इस बार फिर मनरेगा मजदूरों की दिवाली रहेगी सूनी

Anand TripathiAnand Tripathi   17 Oct 2017 5:22 PM GMT

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इस बार फिर मनरेगा मजदूरों की दिवाली रहेगी सूनीप्रदेश में हैं 223.18 लाख मनरेगा मजदूर। 

लखनऊ। मनरेगा मजदूरों के लिए यह दिवाली सूनी रहने वाली है, क्योंकि इन मजदूरों को पिछले कई महीने से मेहनताना ही नहीं मिल पाया।

“पहले हम और मेरे पति को यहीं गाँव में ही काम मिल जाता था। मैं भी घर के काम निपटाकर मजदूर करने जाती थी। पर लगभग एक साल पहले किए गए काम का पैसा अब तक नहीं मिला। मेरे पति तो फैक्ट्री में काम करने लगे और मैं घर पर ही रहती हूं, ”लखनऊ जिले की ग्राम पंचायत पलका की मनरेगा मजदूर पुष्पा ने बताया। मनरेगा के सहारे खुद का सशक्त बना रही महिलाएं भी अब फिर से घर के काम में लग गई हैं।

ये अकेले पुष्पा की परेशानी नहीं है, प्रदेश के ज्यादातर जिलों के मनरेगा मजदूरों की स्थिति ऐसी ही है, जिन्होंने काम तो किया लेकिन मजदूरी नहीं मिल पायी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की वेबसाइट के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 223.18 लाख मनरेगा मजदूरों हैं।

ग्राम पंचायत पलका के ग्राम प्रधान शाहिर खान बताते हैं, “मनरेगा योजना सही नहीं चल रही है। हमारे यहां यह योजना करीब एक साल से बंद पड़ी है। इसलिए गाँव का विकास भी ठप पड़ा है।” मनरेगा की शुरुआत वर्ष 2006 में हुई थी यह ग्रामीण इलाकों में रोजगार देने के मामले में दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम के रूप में उभरा, लेकिन मौजूदा समय में कार्यक्रम ठंडा पड़ा है।

वहीं वाराणसी जिले के हरहुआ के बीडीओ श्वेतांक सिंह कहते है, “हमारे ब्लॉक मे 100 फीसदी मनरेगा के तहत भुगतान हो चुका है। काम होने के बाद सात दिन के अंदर में मजदूरों का भुगतान हो जाता है। इस बीच काम कम है। त्योहार बाद काम मिलने लगेगा।” वाराणसी जिले के उदयपुर ग्राम पंचायत के प्रधान सुरेंद्र यादव कहते हैं कि करीब 70 फीसदी ही मनरेगा के तहत भुगतान हुआ है।”

सुल्तानपुर जिले के इसूर ग्राम पंचायत के प्रधान वीरेन्द्र वर्मा बताते हैं, “पहले की अपेक्षा काम धीमा हुआ है। बजट न आने की वजह से मजदूर काम नहीं करना चाहते हैं। गाँव में मजदूर मिलते ही नहीं हैं। ज्यादातर लोग काम की तलाश में बाहर निकल गए हैं।” यहीं के मनरेगा मजदूर जंगलीराम बताते हैं, “काम करने से क्या फायदा जब मौके पर पैसा ही न मिले। अब दिवाली है और जेब में पैसा नहीं है ऐसे काम करने से अच्छा है खाली बैठा रहा हूं।” उन्नाव जिले के नवाबगंज के मजदूर रामराज ने बताया, ''मजदूरी के बाद भी कई महीने से पैसा नहीं मिला है। जिला मुख्यालय के अधिकारियों से भी पैसा दिलाने की गुहार लगाई, लेकिन अभी तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई है।''

घट रही रोजगार दिवसों की संख्या

धीरे-धीरे मनरेगा में रोजगार दिवसों की संख्या भी घट रही है। इस समय लगभग प्रति परिवार रोजगार की संख्या 20-25 दिन ही रह गई और ग्राफ लगातार गिर रहा है। शाहजहांपुर जिले के विकास खंड जैतीपुर के नगला देहातमाली की सुदामा (42 वर्ष) ने बताया, “आज मुझे साल में 30 दिन का काम मिल जाए तो मैं खुद को भाग्यशाली मानूंगी। मजदूरी दो-तीन महीने की देरी से मिल रही है इसलिए मर्दों के पास बड़े शहरों में जाकर काम तलाशने के सिवा और कोई चारा नहीं रह गया है।” ग्राम रोजगार सेवक ओमबीर (32 वर्ष) बताते हैं, “करीब तीन माह से मजदूरों को मजदूरी ही मिल रही है इसलिए मजदूरों का लगाव योजना की ओर से हट रहा है।”

पंद्रह दिनों के अंदर भुगतान का है प्रावधान

मनरेगा नियमों के तहत काम करने के 15 दिन के अंदर मजदूरों को उनकी मजदूरी का भुगतान हो जाना चाहिए, लेकिन ब्लॉकों में इस गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है। विभिन्न ब्लॉकों में काम करने के एक माह बाद भी श्रमिकों को मजदूरी नहीं मिल पाई है। ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय तक के अफसरों से गुहार लगा चुके हैं। ऐसे में थक हार कर अब उनका इस योजना से मोहभंग हो रहा है। इस कारण मजदूर पलायन करने को मजबूर हैं।

सितम्बर से बजट खत्म हो गया है। अभी बजट आया नहीं है। दिवाली के बाद आने की सम्भावना है। जैसे ही बजट आएगा भुगतान किया जाएगा।
फूलचंद्र जायसवाल, संयुक्त निदेशक, मनरेगा

    

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