यूपी के गन्ना आयुक्त के अवमाना हलफनामे को वीएम सिंह ने दी चुनौती, 15 प्रतिशत ब्याज की मांग

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यूपी के गन्ना आयुक्त के अवमाना हलफनामे को वीएम सिंह ने दी चुनौती, 15 प्रतिशत ब्याज की मांग

लखनऊ। यूपी के गन्ना आयुक्त के अवमानना के हलफनामे को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने गन्ना किसानों को बकाया पर 15 फीसदी ब्याज देने की मांग की है।

5 फरवरी 2019 के हलफनामे में गन्ना आयुक्त ने चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति जांचने के लिए 6 महीने का समय मांगा था और कहा था उन्होंने सरकार से आर्थिक विशेषज्ञ से जांच कराने के लिए इजाजत मांगी थी, पर 5 फरवरी 2019 के आर्थिक आंकड़ों के आधार पर ही उन्होंने 5 अप्रैल 2019 को उन्होंने हलफनामा दे दिया जिसमें लगभग 5-6 मिल छोड़कर बाकी 110 मिलों को बीमार मानते हुए 7% ब्याज देने का आदेश दिया। वी एम सिंह का कहना है जब जांच ही नहीं हुई तो मिलों को बीमार करने का आधार कहां से आ गया।

अवमानना जज एके बिरला के सामने वीएम सिंह ने कहा, "गन्ना आयुक्त संजय आर भूसरेड्डी के हलफनामे और राज्य सरकार द्वारा मिलों को देरी से भुगतान देने पर जो 12 फीसदी और 7 फीसदी ब्याज देने का तय किया गया है वह गन्ना आयुक्त के कार्यक्षेत्र से बाहर है।"

मार्च 2017 के आदेश में कोर्ट ने कहा था कि अगर किसान ने गन्ना लगाने के लिए सोसाइटी या बैंक से जो ऋण लिया है, उसपर किसान ब्याज देता है तो मिल मालिकों को भी उसे ब्याज देना होगा। गन्ना आयुक्त ने माना कि किसान ने ऋण लिया है और ब्याज दिया है पर मिल मालिकों का साथ देते हुए उन्होंने गुमराह किया और कहा कि किसान ३ फीसदी ब्याज देता है और यदि मिल उसे 7% देगी तो किसान का काम चल जाएगा।

वीएम सिंह ने गन्ना आयुक्त पर आरोप लगाया कि उन्होंने ब्याज कम करने के लिए गलत आंकड़े कोर्ट के सामने पेश किए हैं। उन्होंने कहा कि मात्र कोऑपरेटिव सोसाइटी कागजों 3 प्रतिशत ब्याज पर ऋण देती है, हकीकत में ये ऋण 7 प्रतिशत पर होता है और 4 प्रतिशत समय पर लौटाने पर मिलना चाहिए पर ये भी किसानों को नहीं दिया जाता। हक़ीक़त तो ये है मिल मालिक पैसा देर में देते हैं। इसलिए किसानों को 22-23% पेनाल्टी सहित देना पड़ता है। वी एम सिंह ने ये भी कहा कि सहकारी बैंक एवम सरकारी बैंक भी 7 प्रतिशत पर छोटे और मझोले किसानों को देता है, जिसमें समय से वापसी करने पर 3% वापसी दिया जाता है और एक दिन की देरी पर 14.5% के हिसाब से ब्याज देना पड़ता है। वहीं केसीसी में 11-11.5% पर ऋण मिलता है, जिसमें कोई राहत नहीं होती और एक दिन के विलम्ब पर भी 15.5% पर ब्याज और पेनल्टी समेत लौटाना पड़ता है।


वीएम सिंह ने ये भी कहा कि हर किसान को दो साल का ब्याज देना पड़ता है क्योंकि एक साल में गन्ना गन्ना तैयार होता है और मिल में डालने के एक साल के बाद गन्ना भुगतान होता है।

वहीं वीएम सिंह ने कहा केसीसी और किसान मित्र स्कीम (जिसका ब्याज 12.5% होता है), पर ऋण लेने वाले किसानों को चक्रवर्ती ब्याज के साथ लौटाना पड़ता है। गन्ना आयुक्त ने कोर्ट के सामने ये सब नहीं रखा और बहुत आसानी से किसानों के साथ खिलवाड़ करते हुए बताया कि 7% ब्याज उचित रहेगा क्योंकि किसान को तो केवल 3% ब्याज देना पड़ता है।

