यहां की 50 हज़ार लड़कियों के लिए पीरियड्स अब घटिया नहीं
एक लड़की जब उसे पहली बार पीरियड्स हुए तो उसने पत्तों में मिट्टी रख कर ऊपर से एक और पत्ता रखा और इसे खून रोकने के लिए इस्तेमाल किया। इस कारण उसे इन्फेक्शन हो गया। इस घटना के बारे में जब ज्योति काकवानी को पता चला तो उन्होंने अपने जिले में सभी लड़कियों को जागरुक करने के लिए एक अभियान शुरू किया।
Pragya Bharti 26 April 2019 12:37 PM GMT

लखनऊ। "मासिक धर्म है, कोई शर्म नहीं।
अंधविश्वास की देखो पट्टी, लोगों की आंखों पर बंधी।
ये नहीं करना वो नहीं छूना, मां भी कहती है यही।
आज भी गांव का हाल वही।
किसी के विचार हैं कि बदले ही नहीं।
एक आदमी बदले भी तो भई वो कोई तरक्की नहीं।
मासिक धर्म है, कोई पिछले जन्म का बुरा कर्म नहीं।
मासिक धर्म है, कोई शर्म नहीं।"
यह कहना है राजस्थान राज्य के अजमेर जिले की बच्चियों का। ये बच्चियां पीरियड्स के प्रति काफी सजग हैं। राजस्थान सरकार ने अगस्त 2018 में 'चुप्पी तोड़ो' अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत अजमेर जिले के विद्यालयों में बच्चियों को संवेदनशील बनाने की मुहीम शुरू हुई।
राज्य सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा बहनजियों, सरपंचों, पंचायत समितियों को पीरियड्स के बारे में जागरुक करने का लक्ष्य रखा था। सरकार का मानना था कि इस तरह वो पीरियड्स के बारे में जागरुकता फैला सकते हैं लेकिन वहां असिस्टेंट चीफ एक्ज़िक्यूटिव ऑफिसर रहीं ज्योति काकवानी का मानना था-
"पीरियड्स के बारे में जानकारी उन बच्चियों तक पहुंचना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है जिन्हें हाल ही में पीरियड्स हुए हैं या होने वाले हैं। हमारी इस पहल से हम सीधे उन बच्चियों तक पहुंच पाए।"
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कैसे शुरू हुई पहल?
राज्य स्तर पर शुरू हुए 'चुप्पी तोड़ो' अभियान में विभिन्न विभागों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सरपंचों और शिक्षकों को इस विषय के बारे में संवेदनशील बनाया जाता था। ज्योति और उनके साथियों ने क्या किया कि अभियान में थोड़ा-सा बदलाव कर प्रशिक्षण में सरपंचों के बजाए, विद्यालयों की शिक्षिकाओं को बुलाया। उन शिक्षिकाओं को पीरियड्स के बारे में जानकारी दी। उन्हें बताया कि वो किस तरह अपने विद्यालय की लड़कियों इस बारे में सही जानकारी देकर सजग बनाएं।
ज्योति बताती हैं, "हमने एक कार्यक्रम तय किया। हर विद्यालय में दिन और समय तय कर लिया कि आपके यहां ये कार्यक्रम कब होना है। इस विषय में शिक्षिकाएं भी बात करने में हिचक रही थीं तो हमें कोई भी कमी नहीं रखनी थी कि जिसका जब मन हो वो कर ले या नहीं करे।"
"हमने यूनिसेफ की दो शॉर्ट फिल्म्स और एक पावरपॉइंट प्रज़ेंटेशन के माध्यम से शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण दिया था। हमने उन्हें कहा कि इस ही तरह उन्हें अपने विद्यालयों में बच्चियों को समझाना है," - ज्योति आगे कहती हैं।
ज्योति बताती हैं, "हमने प्राचार्य को पहले ही बता दिया था तो तय समय पर वहां प्रोजेक्टर और स्क्रीन लेकर एक व्यक्ति पहुंच जाता था। पहले दो फिल्म्स चल जाती थीं, फिर शिक्षिका पावरपॉइंट प्रज़ेंटेशन देती थी। इसके बाद बच्चियों से सवाल किए जाते थे। कुछ जगहों पर हम लोग भी गए। मेरे साथ जो और महिला अधिकारी थीं, वो भी गईं ताकि बच्चियों को प्रेरणा मिले कि हां, ये भी आकर हमसे बात कर रही हैं।"
#चुप्पी_तोड़ो_खुल_कर_बात_करो #menstrualhygiene management awareness campaign in govt schools of #Ajmer district.@rpbreakingnews@Upendra45520806 @MinistryWCD @Mamta02826938 pic.twitter.com/bVBhNiUrG1
— Jyoti Kakwani (@jyotiii_sindhu) February 26, 2019
ज्योति का कहना है कि गाँव में जाकर सरपंचों को, घर-घर जाकर, आंगनबाड़ियों में बच्चियों को पीरियड्स के बारे में जागरुक बनाना बहुत मुश्किल है लेकिन विद्यालयों में एक जगह बच्चियों को फिल्म और प्रज़ेंटेशन के माध्यम से समझाना आसान रहा।
क्यों शुरू हुई ये पहल?
