यूपी के इस लेखपाल की तरह सोच हो तो ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को मिले बेहतर शिक्षा

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   4 Feb 2018 3:48 PM GMT

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यूपी के इस लेखपाल की तरह सोच हो तो ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को  मिले  बेहतर शिक्षाइसी छप्पर के नीचे होती है पढ़ाई

आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों को पढ़ाई का सपना पूरा करना किसी चुनौती से कम नही हैं, इन बच्चों के निरक्षर अभिभावक बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन ऊबड़ खाबड़ पथरीला पगडण्डी रास्ता घनघोर जंगल से गुजरता है। आठ किमी दूरी तय करने के बाद स्कूल हैं, इस दूरी के बीच कोई दूसरा गाँव नही हैं। इस घनघोर जंगल में दूर दूर तक कोई रास्ता बताने को नही मिलेगा, साथ में जंगली जानवरों का डर, ऐसे में ये लोग अपने बच्चों को कैसे पढ़ा पाते। इसी वजह से यहां के लोग ना तो खुद पढ़ पाए, ना ही बच्चों को पढ़ा पाए, लेकिन अब इन बच्चों को गाँव में रोज पढ़ाई करने का ठिकाना मिल गया है।

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ललितपुर मुख्यालय से 90 किमी तहसील मड़ावरा के सुदूर दूरस्थ गाँव पापडा में गौड़ समुदाय रहता हैं, यह यूपी का अंतिम गाँव हैं, इस गाँव में कर्मचारी जाने को कतराते हैं। इस गाँव में सौ प्रतिशत लोग निरक्षर हैं, सभी की आजीविका जंगल पर आधारित हैं, वहीं रोज की दिन-चर्चा में वे खुश हैं, जीवन में शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है, उन्हे नहीं पता खुद की तरह वो बच्चों को ढाल रहे थे।

लोगों की मदद से चल रहा विद्यालय

इनके बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए इसी गाँव में तैनात लेखपाल ने गौड़ समुदाय के लोगों की सोच बदली, इस बदलाव से गाँव के लोगों ने बच्चों को बैठने का लकड़ी का झोपड़ानुमा स्कूल बनाया, इन बच्चों को स्कूल खूब भाता हैं, अब बच्चे यहां ककहरा सीखते हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की इबारत हैं। झोपड़नुमा स्कूल में पढाने वाले तीन शिक्षक सरकारी नही हैं, सरकारी शिक्षकों से कई गुना ज्यादा मेहनत करते हैं। पठन-पाठन सामग्री सहित इन शिक्षकों के प्रोत्साहन राशि पर लेखपाल देशराज यादव अपनी तनख्वाह से दस हजार रुपए हर माह खर्च करते हैं। लेखपाल के प्रयास से इस गाँव के बच्चों में बदलाव आया, जो शिक्षा से जोड़ने की अच्छी पहल हैं।

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झोपड़नुमा स्कूल खुलने के पहले इन बच्चों को पढ़ाई का एक भी शब्द नहीं आता था, परिवार वाले भेजने में रुचि नहीं रखते थे। क्योंकि उन्हे पता नहीँ था कि पढ़ाई क्या होती हैं। अब यहां के शिक्षक खुश हैं, यहां के बच्चो ने मेहनत दिखाई।

पूरा गाँव शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, सभी अनपढ़ लोग हैं, बिना शिक्षा के विकास संभव नही हैं, बच्चे पढे और पढ़कर अपना विकास कर सके, अच्छी शिक्षा लेकर बेहतर जिंदगी जी सकें, यही मेरा उद्देश्य है
देशराज, लेखपाल, पापड़ा गाँव, ललितपुर

