पशुचिकित्सकों की कमी से जूझ रहा देश, 15-20 हजार गाय और भैंस पर है एक डॉक्टर

Diti BajpaiDiti Bajpai   14 Oct 2017 8:44 PM GMT

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पशुचिकित्सकों की कमी से जूझ रहा देश, 15-20 हजार गाय और भैंस पर है एक डॉक्टरदेश में लगभग एक लाख 15 हजार पशुचिकित्सकों की जरुरत है और वर्तमान में 60 से 70 हजार ही पशुचिकित्सक उपलब्ध। 

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की नगवामऊ गाँव में रहने वाली नीलम सिंह (44 वर्ष) की डेयरी में जब भी कोई पशु बीमार पड़ता है तो उनको सरकारी डॅाक्टर की बजाय निजी डॅाक्टर के भरोसे अपने पशुओं का इलाज कराना पड़ता है, क्योंकि उनके पास के पशुचिकित्सालय में किसी डॅाक्टर की तैनाती ही नहीं हुई।

इस समस्या से नीलम ही नहीं बल्कि पूरा देश जूझ रहा है। 19वीं पशुगणना के अनुसार भारत में कुल 51.2 करोड़ पशुधन (गाय- भैंस, बकरी, ऊंट, भेंड़ समेत सभी पशु) है लेकिन इनका इलाज के लिए पशुचिकित्सकों की भारी कमी है। वर्ष 2017 में संसद में कृषि संबधी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की जिसके मुताबिक पशु चिकित्सा डॉक्टरों और दवाइयों की गंभीर कमी है जो देश में पशुओं को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में लगभग एक लाख 15 हजार पशुचिकित्सकों की जरुरत है और वर्तमान में 60 से 70 हजार ही पशुचिकित्सक उपलब्ध है।

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"मेरी डेयरी में 38 पशु थे लेकिन अब 34 पशु ही बचे है। पिछले महीने मेरी एक गाय बीमार थी उसको प्राइवेट डॅाक्टर को दिखाया था, लेकिन नहीं बची। इससे पहले जनवरी में एक गाय के गले में सूजन होने से उसकी मौत हो गई। कोई डॅाक्टर अगर गाँव आ जाता तो गाय का इलाज हो जाता। न सरकारी कोई मदद मिलती है न डॅाक्टर और न ही दवा।" नीलम सिहं ने बताया।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से ग्रामीण इलाके करीब नगवामऊ गाँव में पिछले आठ वर्षों से नीलम डेयरी चला रही है। डॅाक्टर न होने से नीलम और आस-पास के गाँव के पशुपालकों को निजी डॅाक्टरों का सहारा लेना पड़ता है।

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संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक सही समय पर उपचार और दवाई न मिलने के कारण बड़ी संख्या में जानवरों की मौत हो जाती है। इससे सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान गरीब छोटे और सीमांत किसानों को होता है।

देश में पशुचिकित्सकों की कमी के बारे में राजस्थान के पशुपालन विभाग के निदेशक डॅा अजय कुमार गुप्ता बताते हैं, "देश में पशुचिकित्सकों की कमी तो है। अभी किसी भी राज्य वो स्थितियां नहीं जो इसकी कमी को पूरी कर सकें क्योंकि हर राज्य में बजट का अलग-अलग पैमाना है। उसी के द्वारा ही भर्ती होती है। इनकी कमी को पूरा करने के लिए काफी समय लगेगा।” उनके मुताबिक दो सालों में राजस्थान सरकार इस क्षेत्र में काफी ध्यान दिया है अभी 900 डॅाक्टरों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। अभी हम 12-13 हजार पशुओं पर एक पशुचिकित्सक दे पा रहे हैं।

19वीं पशुगणना के अनुसार भारत में कुल 51.2 करोड़ पशुधन है ।

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वेटरनरी काउसिंल ऑफ इंडिया के मुताबिक पांच हजार पशुओं पर एक पशुचिकित्सक उपलब्ध होना पर ऐसे कुछ ही राज्य होंगे जो इस मानक पूरा कर रहे है। "पिछले पांच सालों से राजस्थान में पशुओं की दवा नि:शुल्क मिलती है। अगर हम डॅाक्टरों की कमी को पूरा नहीं कर पा रहे है तो उनको निशुल्क दवा दे रहे है ताकि ग्रामीण पशुपालकों का पशुओं की दवा पर खर्च बच सके। अगर पशुपालक को अस्पताल में दवा नहीं उपलब्ध हो रही है तो ऐसे में वो मेडिकल स्टोर पर दवा खरीद कर बिल लगाते है। अभी राजस्थान इस पर हर साल 60-70 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है।" डॅा गुप्ता ने बताया। मौजूदा समय में राजस्थान में 3500 पशुचिकित्सक है और 900 पशुचिकित्सकों की भर्ती प्रक्रिया का काम चल रहा है।

