बच्चों को बेसब्री से इंतज़ार रहता है उत्तराखंड की इस अनोखी ‘घोड़ा लाइब्रेरी’ का

उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले के गाँवों में बच्चों के बीच एक चलती फिरती लाइब्रेरी काफी मशहूर है, ये कोई ऐसी-वैसी लाइब्रेरी नहीं घोड़ा लाइब्रेरी है, जिसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   7 Nov 2023 3:30 AM GMT

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बच्चों को बेसब्री से इंतज़ार रहता है उत्तराखंड की इस अनोखी ‘घोड़ा लाइब्रेरी’ का

हर रविवार उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों से होकर किताबों से लदा हुआ एक घोड़ा जब गाँव में पहुँचता है तो सारे बच्चे खुशी से झूम उठते हैं। ये है बच्चों की चलती फिरती लाइब्रेरी यानी घोड़ा लाइब्रेरी।

उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले की ये घोड़ा लाइब्रेरी बच्चों के साथ ही उनके माता-पिता को भा रही है। इस लाइब्रेरी की शुरुआत की है कोटाबाग के आंवला कोट गाँव के 30 साल के शुभम बधानी ने। शुभम का मानना है कि अब हर बच्चा तो लाइब्रेरी तक नहीं आ सकता, लेकिन उन तक लाइब्रेरी तो आ सकती है।

पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाले 12 साल के पारस बिष्ट को किताबें पढ़ना बिल्कुल भी नहीं भाता था, लेकिन जब से उन्होंने घोड़ा लाइब्रेरी की रंग-बिरंगी किताबें देखी हैं, अब तो वो इसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। राजकीय प्राथमिक विद्यालय, जलना के पारस गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब हमने पहली बार घोड़े को देखा तो हमें लगा कि ये क्या है, फिर सर ने हम सब बच्चों को बताया कि ये तो घोड़ा लाइब्रेरी है, जहाँ से हम अपनी पसंद की किताबें ले सकते हैं।"


फिर क्या था पारस ने अपनी पसंद की किताबें- भूतों की बारात, सोया हुआ उल्लू ले ली और अब स्कूल से आने के बाद उन्हें घोड़ा लाइब्रेरी का इंतज़ार रहता है।

आखिर शुभम के दिमाग में घोड़ा लाइब्रेरी का ख़याल कैसे आया के सवाल पर शुभम गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जून 2023 की बात है, हम अपनी टीम के साथ बैठे थे, बारिश का मौसम था, तभी देखा कि घोड़े पर सामान रखकर गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है। इसे देखकर मेरे दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न हम ऐसे ही किताबों को भी दूर के गाँवों तक पहुँचा सकते हैं।"

वो आगे कहते हैं, "हमारा मकसद उन बच्चों को शिक्षित करना है, जिसके पास संसाधन नहीं हैं, हमें उन तक शिक्षा को पहुँचाना है। हमने दीवान सिंह जी से बात की जिनके पास घोड़ा था। उनका जवाब था कि आप शुरुआत कीजिए हम आपका पूरा साथ देंगे और जब भी आपको घोड़ा ले जाना हो ले जा सकते हैं।"

12 जून, 2023 को पहला दिन था, जब घोड़े के ऊपर किताबों को सजाया गया और गाँवों की ओर निकल गए घोड़ा लाइब्रेरी लेकर। उस दिन को याद करते हुए शुभम बताते हैं, "पहाड़ों के घरों में बड़े-बड़े आँगन होते हैं, हम वहाँ पहुँचे और आसपास के सभी परिवारों को इकट्ठा और सभी को समझाया कि ये घोड़ा लाइब्रेरी क्या है।"

बच्चों से बोला गया कि आपको जो भी किताबें पसंद हैं, वो अपने पास रख सकते हैं। बच्चे किताबें देखकर काफी खुश थे। बच्चों के साथ कई तरह खेल भी खेले गए। बच्चों की खुशी देखते बन रही थी।


