सूखे से परेशान किसानों को लुभा रही औषधीय खेती

अमित सिंहअमित सिंह   7 Jun 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। यूपी से लेकर बुंदेलखंड और राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक का किसान सूखे की मार से परेशान है। किसान रबी और खरीफ़ की फसलों की बुआई के लिए हज़ारों-लाखों रुपये खर्च करता है और फिर उनकी मेहनत सूखे या बाढ़ का शिकार हो जाती है। यही वजह है किसान अब औषधीय खेती की ओर रुख़ कर रहे हैं।

औषधीय खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इस पर न तो बाढ़ का असर होता है और न ही सूखे की वजह से फसलें खराब होती हैं। पारंपरिक खेती के मुकाबले कम रकबे में भी हर्बल पौधों की खेती ज्यादा मुनाफ़ा देकर जाती है। सामान्य फसलों की तरह इसमें कीड़े लगने का खतरा भी नहीं होता है। जंगली जानवर और पालतू पशु भी इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर उत्तर दिशा में सूरतगंज ब्लॉक के टांडपुर गांव के युवा किसान नरेंद्र शुक्ला (27 वर्ष) को इस बार सतावर की खेती से करीब चार लाख की आमदनी हुई है। घर के बाहर लगे सतावर के ढेर को दिखाते हुए वो बताते हैं, 'धान-गेहूं में लागत ज्यादा और बचत कम थी, चार-पांच साल पहले पिताजी सीमैप के माध्यम से आर्टीमीशिया एनुआ (मलेरिया की दवा बनाने वाला पौधा) की खेती शुरू की थी, उससे थोड़ा फायदा हुआ तो बड़े पैमाने पर औषधीय फसलों की खेती करने लगे। इस बार डेढ़ साल पहले दो एकड़ में सतावर लगाई थी। सहादतगंज की मंडी में बेचा है, उससे करीब चार लाख की आमदनी हुई है।'

टांडपुर के आसपास दर्जनों गाँवों में अब औषधीय पौधों की खेती शुरू हो गई है। बाराबंकी के साथ सीतापुर और लखीमपुर जिलों में भी इनकी खेती से तेजी से बढ़ रही है। सीतापुर में महमूदाबाद-सिधौली रोड पर बेहमा के किसान रामकृपाल सिंह (60 वर्ष) ने साल 2000 से ही औषधीय खेती शुरू की थी, लेकिन 2007 के बाद उन्होंने इसे बड़े पैमाने पर उगाया। रामकृपाल बताते हैं, 'किसान को भी वक्त के साथ बदलते रहना चाहिए वैसे भी एक ही खेती करने से खेत कमजोर हो जाता है।' सतावर, ब्राह्मी, आर्टीमिशिया, बथुआ और लेमन ग्रास की खेती करते हैं और सालाना 10-15 लाख रुपए कमाते हैं।

कम रकबे में ज्यादा मुनाफा

सीमैप यानि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट के वैज्ञानिक हर्बल खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर रिसर्च कर रहे हैं। सीमैप के पूर्व वैज्ञानिक और मौजूदा कंसलटेंट एके सिंह के मुताबिक़ 'औषधीय पौधों की खेती से किसान खूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं। मेडिसिनल प्लांट्स पर ना तो सूखे का असर होता है और ना ही बाढ़ का। औषधीय पौधों की खेती से कम रकबे में भी किसानों को ज्यादा मुनाफ़ा हो रहा है। सिर्फ़ इतना ही नहीं ना तो जंगली जानवर इन्हें खाते हैं और ना ही पालतू जानवरों से उन्हें नुकसान का खतरा है। औषधीय पौधों में कीड़े-मकोड़ों के लगने का भी ख़तरा नहीं है।'

हर्बल फसलें कम वक्त में होती हैं तैयार

पारंपरिक खेती यानि गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा के मुकाबले हर्बल पौधे जल्दी तैयार हो जाते हैं। दुनियाभर में मेडिसिनल प्लांट्स की मांग ज़बर्दस्त तरीके से बढ़ती जा रही है। भारत में कुल 15 एग्रोक्लाइमेटिक जोन हैं जहां करीब 6,000-7,000 हर्बल पौधे पैदा होते हैं। भारतीय औषधीय विज्ञान पद्धति में आर्युवेद, सिद्धा, यूनानी और होम्योपैथी की दवाएं बनाने के लिए हर्बल पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। कुल 178 ऐसे हर्बल पौधे हैं जिनकी भारत में ही सालाना 100 मीट्रिक टन से ज्यादा की खपत है। भारत में सालभर में 80-90 अरब रुपयों का कारोबार होता है। और करीब 10 अरब रुपये से ज्यादा की हर्बल दवा निर्यात की जाती है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संजीत कुमार बताते हैं, 'किसान औषधीय पौधों का रुख़ इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि पारंपरिक खेती में नुकसान होने का ख़तरा ज्यादा है। कहीं सूखे की मार है तो कहीं बाढ़ का कहर है। महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी जैसे राज्यों के लिए हर्बल पौधों की खेती एक बेहतर विकल्प है। सरकार को चाहिए की वो मेडिसिनल प्लांट की खेती को बढ़ावा देने के लिए बेहतर आधारभूत संरचना को विकसित करें। लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं कि सरकार पारंपरिक कृषि की ओर ध्यान ना दें।'

सरकार को हर्बल खेती पर ध्यान देने की जरूरत

आर्थिक मामलों के जानकारों की मानें तो मेडिसिनल पौधों की खेती अर्थव्यस्था के लिए भी बेहतर है। इससे ना सिर्फ़ किसानों का फायदा होगा बल्कि निर्यात बढ़ने से देश का विदेशी पूंजी निवेश भी बढ़ेगा। यूपी के एसोचैम हेड, वीएन गुप्ता कहते हैं, 'हर्बल पौधों की खेती एग्री सेक्टर का एक अलग और मुनाफ़ा देने वाला सिग्मेंट है। सिर्फ़ सरकार को इस सेक्टर पर थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है। हर्बल फार्मिंग सेक्टर अभी भी ऑर्गनाइज़ नहीं है। दुनियाभर में हर्बल फार्मिंग को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ये एक बड़ा बूस्टर साबित हो सकता है। पारंपरिक खेती के साथ-साथ हर्बल पौधों की खेती को भी बढ़ावा देने की ज़रूरत है।' यानि आने वाले दिनों में हर्बल पौधों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ने वाला है और पारंपरिक खेती के साथ-साथ इसे भी बढ़ावा देने की ज़रूरत है।

 

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