यूपी 100: गाँवों में ही निपटाई जा रहीं शिकायतें 

Manish MishraManish Mishra   29 March 2017 1:11 PM GMT

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यूपी 100: गाँवों में ही निपटाई जा रहीं शिकायतें यूपी 100 गाँवों में ही निपटाई जा रहीं शिकायतें।

लखनऊ। ‘’यूपी-100 के आने से फोन पर पुलिस के एक नियत समय में घटनास्थल तक पहुंचने में उस पर लगने वाला आरोप कि पुलिस देर से पहुंचती है, वह भी धुल रहा है। अब तो पुलिस घटना के कुछ ही देर में पहुंच जाती है और बात आगे न बढ़े, इसके लिए मामले को शांत करा देती है,” यह कहना है एडीजी अनिल अग्रवाल का।

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फोन पर पुलिस घटनास्थल तक पहुंचे इसकी परिकल्पना एडीजी अनिल अग्रवाल ने केन्द्रीयकृत एंबुलेंस सेवा को देखकर की। “हमसे कहा गया कि कुछ ऐसी चीज बताइए कि प्रदेश में पुलिस की मदद पहुंचाने के लिए एक केन्द्रीयकृत व्यवस्था हो। हमने जब केन्द्रीयकृत एंबुलेंस की व्यवस्था देखी, फिर हमने सोचा कि ऐसे ही प्रदेश के दूरदराज ग्रामीण लोगों तक पुलिस की भी मदद पहुंचाई जा सकती है।” अनिल अग्रवाल बताते हैं, “इससे पुलिस के मामले में राजनैतिक हस्तक्षेप को रोका जा सका है। क्योंकि पुलिस अब कह पा रही है कि हम कुछ नहीं कर सकते, जो भी है वह रिकॉर्डेड है, किसे पकड़ा गया, किसे थाने में दिया गया सब रिकार्डेड है। थाने वालों की मजबूरी है कि उसे निष्पक्षता से काम करना ही पड़ेगा।”

अपने इस काम से संतुष्ट होते हुए भावुक अंदाज में एडीजी अनिल अग्रवाल बोलते हैँ, “यह एक ऐसा काम है कि हर अधिकारी को ज़िंदगी में एक आध बार ही मिलता है। इसे पूरा करके जितना आत्मिक संतोष हम सभी को मिलता है, उसे बयां नहीं कर सकते। हमें पता नहीं था कि ऐसा रेस्पांस मिलेगा।” यूपी-100 के पीआरवी जवानों और थाने के बीच मनमुटाव पर एडीजी अग्रवाल कहते हैं, “कई मामलों में थाना पुलिस की मिलीभगत हो जाती है।

कच्ची शराब, जुआ, अवैध खनन और ये सब ऐसी चीजें हैं, जो बिना लोकल पुलिस की मदद के नहीं हो सकतीं। इन्हीं सब को डायल-100 प्रमुखता से रोकता है। इससे थाना पुलिस के खेल में खलल पड़ रहा है। कई बार तो पीआरवी वालों के खिलाफ भी थाने वाले रिपोर्ट लिख देते हैं।”

लेकिन यूपी 100 ने कोशिश तो की

अच्छा काम करने वाली टीम को पीआरवी ऑफ द डे भी घोषित किया जाता है। पुलिस सिर्फ झगड़े ही नहीं निपटाती, बल्कि रास्ते में फंसे होने पर मदद भी करती है। “कार में पेट्रोल खत्म होने पर भी यूपी-100 मदद करती है। रात में यात्रियों की बस खराब हो जाए तो भी हम मदद पहुंचाते हैं।” वह आगे बताते हैं, “एक हमारे पास फोन आया कि हमारे बगल में एक आदमी ने फांसी लगा ली है, पीआरवी टीम पहुंची और उसे अस्पताल में भर्ती कराया। उसकी मौत हो गई, लेकिन पुलिस ने फंदा निकाल कर कोशिश तो की। यह है यूपी 100 के जरिए पुलिस का रेस्पांस।

ज़मीन के लिए पड़ोसी से सबसे अधिक झगड़ा

सबसे अधिक प्रापर्टी के झगड़े तो दूसरे नंबर पर घरेलू हिंसा 20 नवंबर से 10 जनवरी के बीच आई कॉल्स से पता चलता है कि किस क्षेत्र में क्या घटनाएं अधिक हो रही हैं। पुलिस को पता चला कि सबसे अधिक मामले प्रापर्टी के झगड़े के 60,414 थे। उसमें भी सबसे अधिक पड़ोसी के साथ हदबरारी का था। दूसरे नंबर पर घरेलू हिंसा के 23,177 मामले सामने आए, जबकि तीसरे नंबर पर 17427 मामले एक्सीडेंट के थे।

थैंक्यू कॉल्स लाती हैं चेहरे पर मुस्कान

लखनऊ। जब किसी किसी पीड़ित को मदद मिलती है तो पलट कर यूपी-100 में आने वाली थैंक्यू कॉल्स उस चेहरे पर मुस्कान और आत्मसंतोष ला देती हैं जो उसकी मदद में शामिल होते हैं।

नेहा को याद है कि जब कॉल सेंटर में उसका पहला दिन था और एक सुसाइड की कॉल आई थी। “महिला ने लव मैरिज की थी, उसके बाद पति से अनबन के बाद डिप्रेशन में चली गई थी। ससुराल के लोग दहेज को लेकर परेशान कर रहे थे। उसने अपने आप को कमरे में बंद कर रखा था। उसने एक नंबर दिया और कहा, ‘मेरे पति को बता दीजिएगा कि मैं सुसाइड करने जा रही हूं।”

नेहा पांडेय, यूपी 100

यूपी-100 के कॉल सेंटर में काम करने वाली नेहा पांडेय बताती हैं, “इसके बाद मैंने जल्दी से पीआरवी भिजवाई और उस महिला के बारे में पता चला कि उसे बचा लिया गया।” यह बताते हुए नेहा के चेहरे पर कुछ अच्छा करने की खुशी साफ झलकती है। नेहा बताती हैं, “एक दिन में हमारी कॉल 100 से अधिक होती हैं।

जब हम शिफ्ट खत्म करके बाहर निकलते हैं तो हमें बहुत गर्व महसूस होता है। इस बारे में हम घर जाकर भी बात करते हैं कि एक कॉल आई और कितना परेशान था।” कॉल सेंटर में काम करने वाली लड़कियों और कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी गई कि फोन उठाने के बाद कैसे बात करनी है? “हमें जब जॉब में आए तो नहीं पता था कि कैसे बात करनी है। हमें बताया गया कि सबसे पहले कॉल करने वाले को सांत्वना देते हुए शांत करना है। तब तक उधर पुलिस की मदद भी पहुंचानी है।

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