पशुओं के झोलाछाप डॉक्टर खराब कर रहे हैं नस्ल

पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र है लेकिन वर्तमान समय में इन केंद्रों की स्थिति बहुत ही खराब है।

Diti BajpaiDiti Bajpai   15 Sep 2018 9:51 AM GMT

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पशुओं के झोलाछाप डॉक्टर खराब कर रहे हैं नस्ल

लखनऊ। जहां एक ओर सरकार देश में भारतीय गाय की नस्लों को सुधारने के लिए करोड़ों रुपए खर्चा करने में लगी है वहीं दूसरी ओर पशुओं के झोलाझाप इन नस्लों को बर्बाद करने में लगे हुए हैं।

चार महीने पहले अनिल कुमार सिंह ने अपनी देसी गाय का कृत्रिम गर्भाधान (एआई) कराने के लिए प्राइवेट डॉक्टर को बुलाया था। छह बार सीमन चढ़ाने के बाद भी अनिल की गाय ग्याभिन नहीं हुई। खराब सीमन चढ़ने से आज उसकी गाय का यूट्रेस भी खराब हो गया वह अब दूध के काबिल नहीं बची।" हमारे यहां जो अस्पताल है वहां डॉक्टर आते ही नहीं हैं मज़बूरी में प्राइवेट डॉक्टरों को बुलाना पड़ता है। 2500 रूपए खर्च कर चुके है पर गाय नहीं रूकी।" अनिल ने बताया।

अनिल बनारस जिले से 20 किलोमीटर दूर शांहशाहपुर गाँव के रहने वाले हैं। परिवार का खर्च चलाने के लिए पूरी तरह से पशुपालन पर निर्भर हैं। अनिल के पास अभी दो गाय और तीन भैंसें हैं। अनिल बताते हैं, "सरकारी अस्पताल में सीमन चढ़वाने में 30 रुपए का खर्चा आता है और प्राइवेट डॉक्टर 200 रुपए ले लेते है और कोई गारंटी भी होती है कि पशु रूकेगा या नहीं।"

अगर पशुपालक से गाय या भैंस की एक मदचक्र छूट जाता है तो उसे 21 दिन के दूध उत्पादन और पशु के अतिरिक्त खिलाई पिलाई और रखरखाव का खर्च जोड़कर उसे लगभग 3300 रुपए का नुकसान हो जाता है। कभी-कभी यह नुकसान और बढ़ जाता है।

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डॉक्टरों की कमी और कृत्रिम गर्भाधान अनियमतिता का सामना पशुपालकों को आए दिन करना पड़ता है। पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र हैं लेकिन वर्तमान समय में इन केंद्रों की स्थिति बहुत ही खराब है। पशु विशेषज्ञ डॉ कुंदन कुमार बताते हैं, "सरकारी केंद्रों और बायफ संस्था में जो सीमन होता है उसकी गुणवत्ता जांची जाती है साथ ही उसमें यह भी लिखा होता है कि वह सीमन खराब कब होगा, कौन सी प्रजाति का है और किस लैब में उसकी टेस्टिंग हुई है।"

अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ सिंह आगे बताते हैं, "गाँव के प्राइवेट डॉक्टरों को खुद पूरी जानकारी नहीं होती है और वह गलत तरीके से और खराब सीमन से एआई करते हैं जिसका नुकसान पशुपालक को उठाना पड़ता है। यही नहीं कुछ प्राइवेट संस्थाएं खुद से सीमन कलेक्ट करती हैं और गाँवों में प्राइवेट डॉक्टरों से जरिए उनको पहुंचाती हैं। यह सीमन नस्लें खराब कर रही हैं।"


देश में डेयरी उद्योग से छह करोड़ किसान अपनी आजीविका चला रहे हैं। हर छह साल में देश में होने वाली पशुगणना 2012 के मुताबिक भारत में कुल 51.2 करोड़ पशु हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में पशुओं की संख्या 4 करोड़ 75 लाख (गाय-भैंस, बकरी, भेड़ आदि सब) है। इनके इलाज के लिए पशुचिकित्सकों की भारी कमी है। "पांच हजार पशुओं पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन प्रदेश में 40 हजार पशुओं पर एक ही डॉक्टर है। इसके अलावा कई कामों में ड्यूटी लगवा दी जाती है। जब तक अस्पताल खुला रहता है हम पशुपालकों तक पहुंच पाते हैं।" बनारस के आराजी लाइन ब्लॉक के पशुचिकित्सक अधिकारी डॉ आशीष सिंह ने बताया।

वेटरनरी काउसिंल ऑफ इंडिया के मुताबिक पांच हजार पशुओं पर एक पशुचिकित्सक उपलब्ध होना पर ऐसे कुछ ही राज्य होंगे जो इस मानक पूरा कर रहे हैं।

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''हम इतने सालों से गाय पाल रहे हैं। हमारे गाँव में आज तक सरकारी डॉक्टर एआई करने नहीं आए। हमेशा से ही प्राइवेट डॉक्टर को बुलाते हैं। चाहे गाय रूक पाए या न रूक पाए।" सीतापुर जिले के गदनापुर गाँव में रहने वाले रमेश यादव ने बताया।

वर्ष 2017 में संसद में कृषि संबधी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की जिसके मुताबिक पशु चिकित्सा डॉक्टरों और दवाइयों की गंभीर कमी है जो देश में पशुओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग एक लाख 15 हजार पशुचिकित्सकों की जरूरत है और वर्तमान में 60 से 70 हजार ही पशुचिकित्सक उपलब्ध है। रिपोर्ट के मुताबिक सही समय पर उपचार और दवाई न मिलने के कारण बड़ी संख्या में जानवरों की मौत हो जाती है। इससे सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान गरीब छोटे और सीमांत किसानों को होता है।

"पशुपालकों में भी अभी जागरुकता की कमी है। जब वह किसी सरकार या प्राइवेट डॉक्टर को एआई कराने के लिए बुलाते हैं तो वह उस डॉक्टर से कुछ नहीं पूछते कि सीमन किस नस्ल है उसकी गाय के लिए ठीक है या नहीं। किसान को बस इतना मतलब होता है कि गाय ग्याभिन हो जाए।" सीतापुर जिले के कटिया ब्लॉक के केवीके में पशु वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने बताया।


    

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