भाजपा ने उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देश ठुकराए
डॉ. शिव बालक मिश्र 27 March 2016 5:30 AM GMT
उत्तराखंड में संवैधानिक संकट अचानक नहीं पैदा हुआ, वह काफी समय से चल रहा था। कांग्रेस के बागी विधायकों में कई ऐसे भी थे जिनकी निष्ठा सन्देहास्पद रही थी। यह हो सकता है कि विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले में भाजपा का स्टिंग आपरेशन सहीं हो और यह भी सम्भव है कि भाजपा के समर्थन में 36 विधायक हों जैसा वे दावा कर रहे हैं। तो क्या भाजपा के लोग इतने दिनों से इन्तजार कर सकते थे तो कुछ घन्टे और प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे?
माननीय उच्चतम न्यायालय ने एस आर बोमई प्रकरण में स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं कि अल्पमत और बहुमत का फैसला सदन के पटल पर होना चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए वहां के सभापति ने 28 मार्च का समय दिया था और भाजपा को अपने विधायकों पर भी भरोसा नहीं था अन्यथा इतने उतावले पन का कोई कारण समझ में नहीं आता।
मोदी सरकार ने ढाई साल भी पूरे नहीं किए हैं लेकिन ढलान पर आ गई है। उच्चतम न्यायालय के सुझाव को धता तो बता ही रही है मोहन भागवत जी के सुझाव को भी सत्ता लोभ में नामंजूर कर रही है। आखिर आरक्षण की समीक्षा में कठिनाई क्या है और उच्चतम न्यायालय ने अपने स्पष्ट निर्णय में कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण असंवैधानिक है लेकिन मोदी सरकार यहां भी फैसले को अंगूठा दिखाना चाहती है बस राज्य सभा में बहुमत पूरा होने की देर है।
मोदी सरकार विदेशों से काला धन तो वापस ला नहीं पाई अब तो देश का खरबों रुपया लेकर लोग विदेश भाग रहे हैं। मोदी जी के वित्तमंत्री ने नकली किसानों को खुली छूट दी है कालाधन बनाने और उसे सफेद करने की। इस पर हम अनेक बार लिखते रहे है।
उत्तराखंड के मामले में भाजपा को अपने पुराने कार्यकर्ता और गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रहे हरक सिंह रावत पर भी भरोसा नहीं रहा जो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के वरिष्ठ कार्यकर्ता रह चुके हैं। न केवल बागी विधायकों को जयपुर उड़नछू कराया बल्कि अपने विधायकों को भी राजधानी से हटा दिया। उनकी भी आस्था पर सन्देह जाहिर किया। विश्वास मानिए बाजी पलट जाएगी। जो हुआ, जो हो रहा है और जो होगा सब गलत है। पराजय प्रजातंत्र की हो रही है।
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