जनगणना में 67.7 प्रतिशत था। वहीं भारत में महिलाओं का शिक्षा दर 65.46 प्रतिशत और पुरूषों का शिक्षा दर 82.14 था। देश में औसतन शिक्षा दर 74.04 प्रतिशत था।

अपने तीनों बच्चों के साथ कुल्फा वर्मा।

कुल्फा रुपैडीहा कस्बे के आचार्य रमेश चंद्र इंटर गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती हैं। वो बताती हैं कि अभी परीक्षा परिणाम का इंतज़ार कर रही हैं, परिणाम आएगा तो हाईस्कूल में दाखिला लेंगी। कुल्फा कहती हैं, देहात संस्था ने हमें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। हमने सोचा कि पढ़ाई करेंगे तो अपने बच्चों को पढ़ा सकेंगे। उनका भविष्य सुरक्षित कर सकेंगे। भले ही नौकरी न मिले पर अपने बच्चों को तो पढ़ा सकेंगे। हमारे मन में आया कि हमें पढ़ना चाहिए तो हमने दाखिला लिया। अभी एक साल से पढ़ रहे हैं।

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उनके गांव में सरकारी स्कूल केवल पांचवी कक्षा तक है। पास के गांव पोखरा में जो सरकारी स्कूल है वो भी आठवीं तक ही है। इस कारण से कुल्फा को प्राइवेट स्कूल में पढ़ना पड़ता है। वो कहती हैं, हम गरीब हैं, आगे फीस ज़्यादा होगी तो नहीं पढ़ पाएंगे। जहां तक फीस भर सकेंगे पढ़ेंगे नहीं तो फिर कैसे पढ़ पाएंगे। अगर कभी मौका मिला तो पढ़ेंगे ज़रूर।

कुल्फा का मायका महिपुर्वा के जिया गांव में है। शादी से पहले वो आठवीं कक्षा तक पढ़ीं थीं। पढ़ाई के बारे में कहती हैं कि शादी के बाद नहीं सोचे कि पढ़ें लेकिन जब देहात संस्था से जुड़े तो हमें पढ़ने की ललक जागी। हम अब आगे बारहवीं तक पढ़ने का सोचे हैं। पति और ससुरालवाले भी हमारी पढ़ाई में समर्थन कर रहे हैं।

   

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