पहले दिन तीन गाँवों में घोड़ा लाइब्रेरी गई। हर रविवार को अलग-अलग गाँवों में घोड़ा लाइब्रेरी पहुँचती है। "अब तो कई गाँवों से फोन आने लगे हैं कि हमारे गाँव घोड़ा लाइब्रेरी कब पहुँचेगी, "शुभम ने आगे कहा।

एक गाँव में कम से कम तीन घंटे के लिए घोड़ा लाइब्रेरी रुकती है, बच्चों के साथ ही उनकी माँएं भी किताबें पढ़ने आने लगी हैं।

24 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात कार्यक्रम में घोड़ा लाइब्रेरी की तारीफ की, पीएम ने कहा, "नैनीताल जिले में कुछ युवाओं ने बच्चों के लिए अनोखी घोड़ा लाइब्रेरी की शुरुआत की है। इस लाइब्रेरी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि दुर्गम से दुर्गम इलाकों में भी इसके जरिए बच्चों तक पुस्तकें पहुंच रही हैं और इतना ही नहीं, ये सेवा, बिल्कुल नि:शुल्क है। अब तक इसके माध्यम से नैनीताल के 12 गाँवों को लाइब्रेरी किया गया है।

शुभम की टीम में 25 लोग शामिल हैं, जिनमें से हर कोई कुछ न कुछ करता है, लेकिन रविवार को हर कोई घोड़ा लाइब्रेरी के साथ जाने के लिए बारी-बारी से तैयार रहता है।

शुभम आगे कहते हैं, "जिस दिन हमें गाँवों तक जाना होता है, उस दिन सुबह 05:30 बजे तैयार होकर निकल जाते हैं। कोशिश रहती है कि गाँवों को ज़्यादा से ज़्यादा समय दिया जा सके। पहले हम गाड़ी से किताबें ले जाते हैं, फिर वहाँ जाकर घोड़े को बुलाकर उनपर किताबें सजाते हैं।"


"क्योंकि चढ़ान वाला गाँव होता है, घोड़े को ज़्यादा किताबें लेकर चलने में मुश्किल ना हो। वैसे घोड़ा एक बार 50 से 100 किलो वजन उठा सकता है, इसलिए एक बार में 40 से 50 किताबें ले जाते हैं। लेकिन हम कोशिश करते हैं वजन कम हो। गाँव के एक छोर से दुसरे छोर तक जाने में दूरी ज़्यादा हो जाती है, कई बार तो 50-60 किमी तक चलना होता है।"

अभी घोड़ा लाइब्रेरी में लगभग 500 किताबें हैं, जिसमें बच्चों सबसे ज़्यादा पसंद बिग बुक ही आती है। अभी शुभम से कई पब्लिकेशन जुड़ गए हैं तो वहाँ किताबें आती रहती हैं। उनके टीम के सदस्य भी उनकी मदद को आगे आते रहते हैं।

शुभम ने बीएससी, बीएड और उसके बाद अलग-अलग विषय दो बार बार एमए किया है। उनकी कोशिश है कि पहाड़ों पर पलायन रोका जा सके। उनका मानना है कि शिक्षा के ज़रिए ही पलायन को रोका जा सकता है।

10 साल के नैतिक को बिग बुक काफी पसंद है और जब से घोड़ा लाइब्रेरी आ गई तो उनको किताबें आसानी से मिल जाती हैं। पाँचवीं में पढ़ने वाले नैतिक गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब मैंने पहली बार घोड़े को देखा तो कुछ समझ नहीं आया। उसके बाद सर ने बताया की ये घोड़ा लाइब्रेरी है, इसमें बहुत सारी किताबें हैं, जो आप सब को जो किताब चाहिए आप ले सकते हैं और पढ़ सकते हैं। हम तो बहुत खुश हो गए।"

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