इन महिलाओं ने पहले अपनों से जीती लड़ाई, खुद पढ़ा और अब दूसरों को कर रहीं साक्षर

Neetu SinghNeetu Singh   6 Sep 2017 8:03 PM GMT

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इन महिलाओं ने  पहले अपनों से जीती लड़ाई, खुद पढ़ा और अब दूसरों को कर रहीं साक्षरये हैं वो शिक्षिकाएं जो ग्रामीण महिलाओं को पढ़ाने का काम करती हैं 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

ललितपुर। शिक्षक दिवस के मौके पर सलाम इन ग्रामीण शिक्षिकाओं को जो कई किलोमीटर पैदल चलकर चूल्हा-चौका करने वाली वंचित महिलाओं को पढ़ाने का काम करती हैं। ये महिलाएं कोई सरकारी मास्टर नहीं हैं और न ही किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जाती हैं। ये वो शिक्षिकाएं हैं जो अपने घर के काम-काज निपटाकर आदिवासी और दलित महिलाओं को पढ़ाने का काम करती हैं।

“देखकर खुशी होती हैं कि मेरी पढ़ाई ये महिलाएं आज बैंक में फॉर्म भरने लगी हैं, कोटेदार से सही नापतौल से राशन देने की बात कह देती हैं, पढ़-लिखकर अब ये अपने बच्चों का होमवर्क कराने लगी हैं और अपनी पंचायत में सवाल भी करने लगी हैं।” ये कहना है सहजनी शिक्षा केंद्र पर पढ़ाने वाली प्रीती पटेल (25 वर्ष) का। पढ़ी-लिखी प्रीती ने शादी के बाद जब इस केंद्र पर पढ़ाने की बात अपने ससुराल में की तो पूरे परिवार ने विरोध किया।

प्रीती की ये लड़ाई अपनों से थी वो बताती हैं, “कई दिन घरवालों को मनाने में लगे, पति ने कह दिया वो मुझे छोड़ने नहीं जायेंगे। हम पैदल ही दो किलोमीटर दूर पढ़ाने जाने लगे, पर आज अपने लिए फैसले से आत्मसंतुष्टि मिलती है। घर से बाहर निकलने पर हमारी खुद की भी जानकारी बढ़ी है।” प्रीती जिले की पहली महिला नहीं हैं जिन्होंने अपने घरवालों के विरोध पर घर से बाहर कदम निकाला हो बल्कि इनकी तरह 42 महिलाओं ने घर के बाहर कदम निकालकर आज हजारों शिक्षा से वंचित महिलाओं को साक्षर कर चुकी हैं। एक गैर सरकारी संस्था सहजनी की मदद से ये शिक्षा केंद्र चलाए जा रहे हैं। हजारों महिलाओं को निशुल्क साक्षर किया जा रहा है।

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सहजनी शिक्षा केन्द्रों पर पढ़ती है ये ग्रामीण महिलाएं

भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय मुताबिक, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 72.99 फीसदी है। इसमें पिछले 10 वर्षों की अवधि में समग्र साक्षरता दर में 8.15 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2001 में 64.84 फीसदी थी वहीं 2011 में 72.99 फीसदी हुई है। कुछ गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से प्रदेश के कई जिलों में साक्षरता केंद्र चलाए जा रहे हैं। इन साक्षर केन्द्रों की वजह से इन आंकड़ों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है।

ललितपुर जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर मड़ावरा ब्लॉक के पहाड़ीकला गांव में रहने वाली भानुकुंवर दो साल से सहजनी साक्षरता केंद्र पर पढ़ाने का काम कर रही हैं। ये अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “इंटर तक पढ़ाई की इसके बाद हमारे पापा इस दुनिया में नहीं रहे। शादी के बाद ससुराल आ गयी, घर में बहुत काम रहता था बाहर निकलने का मौका नहीं मिला, पढ़ाई के बाद भी घर में बेकार बैठे थे। दो साल पहले इस केंद्र के बारे में जानकारी हुई तबसे घर का पूरा कम निपटाकर सुबह 10 बजे से चार बजे तक पढ़ाने जाते हैं।” यहाँ पढ़ाने जाने से भानुकुंवर की खुद भी जानकारी बढ़ी है और आज इनकी गिनती सशक्त महिलाओं में होती हैं।

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जिले में पिछले 15 वर्षों से ज्यादा एक गैर सरकारी संस्था ‘सहजनी’ महिलाओं को साक्षर करने और कई महिला मुद्दों पर काम कर रही है। जिले में इस संस्था द्वारा 42 ‘सहजनी शिक्षा केंद्र’ खोले गये हैं जिसमे अबतक 6365 महिलाएं साक्षर हो चुकी हैं। इस संस्था की कनीजा बताती हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में इन साक्षर केन्द्रों को खोलने का मुख्य उद्देश्य ये था कि जिन महिलाओं और किशोरियों को कभी स्कूल जाने का मौका नहीं मिला या जिनकी पढ़ाई किन्ही कारणोंवश छूट गयी है, उन्हें एक ऐसा मंच मिले जहाँ वो पढ़ने आने से झिझके नहीं।” उन्होंने कहा, “ये केंद्र ग्राम पंचायत में किसी एक घर में खोले गये हैं जहाँ 18-60 वर्ष की महिलाएं और किशोरियां पढ़ने आ सकती हैं। इन केन्द्रों पर ये अपने घर का कामकाज निपटाकर पढ़ने के लिए आती हैं इन्हें कॉपी किताब पेन सब फ्री में दिया जाता है।”