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ग्रामीण क्षेत्र में पशुपालन ही वो जरिया है जो किसानों की नियमित आय का साधन बनता है। यही कारण है कि 72 फीसदी ग्रामीण घरों में पशुपालन किया जाता है। "हमारे पशु जब बीमार होते हैं तो हम गाँव के ही डॉक्टर दिखा देते है, गाँव से अस्पताल 8 किलोमीटर दूर मिरहची में है वहां हम बीमार पशु ले नही जा सकते, और अस्पताल पर डॉक्टर मिले या न मिले इसका भरोसा नही है।" ऐसा बताते हैं,

मनीराम (45 वर्ष)। उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मारहरा ब्लॉक के सुल्तानपुर गाँव में मनीराम रहते है। एटा जिलेकी आठ ब्लॉकों में कुल 42 पशु अस्पताल हैं, इनमें 9 पशु अस्पताल में डॉक्टर नही हैं तो वही 35 पशु अस्पतालों में फार्मेसिस्ट के पद खाली पड़े हैं। जिले के ग्रामीण इलाकों में पशु चिकित्सालय की लाचार हालात के कारण अधिकतर ग्रामीण अपने पशुओं का उपचार झोलाछाप पशु चिकित्सकों से कराते हैं।

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संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिकभारत में पशुचिकित्सा आसानी से उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने सभी राज्यों में पशुमित्र (पैरावेट्स) उपलब्ध कराए है लेकिन अभी तक किसी भी राज्यों के पशुपालन विभाग के पास डॅाक्टर और पैरावेट्स की संख्या के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं है।

पशुमित्रों के पास पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण पशुपालकों को भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारतीय पशुचिकित्सा परिपषद के एक्ट 1984 में यह लिखा हुआ है कि पशुमित्र केवल प्रारम्भिक चिकित्सा कर सकते है लेकिन आजकल पशुमित्र पैसा कमाने के चक्कर में योजनाओं की जानकारी छोड़कर चिकित्सा की ओर भाग रहे हैं और एक्ट के खिलाफ काम कर रहे हैं।

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"पूरे राज्य में 280 पशुचिकित्सकों की भर्ती विभाग द्वारा होनी है। अभी 10-15 हजार पर एक पशुचिकित्सक उपलब्ध करा पा रहे है। पशुचिकित्सक की कमी पर बहुत देर ध्यान दिया गया। आने वाले समय में मानकों के अनुसार पशुचिकित्सकों की कमी को पूरा सकेंगे।" ऐसा बताते हैं, सयुक्त निदेशक डॅा सुखदेव राठी, पशुपालन विभाग, हरियाणा।

भारत में इस समय कुल 55 वेटनरी कॅालेज हैं जिनमें एक कॅालेज में छात्रों की क्षमता 60 है। एक साल में 3300 छात्र दाखिला करवाते हैं, जिनमें से 2100 ही छात्र पास होते है। इस हिसाब से हर साल 1200 छात्र पशु चिकित्सक बनने से रह जाते है।

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जहां देश पशुचिकित्सकों की कमी है वहीं दूसरी ओर पशुचिकित्सा के अलावा उनको अलग कामों में लगा दिया जाता है। उत्तर प्रदेश पशुचिकित्साधिकारी संघ के अध्यक्ष डॅा सुधीर कुमार बताते हैं, "पशुचिकित्सकों की कमी तो है ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जितने भी काम होते है, जैसे कोटा सत्यापन, स्वच्छता अभियान में ड्यूटी, मिड डे मील चेक करना जैसे कई कामों में पशुचिकित्सकों की डयूटी लगा दी जाती है। ऐसे में पशुचिकित्सक न तो प्रैक्टिस कर पाते है और न ही पशुपालकों को सही समय पर उपलब्ध हो पाते है। अभी भी प्रदेश में 250 पद खाली पड़े हुए है।"

बाराबंकी जिले के पशुचिकित्सक डॉ. विजय विक्रम ने बताते हैं, "पिछले 19 वर्षों से एक ही पद पर नौकरी कर रहे है। अभी तक कोई प्रमोशन नहीं मिला है। कई पदों पर लोग रिटायर हो गए है और उनके पद खाली पड़े है। विभाग प्रमोशन करे तो नीचे पदों पर नौकरी मिलें।"

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पशुचिकित्सकों के साथ-साथ कई राज्यों में पशु अस्पातालों की कमी है। त्तर प्रदेश पशुपालन विभाग की वेबसाइट से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2,200 पशुचिकित्सालय 2,575 पशुसेवा केंद्र और 5,043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र है। राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार देश में 5000 पशुओं पर एक पशुचिकित्सालय स्थापित होना चाहिए लेकिन उत्तर प्रदेश में 21 हज़ार पशुओं पर एक ही पशु चिकित्सालय उपलब्ध है। ऐसे में पशुओं के इलाज के पशुपालकों को दूर-दूर जाना पड़ता है। पशुचिकित्सक और पशु अस्पतालों के अभाव में उनकी मृत्यु भी हो जाती है।

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