बच्चों को स्कूल बुलाने के लिए हर दिन उनके घर पहुंचते हैं टीचर

वाराणसी जिले के सरकारी प्राइमरी स्कूल के एक शिक्षक अक्सर स्कूल न आने रहने वाले छात्रों के घर पहुंच जाते हैं या फिर उनके माता-पिता को स्कूल में बुला लेते हैं। बच्चों को स्कूल में लेकर आने की उनकी रणनीति रंग लाई है क्योंकि उनकी अनुपस्थिति कम हुई है, नामांकन बढ़े हैं। इसके साथ ही स्कूल के बुनियादी ढांचे में भी सुधार हुआ है।

Pavan Kumar MauryaPavan Kumar Maurya   9 Feb 2023 12:49 PM GMT

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश। जब उनके सहयोगी और छात्र लंच ब्रेक पर होते हैं, तो ओमप्रकाश सिंह अपना अटेंडेंस रजिस्टर लेकर उस पर काम कर रहे होते हैं। वह उन बच्चों के माता-पिता को फोन करते हैं जिन्होंने पिछले दो दिनों से ज्यादा समय से अपनी क्लास नहीं ली है।

कितनी बार तो वह खुद ही अनुपस्थित छात्रों के घरों की तरफ यह जानने के लिए निकल पड़ते है कि आखिर क्लास न लेने की वजह क्या है। वह उन बच्चों के माता-पिता से बात करते हैं और बच्चों के स्कूल न आने के कारण उनके हो रहे नुकसान के बारे में बात करते हैं।

ओमप्रकाश ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यहां पढ़ने वाले कई छात्र गरीब परिवारों से हैं। उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। मैं उनसे बस एक ही सवाल करता हूं कि क्या वे अपने बच्चों को भी इस तरह का मुश्किल जीवन देना चाहते हैं।" वह कहते हैं, यह एक सवाल आमतौर पर उन्हें समझाने और यह सुनिश्चित करने के लिए काफी होता है कि उनका बच्चा नियमित रूप से स्कूल आए।


44 साल के ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के खारावां प्राथमिक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते हैं। बच्चों के माता-पिता के साथ जुड़ने और उनकी अथक मेहनत का नतीजा है कि स्कूल में नामांकन में तेजी देखी गई है। जहां 2020 में इस स्कूल में 200 छात्र पढ़ते थे, अब उनकी संख्या बढ़कर 428 हो गई है।

कक्षा चार में पढ़ने वाले 14 साल के छात्र मुकेश कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पैर में दर्द के कारण जब मैं दो दिन स्कूल नहीं गया तो ओमप्रकाश सर घर आ गए। वह जानना चाहते थे कि मैं स्कूल क्यों नहीं आ रहा हूं। मैं उनके घर आने का आदी हो चुका हूं।"

मुकेश ने स्वीकार किया कि पहले वह स्कूल जाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता था। स्कूल की बजाय अक्सर इधर-उधर भाग जाया करता था. उसने कहा, "लेकिन सर का बार-बार घर आना और मेरे माता-पिता के साथ बातचीत करने ने उसकी इस आदत को बदल दिया।"

माता-पिता के साथ बातचीत

खारावां प्राइमरी इंग्लिश स्कूल के प्रिंसिपल दिनेश यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "वह बच्चों के मनोविज्ञान से अच्छी तरह वाकिफ हैं और उन्होंने इसका इस्तेमाल उनके साथ जुड़ने के लिए किया है।"

प्रिंसिपल ने कहा, "उनका बातचीत करने का तरीका बेहद शानदार है। जिस तरह से वह माता-पिता के साथ बातचीत करते हैं वह सराहनीय है। मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूं। शिक्षा के महत्व के बारे में अपने छात्रों के माता-पिता को समझाने के लिए वह जो भी प्रयास कर रहे हैं वह असाधारण है।”

ओमप्रकाश के इन प्रयासों की बदौलत एक बड़ा बदलाव आया है जिसे इस सरकारी स्कूल में देखा जा सकता है।

खारावां गाँव के रहने वाले 55 वर्षीय गुलाब ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मास्टर साहब ने स्कूल का कायापलट कर दिया है। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि यहां मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता किसी भी अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल की तुलना में कम न हो।" वह कहते हैं कि ओमप्रकाश ने सरकारी स्कूल के शिक्षकों की उस छवि से दूर कर दिया है जहां उन्हें काम करने और छात्रों के प्रति उदासीन रहने लिए जाना जाता है।


गुलाब के मुताबिक, “आमतौर पर लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजना चाहते हैं। जो खर्च कर सकते हैं वे निजी स्कूलों की तरफ रूख कर लेते हैं। लेकिन यह अब बदल गया है. माता-पिता अपने बच्चों को इस स्कूल में एडमिशन कराने के लिए कतार में लग रहे हैं।

सकारात्मक बदलाव

बच्चों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ स्कूल के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं को ठीक करने का प्रयास भी किया जा रहा है। स्कूल में अब एक आधुनिक पुस्तकालय, एक प्रोजेक्टर रूम और एक बैडमिंटन कोर्ट मौजूद हैं।

प्रिंसिपल यादव ने कहा, “इस स्कूल में कुल 428 छात्र पढ़ते हैं। इनमें से रोजाना 380 छात्र अपनी क्लास अटेंड करते हैं. साफ-सुथरे वॉशरूम, साफ-सुथरा किचन आदि, छात्रों के लिए स्कूल को आकर्षक बना रहा है और वे सीखने के अनुभव का आनंद ले रहे हैं।”


सोनभद्र की यादें

सोनभद्र में एक शिक्षक के रूप में मिला उनका अनुभव ही था जिसने ओमप्रकाश सिंह को आश्वस्त किया कि छात्रों के घरों में जाने और उनके माता-पिता को साथ जुड़ने से क्या फर्क पड़ता है।

ओमप्रकाश ने याद करते हुए बताया, “सोनभद्र के सरकारी स्कूल में मेरी कक्षा में एक छात्र था जो अक्सर स्कूल नहीं आता था। लेकिन, मैंने इस बच्चे के अंदर एक चिंगारी देखी थी, जिस पर काम किया जा सकता था" ओमप्रकाश ने हंसते हुए कहा, “मैंने उससे घर पर मिलने का फैसला किया। जब मैं उसके घर गया तो वह चौंक गया और मुझे देखकर भाग गया. मैंने उसके माता-पिता से एक घंटे से भी ज्यादा समय तक बात की। अगले दिन वह न सिर्फ क्लास में आया बल्कि उसके बाद उसने कभी छुट्टी भी नहीं मारी।"

उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "तब मुझे एहसास हुआ कि यह प्रयास अन्य छात्रों के साथ भी काम कर सकता है. और अब, बच्चों को स्कूल वापस लाने की यह मेरी रणनीति है।”

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