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वीएम सिंह ने कहा कि गन्ना आयुक्त ने याचिका का अध्ययन ही नहीं किया । याचिका में राज्य सरकार एवम गन्ना आयुक्त ओर चीनी मिलों ने 15% ब्याज देने की सहमति जताई है। यही नहीं जब 2012-13, 13-14, 14-15 में विलम्ब से भुगतान करने पर कोर्ट के द्वारा आरसी जारी की गई उसमें भी स्पष्ठ 15% ब्याज जोड़ा गया है। ये ही नहीं जब 6 फरवरी 2014 को गन्ना आयुक्त ने ब्याज के विवरण का हलफनामा कोर्ट में दिया था वो भी 15% ब्याज पर जोड़ा गया था।

इस शक्ल में गन्ना आयुक्त का ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की 2003 की अवमानना याचिका वी एम सिंह बनाम श्यामलाल गुप्ता एवं 40 अन्य मिल मालिक के विपरीत है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि एक सोसाइटी ओर एक मिल में समान मूल्य होना चाहिए जिससे प्रदेश के किसानों को 517 करोड़ रुपया देने का आदेश दिया था।


वीएम सिंह ने कोर्ट से कहा कि गन्ना आयुक्त ने मिलों के फायदे ओर घाटे की बात केवल बेवकूफ बनाने के लिए की है जिसका याचिका से कोई सम्बन्ध नहीं है । जब किसान का घाटा कोई नहीं देखता है और उससे घाटा होने पर भी ब्याज लिया जाता है तो मिल मालिकों का घाटा देखते हुए ब्याज में कमी क्यों की जाए । वी एम सिंह ने ये भी कहा अगर मिलों के घाटे ओर मुनाफे से 2 ब्याज दर होंगे और 5% का फर्क होगा तो कोई भी मिल मुनाफा नहीं दिखाएगी ।

वीएम सिंह ने कहा कि ऊपर वाले मुद्दों पर जहां गन्ना आयुक्त ने अपना गलत विवेक इस्तेमाल करते हुए मिल मालिकों को फायदा कराने की कोशिश की है वहीं पैरोई सत्र 2014-15 के ब्याज माफ़ी के मुख्य बिंदु को नजरअंदाज कर दिया। वी एम सिंह ने याचिका में कहा थी कि राज्य सरकार की कैबिनेट ने मंजूरी दी थी कि 2014-15 का गन्ना भुगतान समय पर न होने पर 14 दिन के बाद ब्याज को भुगतान में जोड़ दिया जाएगा। वी एम सिंह का कहना था कि एक बार ब्याज मुख्य राशि में जुड़ जाता है तो उसके वापिस निकालने की गुंजाइश नहीं होती और जब आरसी के तहत 15% ब्याज जोड़ा गया है तो अब गन्ना आयुक्त को उस कैबिनेट के फैसले के विपरीत जाने का कोई अधिकार नहीं है । इस बिंदु पर गन्ना आयुक्त ने पुनर्विचार में दूर दूर तक नहीं देखा इसलिए गन्ना आयुक्त के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही कर चार्ज फ्रेम किया जाए क्योंकि पहले तो उन्होंने 2 साल तक अनुपालन नहीं किया और अब कोर्ट को गुमराह करने के लिए अनुपालन का फर्जी हलफनामा दिया जो न कोर्ट के आदेश के अनुपालन में है और न किसान हित में।

किसान को अगर आज 23 साल की लड़ाई के बाद 7% ब्याज ही मिलेगा तो मिल मालिक जिन्हें 11-12% ब्याज पर ऋण मिलता है वो फिर भी समय पर भुगतान नहीं करेंगे और यदि किसानों को 15% ब्याज मिलेगा तो मिलें भुगतान में विलम्ब 1 दिन भी नहीं करेंगी ।

उन्होंने बताया कि एक ही समिति में शामिल किसान 2 से ज्यादा चीनी मिलों को गन्ना देता है ऐसे में जो चीनी मिल मुनाफे में होगी वह बकाया पर ब्याज 12 फीसदी देगी, लेकिन जो चीनी मिल घाटे में हैं वे 7 फीसदी ब्याज देगी। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने पांच फरवरी 2019 को राज्य के गन्ना आयुक्त को स्पष्ट आदेश दिया था कि अगर 5 अप्रैल तक 9 मार्च 2017 के आदेश का अनुपालन नहीं किया उनको खिलाफ अवमानना का चार्ज फ्रेम किया जायेगा। जेल जाने की घबराहट में गन्ना आयुक्त ने अनुपालन का हलफनामा दिया है जिसमें कहा गया कि 9 मार्च 2017 के आदेश के तहत हर बिंदु पर विचार करने के बाद हलफनामा दिया गया है।


   

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