एक बार अपनी योजनाओं और निर्णयों का जमीन पर आंकलन भी करिए सरकार !

Update: 2017-07-29 17:40 GMT
ये देखऩा जरुरी है सरकार बदलने से लोगों को क्या मिला- 

हमारे ध्यान में रहना चाहिए कि विश्व के महानतम योगी वासुदेव कृष्ण ने भगवत गीता में कहा था “कर्मजं हि बुिद्धयुक्ता, फलम्ंत्यक्ता मनीषिणः” अर्थात बुद्धियुक्त कर्म करते हुए फल की चिन्ता न करने वाला मनीषि होता हैं। वर्तमान सरकार के सन्दर्भ में यह सच है कि प्रवासी भारतीयों का सम्मान बढ़ा है, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है, सेंसेक्स नई ऊंचाई पर है, सकल घरेलू उत्पाद बढ़े हैं अन्न भंडार पर्याप्त है। लेकिन अनेक पक्ष चिन्ताजनक भी हैं।

सड़कों के गड्ढे 15 जून तक नहीं भर सके जैसे एक कमजोर फटी धोती में पैबंद लगा देंगे तो दूसरी जगह फट जाएगी। कहां तक पैबंद लगाएंगे। ये गड्ढे दक्षिण भारत की सड़कों में कम क्यों होते हैं और विदेशों में भी क्यों नहीं। यूपी में अधिक गड्ढों का कारण है भ्रष्टाचार जो आज भी गरीबों को सता रहा है। तथाकथित गोरक्षकों के पास कालातीत बहाना है जबकि नागरिक सुरक्षा भयावह है। किसान की आय दूनी होती नजर नहीं आ रही। देश रक्षा पर केन्द्र का ध्यान जरूर है लेकिन प्रदेश में लोगों के जान-माल की यदि गारंटी नहीं तो अन्तर क्या पड़ा सरकार बदलने से। इस तरह अन्त में लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा।

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नई सरकार ने उत्तर प्रदेश में पहले कोई तबादला नहीं किया, समय पर कार्यालय खुलना और थानों में आसानी से रिपोर्ट लिखी जाना एक सुखद अनुभव था। लेकिन कर्जमाफी का निर्णय आर्थिक रूप से इतना बोझिल रहा कि विभागों के पास लक्ष्य पूरा करने के लिए शायद पैसा नहीं बचा। सभी स्कूलों में किताबें अभी तक नहीं मिल सकीं, अध्यापकों की नियुक्तियां टल गईं और हर स्तर पर पैसा बचाने की चिन्ता सता रही है। एक जगह प्रशासनिक पेबंद लगाते हैं दूसरी जगह वही धोती फट रही है।

गोरक्षा पर काम आरम्भ करने के पहले यह नहीं सोचा कि हमारी गायें दूध बहुत कम देती हैं, उनके बछड़ों का किसान को कोई उपयोग नहीं, चरागाह बचे नहीं, गोदुग्ध की इज्जत नहीं, छुट्टा गायें किसान को दुखी कर रही हैं। वह बेच भी नहीं सकता। गोवंश का कितना उपयोग है किसी किसान से पूछिए। उत्पाती बन्दर और फसल विनाशक नीलगायों की तरह किसानों को छुट्टा गायें भी चैन से नहीं रहने देंगी। मोदी जी ने कहा था पहले शौचालय फिर देवालय लेकिन मन्दिर के लिए वे कार्यकर्ता बेचैन हैं जिन्हें अनुकूल वातावरण पाकर अपने समाज को सशक्त करने में लगना चाहिए था।

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कुछ तो कारण होगा कि सरकार द्वारा किए जा रहे काम स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ को पसन्द नहीं आ रहे हैं। क्या वर्तमान सरकार पुरानी नींव पर नई इमारत खड़ी करने का विचार त्याग चुकी है जैसे नेहरू ने महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज त्यागकर ‘‘साइंटिफिक टेम्पर” पर जोर दिया था। देश में न तो ग्राम स्वराज आया और न साइंटिफिक टेम्पर। समय बताएगा वर्तमान सरकार का मार्ग कितना बुद्धियुक्त है।

प्रधानमंत्री द्वारा आतंकवाद और आतंकवादियों पर प्रहार को पहले इतना व्यापक समर्थन नहीं था, जितना अब मिल रहा है लेकिन धारा 370 पर भी फोकस होना चाहिए था जिसका नाम नहीं सुनाई पड़ता। फिर भी अलगाववादियों पर इतना बड़ा प्रहार आजादी के बाद कभी नहीं हुआ। आम जनता रूस और अमेरिका के साथ अच्छे रिश्तों की जहां सराहना करेगी और कश्मीर यदि शान्त हुआ तो सन्तोष की सांस लेगी लेकिन आन्तरिक व्यवस्था में भूख से भी पहले भय समाप्त करने की आवश्यकता है।

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करीब चार महीने बीत चुके हैं स्कूल खुले और कबीर की भाषा में ‘‘बिना गुरु ज्ञान मिले कहो कैसे।” शिक्षामित्रों के सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद अध्यापकों की और भी कमी आएगी। पुरानी सरकारों के कामों की जांच सीबीआई से कराए जाने के साथ ही रचनात्मक सोच भी जरूरी है। परेशानी सरहद के उस पार से और देश के अन्दर के अलगाववादियों से तो है ही लेकिन गोरक्षकों, बजरंग दल, रामसेना, हिन्दूवाहिनी जिनमें संघ का अनुशासन नहीं है उनसे अधिक है। मौजूदा सरकार को विपक्ष तो अपदस्थ नहीं कर पाएगा लेकिन शासक दल के शुभचिन्तक कहे जाने वाले लोग ही उसे अपदस्थ करेंगे।

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