ज्योति कहती हैं कि जब वो जांच के लिए विद्यालयों में जाती थी तो कोशिश किया करती थी कि उन विद्यालयों में जाएं जहां पर बच्चियों के छात्रावास हैं। जब वो छात्राओं से बात करती थीं तो उन्हें बहुत सारी भ्रांतियां थीं। एक जगह यह शिकायत सामने आई कि सरकार मुफ्त में पैड बांट रही है लेकिन बच्चियों को ये दिक्कत थी कि वो पुरुष शिक्षक उन्हें देता था, महिला शिक्षक नहीं देती थी। ज्योति ने पूछा कि इसमें दिक्कत क्या है? तो वो जवाब नहीं दे पाईं, बहुत शर्मा रही थीं।
ज्योति ने उनसे पूछा कि वो लोग पैड इस्तेमाल करती हैं या नहीं? उनमें से बहुत सारी ऐसी लड़कियां थीं जिन्हें पीरियड्स शुरू नहीं हुए थे। उन्हें इस बारे में कोई जानकारी भी नहीं थी। जिन लड़कियों को पैड मिल रहे थे, वो तो उन्हें इस्तेमाल करती थीं लेकिन कई बच्चियां थीं जिन्हें पता ही नहीं था कि पीरियड्स क्या होते हैं? या उन्हें कुछ समय बाद होंगे, ऐसा कुछ?
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जब ज्योति ने लड़कियों से जानना चाहा कि वो पीरियड्स में क्या करती हैं? तो उन्होंने कहा कि हम तो छुट्टी ले लेते हैं, पानी को नहीं छूते, किचन में नहीं जाते हैं। ऐसे कई सारे टैबू वो लोग मानते थे। इस कारण उन्हें लगा कि इस विषय में काम होना चाहिए।
ज्योति ये भी बताती हैं कि "मेरी एक दोस्त बीडीओ (Block Development Officer) थी। उसने मुझे बताया कि वो एक विद्यालय में गई हुई थी तो वहां एक लड़की बीमार थी। जब उसने पूछा कि वो बीमार क्यों है तो पता चला कि वो जो लड़की है उसे पीरियड्स के बार में कुछ पता नहीं था। जब उसे पहली बार पीरियड्स हुए तो वो बहुत डर गई। उसने क्या किया कि बड़े पत्ते लिए, उनमें मिट्टी डाली ऊपर से एक और पत्ता रखा और उसे इस्तेमाल किया खून रोकने के लिए। इस कारण उसे इन्फेक्शन हो गया और वो महीने भर बीमार रही।"
ज्योति कहती हैं, "छात्रावासों में वॉर्डन वगैरह बच्चियों को बताते तक नहीं है कि उन्हें पीरियड्स हो सकते हैं। इससे उन्हें डरने या घबराने की ज़रूरत नहीं है, ये एक सामान्य बात है। जब मैं विद्यालयों में जाती थी तो मुझे भी इस ही तरह की हालत देखने को मिलती थी।"
"राजस्थान के गाँवों में माताएं इन्तज़ार करती हैं। जब बच्चियों को पीरियड्स होते हैं तो उसे छुपाने में लग जाती हैं। खेलने से मना कर देती हैं, घर में कोने में बैठा देती हैं। बाहर मत जाओ, दुपट्टा ओढ़ लो, इस तरह की तमाम बातें करती हैं। बच्चियों को पता ही नहीं होता कि उन्हें पीरियड्स होंगे या होने वाले हैं। उन्हें पहले तो बिल्कुल नहीं बताया जाता,"- वो आगे कहती हैं।
ज्योति काकवानी के साथ गाँव कनेक्शन की बातचीत-
