इस अंक में हैं पढ़ाई के साथ हुनर सिखाने वाले शिक्षकों की कहानियाँ

जब कोई बच्चा स्कूल पहुँचता है तो वो कच्ची मिट्टी की तरह होता है, अब गुरु के ऊपर होता है कि वो उसे कौन सा आकार देकर कैसा बना दे,ऐसी ही कई शिक्षकों की कहानियाँ हैं इस अक्टूबर महीने की टीचर कनेक्शन ई-मैगज़ीन में।

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इस अंक में हैं पढ़ाई के साथ हुनर सिखाने वाले शिक्षकों की कहानियाँ

हमारे शास्त्रों में कहा गया है - सा विद्या या विमुक्तये। यानी विद्या या ज्ञान वही है जो मुक्त करे। यहाँ मुक्त का अर्थ दुर्गुण (बुरे कर्म), दुर्व्यसन या दुर्विचार से है। श्री विष्णु पुराण के इस श्लोक का भाव यही है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य के अंदर और बाहर दोनों का विकास करे।

जिस तरह किसी सरकार का शिक्षा विभाग पूरे देश या राज्य में आधुनिक विज्ञान सिखाने में मदद करता है ठीक उसी तरह ईश्वर का वह अंग जो दुनिया को आध्यात्मिक विकास और शिक्षा की ओर ले जाता है, उसे गुरु कहते हैं । आज के आधुनिक युग में दुनिया ने जितनी भी तरक्की की है सबके पीछे किसी न किसी गुरु का ही हाथ रहा है। विद्या या विषय कोई भी हो गुरु के बिना उसमें पारंगत होना मुश्किल है।

इस बार का ये अंक ऐसे ही गुरुओं पर है जो अलग अलग क्षेत्र और विषय में अर्जुन और लक्ष्मी बाई तैयार कर रहे हैं। कोई गाँवों में घर बैठे बच्चों को स्कूल से जोड़ रहा है तो कोई केमिस्ट्री की बोरिंग क्लास को ख़ास बनाकर बच्चों में उसे पढ़ने की ललक जगा रहा है। एक गुरु जहाँ शहर छोड़ गाँव में स्कूल की लड़कियों को खेती-किसानी का पाठ पढ़ा रहे हैं तो दूसरे गुरु चार दशकों से गाँव में कुश्ती के दांव सीखा रहे हैं। हैरत की बात ये है कि इनमें से कई सुदूर गाँवों या द्वीपों में गुरु का धर्म निभा रहे हैं वह भी बिना किसी प्रचार या लालच के। अंडमान में एक विज्ञान टीचर का अपने छात्र छात्राओं को प्रकृति संरक्षण समझाना या किसी का अलग से समय निकाल कर अपने स्कूली बच्चों को योग आसन की सीख देना बहुत कुछ कहता है।

इसमें कोई शक नहीं है कि योग एक साधना है जिसे आज पूरे विश्व में मान्यता मिली हुई है। दूसरे विषय की तरह भले आज ये पाठ्यक्रम का एक हिस्सा हो लेकिन इसकी विशेषता बच्चों का सम्पूर्ण (पूरा) विकास करना है। आसन और ध्यान से जहाँ सहनशीलता बढ़ती है वहीं मन शक्तिशाली होता है। मन-मस्तिष्क का संतुलन बना रहे तो छात्र छात्राओं के लिए किसी भी विषय को समझना और उसे अपने जीवन में उतारना आसान हो जाता है।

हर गुरु यही चाहता है कि उसका छात्र समाज में हमेशा सकारात्मक सोच और अपने दम पर तरक्की करता रहे। सफलता का ये कतई मतलब नहीं है कि सिर्फ किताबी ज्ञान में कोई आगे रहे। अच्छा गाना, अच्छा डांस, कुछ बजाना या पेंटिंग, या जो भी हॉबी (शौक) हो उसको ज़्यादा से ज़्यादा निखारे, ये भीड़ से अलग पहचान बनाने में काम आता है। सिर्फ प्रोफेशन बनाने में नहीं बल्कि खुद के लिए भी।

इस अंक में बेमिसाल गुरुओं की कहानी तो हैं ही उनकी हमेशा काम आने वाली नसीहतें भी हैं जो बताती हैं कि कैसे एक दूसरे की मदद करके भी सफलता का सुख महसूस किया जा सकता है। एक चूहा और गाय चाह कर भी एक दूसरे की मदद नहीं कर सकते। एक पेड़ और मछली एक दूसरे के जीवन को बेहतर नहीं बना सकते। चींटी और ऑक्टोपस चाह कर भी एक दूसरे पर उपकार नहीं कर सकते। सिर्फ इंसान के पास ही ये हुनर है कि दूसरे मनुष्यों और पशु पक्षियों के जीवन को भी बेहतर कर सकता है। यहाँ तक की पृथ्वी, अंतरिक्ष, वायुमंडल, चाँद सबके बेहतरी के लिए काम कर सकता है।

टीचर कनेक्शन ई-मैगज़ीन में और भी बहुत कुछ है इस बार पढ़ने के लिए।

ई-मैगज़ीन डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

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