मध्य प्रदेश की कुमुद ने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ लड़कियों के लिए उठाए ये कदम

मध्य प्रदेश के भोपाल की कुमुद सिंह ने पिछले दो दशक में हज़ारों लड़कियों और महिलाओं को पंख दिए हैं, आज वो न सिर्फ अपने अधिकारों के लिए खुलकर बात करती हैं, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी हैं।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   28 Sep 2023 9:50 AM GMT

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मध्य प्रदेश की कुमुद ने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ लड़कियों के लिए उठाए ये कदम

20 साल पहले जब कुमुद सिंह ने प्रोफेसर की जॉब छोड़कर झुग्गी-झोपड़ियों में जाना शुरू किया तो हर किसी ने यही कहा कि आखिर इन्हें क्या हो गया है, लेकिन कुमुद ने किसी न सुनकर अपने दिल की सुनी और लड़कियों और महिलाओं को उनके अधिकारों का पाठ पढ़ाने लगीं।

मध्य प्रदेश के भोपाल में 55 वर्षीय कुमुद सिंह ने साल 2006 में सरोकार नाम की संस्था की नींव रखी, कुमुद गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "मैं हमेशा से भोपाल में रही हूँ लेकिन जब मैं छोटी थी और यूपी के प्रतापगढ़ में अपने गाँव जाती थी, वहाँ महिलाओं को लंबे घूंघट में देखती तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। मुझे मेरे घर में कभी भी किसी चीज के लिए रोका टोका नहीं गया तो मुझे लगता कि ये आज़ादी सभी को मिलनी चाहिए।"

"जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई ये सारी चीजें मेरे मन पर बोझ बनती गईं, फिर 2003 में एक दिन मैंने अपने पति से बात की और उन्होंने मुझे सपोर्ट किया और कहा जो तुम को करना हो करो घर मैं संभाल लूँगा। फिर क्या मैंने अपनी नौकरी छोड़कर महिलाओं के लिए काम करने के लिए सोचा। " कुमुद सिंह ने आगे कहा।


कुमुद ने जॉब तो छोड़ दी अब असमंजस की स्थिति थी कि क्या काम और कैसे शुरू करना है। लेकिन धीरे-धीरे कुमुद बच्चों से जुड़ने लगीं और नुक्कड़ नाटक कराने लगीं।

कुमुद आगे कहती हैं, "हमने लड़कियों का एक ग्रुप तैयार किया और फिर बाल विवाह पर नाटक तैयार कराने लगीं, जिसका ज़्यादा से ज़्यादा काम बच्चियों से करवाने लगीं।"

उसी दौरान नुक्कड़ नाटक के ग्रुप की पूनम की शादी उसके परिवार वालों ने कम उम्र में ही तय कर दी थी, उस लड़की ने जो भी नाटक में सीखा था, वही उसके काम आया और उसने खुद से अपनी शादी कैंसिल करा दी। आज पूनम एमबीए कर रहीं हैं।

पूनम गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "जब मैं छोटी थी तब मैं सरोकार टीम के साथ काम करती थी, जिसमें लोगों को जागरूक करने के लिए बाल विवाह रोकने के लिए नुक्कड़ नाटक करते थे, उसी समय मेरी फैमिली वालों ने मेरी शादी तय कर दी, लेकिन मैंने हिम्मत दिखाकर अपनी शादी रुकवा दी और आज मैं एमबीए फाइनल ईयर की स्टूडेंट हूँ और साथ में जॉब भी कर रही हूँ।"

कुमुद कहती हैं, "उस दिन मुझे लगा कि शायद मैं अब सही रास्ते पर आगे बढ़ रहीं हूँ।"

आज उन लड़कियों में कई लड़कियाँ पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी कर रहीं हैं तो कुछ अपनी कंपनी चला रहीं हैं। एक लड़की ने तो पार्षद का चुनाव भी लड़ा, ये सारा आत्मविश्वास इनमें नुक्कड़ नाटक की मदद से आया है।

कुमुद कहती हैं, "फिर मैंने धीरे-धीरे बस्ती में जाकर महिलाओं और बच्चों से मिलने लगीं, बच्चियों को उनके स्वास्थ्य के प्रति गुड टच बैड टच जैसी चीजों के बारे में जागरूक करने लगे, क्योंकि लड़कियों को अपने स्वास्थ्य को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए।"

कुमुद अपने आसपास के स्कूल और कॉलेजों में जाकर वहाँ छात्र-छात्राओं के साथ वर्कशॉप करती हैं। पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए उन्होंने संवाद कार्यक्रम की भी शुरुआत की है, जिसमें वो शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, सम्मान की बातें समझाती हैं।

सरोकार ऐसी जगह है जहाँ बिना किसी पैसे के वॉलिंटियर काम करते हैं। इसमें हाउसवाइफ से लेकर डॉक्टर तक वॉलिंटियर का काम करते हैं। जिन्हें जब भी समय मिलता है सहयोग करते हैं।

35 साल की डॉ दर्शना सोनी होम्योपैथी डॉक्टर के साथ ही काउंसलर और सरोकार में वॉलिंटियर भी हैं। दर्शना गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "2015 में मेरी मुलाकात मैम से हुई और उन्होंने अपने साथ काम करने का मौका दिया। मेडिकल कालेज में मैंने बहुत सी किताबें पढ़ीं हैं, लेकिन असल बात मुझे सरोकार से जुड़कर समझ में आयी। आज मैं बच्चों की काउंसलिंग भी करती हूँ।"

सरोकार टीम स्कूल और कॉलेज से कोआर्डिनेट करके बच्चों को जेंडर संवेदनशीलता की जानकारी देती हैं, जिससे बच्चों की समझ विकसित हो। कुमुद कहती हैं, "इतने समय से समाज में धारणाएँ चली आ रहीं हैं तो उन्हें खत्म करने में समय तो लगेगा ही। समय से बच्चों को जानकारी होगी तो आगे जाकर इनमें भेद नहीं रहेगा।"

32 साल के सृजन कुमुद 2006 से ही सरोकार से जुड़े हुए हैं। सृजन आईटी कंपनी में जॉब करते हैं और सरोकार के स्कूल कॉलेज के इवेन्टस को कोआर्डिनेट करते हैं, सृजन गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "मुझे जेंडर सेंसलाइजेशन की ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन सरोकार से जुड़ने के बाद मुझे बहुत सारी चीजें समझ आयी कि कभी कभी हमारा उद्देश्य न होते हुए भी हम ऐसी चीजें बोल जाते हैं जो सही नहीं होती हैं।"

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