टीचर्स डायरी: "बच्चों को आगे बढ़ते हुए देखता हूं तो लगता है कि मेरा शिक्षक बनने का फैसला सही था"

खुर्शीद अहमद उत्तर प्रदेश के देवरिया के कंपोजिट स्कूल सहवा मे 2015 से शिक्षक पद पर नियुक्त हैं, उन्हें राष्ट्रीय और राज्य शिक्षक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है और हाल ही में नीदरलैंड्स की शैक्षिक यात्रा से भी लौटे हैं। टीचर्स डायरी में खुर्शीद अहमद अपना अनुभव साझा कर रहे हैं।

Khursheed AhmadKhursheed Ahmad   24 April 2023 9:58 AM GMT

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टीचर्स डायरी: बच्चों को आगे बढ़ते हुए देखता हूं तो लगता है कि मेरा शिक्षक बनने का फैसला सही था

मेरी यात्रा की शुरुआत 2006 से शुरु हुई 2010 तक शिक्षामित्र के पद पर कार्य़रत रहा और फिर सहायक शिक्षक फिर साल 2015 में मैं साइंस शिक्षक के रुप में कम्पोजिट स्कुल सहवा में मेरी नियुक्ति हुई।

साल 2006 की एक घटना ने बच्चों के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया, लंच के समय मे बच्चे खाना खा रहे थे तो मेरा ध्यान एक लड़के पर गया, वो लड़का अपनी थाली में से रोटियां निकाल कर अपने बैग में रख रहा था और कुछ खा रहा था तो मैंने पूछा ये क्या कर रहे हो बेटा, अभी तो खाना सामने है उसे खाओ तो लड़के ने बोला सर मैं घर ले जाकर खाऊंगा और उस दिन मुझे एहसास हुआ उसे देखकर मुझे लगा कि मैं हर दिन इन बच्चों के लिए कुछ बेहतर करुंगा।

मैं साइंस पढ़ाता हूं, इसलिए मैं प्रैक्टिकल के साथ बच्चों का रोल नम्बर हो या क्लास का बोर्ड महीने की तारीख हो या सप्ताह का दिन या फिर अटेंडेंस शीट इन सभी चीजों की शुरुआत हमारे लिए केमिस्ट्री के फॉर्मूले से ही होती है, जिससे बच्चों को चीजे आसानी से समझ आए, इसलिए मैं साइंस इस तरह से पढ़ाता हूं कि वो एक विषय न लगकर एक रोजमर्रा की घटना की तरह लगती है।


ये सब मैं बच्चों से ही करवाता हूं और मैंने खुद 100 से 150 वर्किंग मॉडल बच्चों के साथ मिलकर तैयार किया है, जिससे बच्चों को भी प्रयोग करने और उनके बारे मे जानने को मिले। इसलिए हर जगह फॉर्मूलों का प्रयोग करके बच्चों को चीजे रिमांड कराना, जिससे उन्हें चीजें समझ आ जाती हैं। जो चीजे बच्चे बीएससी में पढ़ते हैं वो कक्षा 6 के बच्चों को याद है बच्चे केमिस्ट्री के हर पहलू को आसानी से समझते हैं ये मेरे लिए किसी उपलब्धि के समान होता है।

मेरे स्कूल के 26 बच्चों ने अपनी मेहनत से नेशनल स्कॉलरशिप जीत कर स्कूल का नाम किया है, जिन्हे 12 हजार की धनराशि मिली है और ये आने वाले 3 साल तक मिलेगी। जो हमारी मेहनत को दर्शाता है बच्चों को स्टेट लेवल तक की प्रतियोगिताओं में चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र की हो या खेल की इसमे भी बच्चों ने जीत हासिल की है।

दूर-दूर के गाँव से बच्चे इस धूप में स्कूल आ रहे हैं। मुझे बच्चों से जुड़कर रहना बहुत पसंद है।


बच्चों की इसी तरह के स्नेह के जरिए बेसिक शिक्षा परिसर में कार्य करने का मौका मिला और मुझे राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उसके बाद मुझे राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

इसी के साथ नीदरलैण्ड जाने का मौका मिला ये सारे पल मेरे लिए बहुत खास हैं, जिसमें भी मेरे लिए बच्चों ने कार्ड, पेन्टिंग्स बनाई थी, बच्चों ने वो पल खास बनाया। मेरा नीदरलैण्ड का एक्सपीरिएंस बहुत ही अच्छा रहा, हमने वहां पर बहुत कुछ नया सीखा। हमने देखा कि वहां पर बच्चों को हुनरमंद बनाया जा रहा है, बच्चे कैसे अपने रोजमर्रा की जिंदगी से कितना कुछ कर सकते हैं। मुझे लगा कि ये सारे अनुभव यहां भी मिलना चाहिए। बच्चों की रुचि के अनुसार उनकी आगे की पढ़ाई होती है, जिससे हम सीख कर अपने बच्चों को और भी बेहतर बना सकते हैं।

जैसा कि खुर्शीद अहमद ने गाँव कनेक्शन की इंटर्न अंबिका त्रिपाठी से बताया

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