इस स्कूल के शिक्षक मिशन सिंह पटेल बताते हैं, "बच्चे कुछ नहीं जानते थे, अब स्कूल में 70 बच्चे आते हैं ये सब इंग्लिश बोलने का प्रयास करते हैं, सवाल करने लगे, टेबल, किताब पढ़ना सीख गये हैं। इन सभी बच्चों को देश के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, देश, प्रदेश की राजधानी, पड़ोसी देशों के नाम सहित बहुत कुछ आने लगा।

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वो आगे बताते हैं, "यहां की पढाई से प्रभावित होकर अन्य गाँवो के भी 20 बच्चे आने लगे। बच्चों को अच्छी राह पर ला सके, अच्छी शिक्षा दे सके, ऐसा हम तीनों शिक्षको का उद्देश्य हैं।"

साल 2014 में कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ छह से 13 साल की आयु समूह में स्कूल न जाने वाले बच्चों की तादात 60 लाख 64 हज़ार है। स्कूल न जाने वाले इन बच्चों में से सबसे ज़्यादा बच्चे उत्तर प्रदेश के हैं।

इन बच्चों को खेलकूद, व्यायाम कराया जाता है, शाम को एक्स्ट्रा क्लास भी लगाई जाती हैं, जिससे उनका शारीरिक मानसिक विकास हो सके इसी स्कूल में पढाने वाले शिक्षक शैलेन्द्र सिंह बताते हैं, "सुबह 9 से 3 बजे तक स्कूल चलता हैं, इसी बीच बच्चे अच्छे से व्यायाम खेल कूद भी करते हैं, इस बारे में सिखाया जाता हैं। हम तीनों शिक्षक यहीं रुकते हैं और शाम की क्लास पांच बजे से एक घंटे के लिए लगाते हैं, जिससे पढाई में कमजोर बच्चे होशियार हो सके।"

पापड़ा गाँव के बच्चों के पास परिषदीय स्कूल की ड्रेस, बस्ता, किताबे, जूते, हैं। इन बच्चों को पठन-पाठन की सामग्री पडोसी गाँव के प्राथमिक स्कूल से मिली। गाँव के झोपड़ानुमा स्कूल में पढने वाले छात्र मनोहर गौड़ बताते हैं, "यहां से आठ किमी दूर गोठरा के प्राथमिक स्कूल से गाँव के बच्चों को कापी किताबे, बस्ते वही से मिले थे, स्कूल दूर होने से कोई नहीं जा पाता था, अब गाँव में स्कूल हैं सभी रोज पढ़ने आते है, पहले कुछ नहीं आता था अब काफी कुछ आने लगा।"

लेखपाल देशराज यादव दो वर्षों से इसी गाँव में तैनात हैं, वो काफी खुश हैं कि मेरे प्रयास से पापड़ा गाँव में परिवर्तन हो रहा हैं। इससे पूर्व बच्चों को पढ़ने का साधन नहीं था, बोलचाल का ढंग नही था, अब काफी बदलाव हुआ है। शिक्षा पर लेखपाल अपनी तनख्वाह में से हर माह दस हजार रुपए का भुगतान करते हैं।

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लेखपाल देशराज यादव बताते हैं, "पूरा गाँव शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, सभी अनपढ लोग हैं, बिना शिक्षा के विकास संभव नही हैं, बच्चे पढे और पढ़कर अपना विकास कर सके, अच्छी शिक्षा लेकर बेहतर जिंदगी जी सके, यही मेरा उद्देश्य हैं।"

देशराज आगे बताते हैं "पापड़ा गाँव के लोग समाज से कटे थे, बातचीत भी नहीं कर पाते थे। यही कोशिश हैं कि ये लोग मुख्यधारा से जुड़े, इस शिक्षा केन्द्र को चलाने के लिए तीन शिक्षक सेवा भाव से काफी मेहनत करते है। वो बताते हैं, "गाँव के लोग राष्ट्रीय पर्व भी नही जानते हैं, इस बार राष्ट्रीय पर्व भी मनाया जायेगा जिससे गाँव वाले समझ सके कि राष्ट्रीय पर्व क्यों मनाते हैं।"

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