इनसे मिलिए, सड़क किनारे किताब बेचकर आम लोगों तक पहुंचा रहीं हैं हिन्दी साहित्य  

दिल्ली जैसे महानगर में फुटपाथ पर किताबें बेचना कितना मुश्किल हो सकता है ये संजना ही समझा सकती हैं।

Divendra SinghDivendra Singh   8 Jun 2018 3:00 AM GMT

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नौकरी जाने के बाद संजना के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि अब आगे क्या, लेकिन आज वो हर दिन फुटपाथ पर किताबें बेचकर हिन्दी साहित्य के प्रति लोगों को जागरूक कर रहीं हैं।

संस्कृति और कला के लिए मशहूर राजधानी दिल्ली का मंडी हाउस, जहां पर देशभर से कला व साहित्य के प्रेमी इकट्ठा होते हैं, वहीं पर फुटपाथ पर किताबें बेचती हैं संजना तिवारी, दिल्ली जैसे महानगर में फुटपाथ पर किताबें बेचना कितना मुश्किल हो सकता है ये संजना ही समझा सकती हैं।

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बिहार के सिवान जिले की रहने वाली संजना तिवारी का रुझान शुरू से ही साहित्य की ओर था, इसलिए मंडी हाउस में ही एक किताब की दुकान में नौकरी करती थीं। कुछ दिनों तक तो ठीक रहा, लेकिन एक दिन उस दुकान ने उन्हें बिना किसी नोटिस के नौकरी से निकाल दिया। कई जगह नौकरी के लिए कोशिश की लेकिन बात नहीं बन पायी।

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ऐसे समय में संजना के सामने ऐसी परिस्थितियां गईं की दिल्ली जैसे शहर में खाली बैठना मुश्किल लगने लगा। संजना बताती हैं, "वो ऐसा समय था लगता कि क्या करूं, दिल्ली जैसे शहर में जब तक पति पत्नी दोनों जॉब न करते हों घर चलना मुश्किल हो जाता, लेकिन क्या करूं सबसे बड़ी बात तो ये थी, जब मैंने किताब बेचने का फैसला किया तो लोगों का यही जवाब था कि किताब कौन पढ़ता है, फिर भी मैंने लोगों की परवाह न करके ये काम शुरू किया।"

बस यहीं से संजना की शुरूआत हुई, आज दिल्ली से बाहर का भी कोई आता है तो उन्हीं के यहां किताबें खरीदने आता है। कला और थिएटर के लिए मशहूर दिल्ली के मंडी हाउस में श्रीराम सेंटर ऑडिटोरियम के बाहर जमीन पर पुस्तकें बेचने वाली संजना साहित्य के बारे में इतनी जानकारी रखती हैं कि इतना किसी साहित्यकार को भी न याद हो। संजना का घर मंडी हाउस से काफी दूर है, संजना स्कूटी पर लादकर हर रोज किताबें ले जाती हैं, लोग दूर-दूर से उनके पास किताब खरीदने आते हैं। अगर किसी को कोई नई किताब खरीदनी होती है तो उनसे पूछकर ही लेता है, क्योंकि ज्यादातर किताबें इनकी पढ़ी हुई होती हैं।

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अमृता प्रीतम की किताब के पन्ने पलटते हुए संजना बताती हैं, "शुरू से मुझे किताबें पढ़ना पसंद है, अब पढ़ने के शौक के साथ ही कमाई भी हो जाती है, प्रेमचंद्र के पूरे साहित्य को मैंने पढ़ लिया है, नए लेखकों को भी पढ़ती रहती हूं, कई बार लोग

संजजा खुद भी पढ़ती हैं किताबेंं

सड़क पर किताबें बेचने में संजना को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, बारिश में उनकी पूरी किताबें भीग जाती हैं। ऐसे में आस-पास के लोग उनकी मदद के लिए तैयार रहते हैं। लोगों ने कई बार इस बारे में अधिकारियों को भी अवगत कराया, लेकिन कोई मदद करने को अब तक तैयार नहीं हुआ।

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लोगों को लगता है कि अब हिन्दी पाठकों की संख्या कम हो गई है, इस बारे में संजना कहती हैं, "ऐसा नहीं है अब भी लोग हिंदी किताबें पढ़ते हैं, नए लेखकों से ज्यादा लोग पुराने लेखकों की किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।" संजना के पति एक अखबार में नौकरी करते हैं, इनके एक बेटा और एक बेटी भी है, बेटी सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही है और बेटा एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। उनके बच्चों को उन पर गर्व है।

      

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