अजमेर जिले के आठ ब्लॉक्स में लगभग 400 विद्यालयों में ज्योति काकवानी ने अपनी पहल के माध्यम से लड़कियों को पीरियड्स के प्रति जागरुक किया। इन विद्यालयों में लगभग पचास हज़ार लड़कियों को ज्योति के शुरू किए इस अभियान से लाभ पहुंचा।
Some glimpses from #चुप्पी_तोड़ो_खुल_कर_बात_करो campaign in Fatehgarh and Hingonia schools of #Sarwad block of #ajmer district.zeal of girls is on height... Really happy to see now periods are not a taboo.@artizzzz @swachhajmer @CollectorAjmer @ministrymcd pic.twitter.com/M3wBqpet2Z
— Jyoti Kakwani (@jyotiii_sindhu) February 26, 2019
इस अभियान की शुरूआत जिले में 200 शिक्षिकाओं को प्रशिक्षण देकर हुई थी। इन्हें ट्रेनर प्रवीण गोयल ने प्रशिक्षित किया। एक पुरुष ट्रेनर से महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाकर इस अभियान की शुरूआत करने का उद्देश्य था कि महिलाएं पीरियड्स को लेकर बने अंधविश्वासों पर भरोसा न करें और विज्ञान के नज़रिए से इस बारे में जानें।
लड़कियों पर क्या रहा असर?
ऋतु अजमेर जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में नौंवी कक्षा की छात्रा हैं। वो बताती हैं, "हमारे विद्यालय में 27 फरवरी को चुप्पी तोड़ो के तहत पीरियड्स को लेकर प्रज़ेंटेशन हुई थी। इसमें हमें इस बारे में खुलकर बात करने की सीख दी। हमें बताया कि किस तरह हमें साफ-सफाई रखना चाहिए। इसके पहले मुझें ज़्यादा पता नहीं था। जब शिक्षकों ने बताया तो पता चला। अब हम अपनी मां से, दोस्तों से, शिक्षकों से, पीरियड्स के बारे में आसानी से बात कर पाते हैं।
ऋतु के ही साथ पढ़ने वालीं शालू कहती हैं, "हमारे स्कूल में जो हमें बताया गया उससे हमने बहुत कुछ सीखा, जैसे कैसे साफ रहना है, अपने माता-पिता से, अपने दोस्तों से हम कैसे इस बारे में खुल कर बात कर सकते हैं। इससे पहले हम पीरियड्स के बारे में बहुत कम जानते थे।"
श्यामली भी ऋतु और शालू के साथ ही नौंवी कक्षा में पढ़ती हैं। श्यामली कहती हैं कि हमें बताया गया कि पीरियड्स के बारे में हम शिक्षकों से बात कर सकते हैं। हमारे शरीर के लिए बहुत सारी चीज़ें हमें बताई थीं। कैसे हमें साफ-सफाई रखनी चाहिए।"
छात्रा प्रियंका रावत कहती हैं, "हमें पता चला कि हमें स्वच्छ रहना चाहिए। अगर हम सफाई रखेंगे तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा। पीरियड्स कोई शर्म की बात नहीं है और हम इस बारे में किसी से भी बात कर सकते हैं।"
प्रियंका ग्यारहवीं कक्षा में ऑर्ट्स की पढ़ाई कर रही हैं।
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