इन केन्द्रों पर ये सीखती हैं लिखना और पढ़ना

इन केन्द्रों पर पढ़ने वाली महिलाओं की बदली जिन्दगी

इन केन्दों पर आदिवासी और दलित समुदाय की वो महिलाएं पढ़ने आती हैं जिनकी या तो कम उम्र में शादी हो गयी थी या फिर जिन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला। एक समय था जब ये महिलाएं निरक्षर होने की वजह से रुपए-पैसे का हिसाब नहीं लगा पाती थीं। इन महिलाओं ने अपनो से लड़ाई लड़कर उम्र की इस दहलीज में न सिर्फ लिखना-पढ़ना सीखा, बल्कि सरकारी योजनाओं की जानकारी होने के बाद अपने हक के लिए पंचायत स्तर पर खुद सवाल भी करने लगी हैं।

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ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 48 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में महरौनी ब्लॉक के बम्हौरी बहादुर सिंह गाँव में रहने वाली सावित्री रजक (35 वर्ष) सहजनी साक्षरता केंद्र के कमरे की तरफ इशारा करते हुए बताती हैं, “इस एक कमरे में हमारे पूरे गाँव की हर जानकारी लगी है। जिलाधिकारी से लेकर ग्राम प्रधान, पंचायत मित्र सभी का नम्बर लिखा है, कितनों को पेंशन मिलनी चाहिए, कितनों को मिल रही है ये सब हमे पता चल जाता है।” वो आगे बताती हैं, “कम उम्र में मां-बाप ने शादी कर दी थी।

घर में इतना पैसा नहीं था कि वो हमें पढ़ा सकें। पचास रुपए का हिसाब लगाना हमारे लिए मुश्किल था, जबसे इस साक्षरता केंद्र पर पढ़ाई करने लगे हैं तबसे घर पर अपने बच्चों को भी पढ़ा लेते हैं। अब 10 हजार रुपए तक का हिसाब भी कर लेते हैं।” सावित्री रजक इस क्षेत्र की पहली महिला नहीं हैं जो पहले निरक्षर थीं और अब साक्षर हो गईं हों बल्कि इनकी तरह हजारों दलित और आदिवासी महिलाएं सहजनी साक्षरता केंद्र पर आकर लिखने-पढ़ने के साथ ही सरकारी योजनाओं की जानकारी ले रही हैं और अब अपने हक के लिए पंचायत स्तर पर सवाल करने लगी हैं।

ये हैं वो शिक्षिकाएं जो घर का कामकाज निपटाकर ग्रामीण महिलाओं को पढ़ाने का काम करती हैं

इन 42 शिक्षिकाओं ने पढ़ाने के अलावा कई कुप्रथाएं भी तोड़ीं

जिले में कई तरह की कुप्रथाएं हैं जो ये महिलाएं वर्षों से सहन करती आयीं हैं पर जबसे ये घर से बाहर निकली इन्होने महिलाओं को पढ़ाने का काम किया तबसे इन्हें लगा कि ये क्यों न एकजुट होकर इन कुप्रथाओं को खत्म करें। बड़े बुजुर्गों के सामने चप्पल पहनकर नहीं जाना, लम्बा घूंघट, कम उम्र में शादी, लड़कियों को न पढ़ाना, लड़का-लड़की में भेद जैसी तमाम कुरीतियाँ थी। जिसे इन ग्रामीण शिक्षिकाओं ने तोड़ने का काम किया और केंद्र पर पढ़ने आ रही महिलाओं को भी प्रेरित किया कि वो बदलाव अपने घर से शुरू करें।

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महरौनी की शिक्षिका उषा अहिरवार (20 वर्ष) बताती हैं, "तीन साल पहले शादी हो गयी थी, घर से नई नवेली बहु का निकलना किसी को मंजूर नहीं था, आज भी पांच किलोमीटर पैदल पढ़ाने जाती हूँ, हमारे यहाँ नल पर तब तक पानी नहीं भर सकते जब तक ऊंची जाति के लोग भरकर न चले जाएं। प्रधान के सामने बैठ नहीं सकते, बैठना है तो जमीन पर बैठें, इन सबका हमने विरोध किया।" वो आगे बताती हैं, “पहले घर से महरौनी तक अकेले नहीं जा पाते थे पर अब तो कहीं भी जा सकते हैं पढ़ाने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ा है।”

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