यहाँ के गाँवों के बड़े बुजुर्गों की पनाह में है गरुड़ों का ठिकाना

बिहार के भागलपुर का दियारा क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का ठिकाना रहा है, लेकिन गरुड़ पक्षियों के लिए सबसे सुरक्षित घर है; जहाँ गाँव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग़ तक हर कोई शिकारियों से उनकी रखवाली करता है।

Rahul JhaRahul Jha   31 Jan 2024 5:41 AM GMT

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यहाँ के गाँवों के बड़े बुजुर्गों की पनाह में है गरुड़ों का ठिकाना

बर्ड्स इन बिहार बुक के मुताबिक बिहार में प्रवासी पक्षियों की संख्या दिनों दिन घट रही है। वहीं कदवा दियारा इलाके में गरुड़ की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

भागलपुर के कोसी दियारा इलाके का एक हिस्सा दूसरे गाँव जैसा ही है, लेकिन यहाँ से गुजरते समय अगर आपके कानों में पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगे तो समझ जाइएगा आप गरुड़ लोक में हैं।

जी हाँ, आपने ठीक समझा। ये वो इलाका है जहाँ दुनिया से गायब हो रहे गरुड़ मीलों लंबा सफर तय कर परिवार बढ़ाने आते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे उनका आशियाना यहाँ ही क्यों है और क्या है उनका यहाँ से संबंध तो ये भी बता देते हैं।

बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किलोमीटर भागलपुर के इस दियारा क्षेत्र में लोगों को गरुड़ से बहुत प्यार है। इस बात का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इनके आशियाने में खलल न पड़े इस ख़ातिर गाँव के लोग अपनी ज़मीन और पेड़ तक को उनके लिए छोड़ देने को तैयार हो जाते हैं।

गाँव के लोगों का मिला साथ

यहाँ गरुड़ की 'ग्रेटर एडजुटेंट' प्रजाति अधिक रहती है।

आलम ये है कि सर्दी शुरू होते ही गाँवों के लोग चौकन्ने हो जाते हैं, ताकि ठंड और कोहरे की आड़ में कहीं कोई गरुड़ का शिकारी गाँव में न घुस जाए। ये देश का इकलौता सबसे बाद गरुड़ पक्षियों का ठिकाना है।


लेकिन भागलपुर जिले के दियारा क्षेत्र के गाँवों में शुरू से ऐसा नहीं था। गरुड़ पक्षी को लेकर कई भ्रांतियाँ थीं। साल 2004-2005 से पहले लोग दियारा क्षेत्र में जाने से भी डरते थे। 2005 के बाद मंदार नेचर क्लब संस्था को इस जगह पर गरुड़ों के होने की ख़बर लगी। इसके बाद संस्था के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने साल 2006 में पहली बार एक ग्रेटर एडजुटेंट सारस को देखा।

मंदार नेचर क्लब की वजह से गरुड़ स्थल की पहचान की गई। अब सर्दी के चार-पाँच महीने यहाँ पर गरुड़ का ठिकाना रहता है।

भागलपुर के भ्रमरपुर गाँव में हाई स्कूल के पूर्व प्रधानाध्यापक ललन झा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "गंगा और कोसी नदी के बीच स्थित होने की वजह से यहाँ जलाशय की कोई समस्या नहीं है; पूरे क्षेत्र में शुरू से पीपल, कदम्ब, बरगद के पेड़ ख़ूब हैं जहाँ गरुड़ के प्रजनन में कोई दिक्कत नहीं होती।"

गाँव के बाहर ही भागलपुर वन विभाग का एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर लिखा है - दुनिया में सबसे लुप्तप्राय गरुड़ भागलपुर में कदवा दियारा का निवासी है।

"इस वजह से यहाँ प्रवासी पक्षी हमेशा से आते रहे है, जिसमें गरुड़ भी शामिल था; हालाँकि सरकार की नज़र 2005 के बाद इस क्षेत्र पर पड़ी और इससे इतना हो पाया कि पूरा प्रदेश अब गरुड़ की वजह से देश में प्रसिद्ध हो रहा है। " ललन झा ने आगे कहा।


अब तो दियारा क्षेत्र में कदवा गाँव के अलावा खैरपुर पंचायत के आश्रम टोला, कासिमपुर, लखमीनिया, बागरी टोला और प्रताप नगर में भागलपुर और बाँका जिले के दूसरे गाँव के लोगों के अलावा पत्रकार, पर्यावरणविद् और सरकारी कर्मचारी लगातार जाते रहते हैं।

गरुड़ प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में है। इसके साथ ही यह भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची IV के तहत भी सूचीबद्ध है। गरुड़ पक्षी केवल कंबोडिया, असम और बिहार के भागलपुर में पाया जाता है।

जागरूकता से बनी बात

मंदार नेचर क्लब संस्था के संस्थापक अरविंद मिश्रा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "गरुड़ पक्षी को लेकर पहले गाँव में कई तरह की भ्रांतियां थी, जिसको लेकर हमने गाँव में जागरूकता कार्यक्रम किया; रामायण के गरुड़ से लेकर गरुड़ पुराण के गरुड़ का उदाहरण दिया और महत्व समझया जिससे गरुड़ के संरक्षण में सब योगदान दें। "

अरविंद आगे कहते हैं, "गाँव में हमारे कार्यकर्ता काम करते थे जो गाँव में गरुड़ की सुरक्षा के साथ लोगों को गरुड़ पक्षी के संरक्षण के बारे में भी बताते थे; अभी स्थिति इतनी बेहतर हो चुकी है कि ग्रामीण सिर्फ गरुड़ की सेवा ही नहीं करते बल्कि उन्हें घुमंतू शिकारी से बचाते भी हैं, उनके लिए ज़्यादा से ज़्यादा पौधें लगाते हैं ताकि प्रजनन में दिक्कत नहीं हो, क्योंकि दियारा क्षेत्र जैसे इलाके की पहचान भी इस गरुड़ से होने लगी है।"

अब यहाँ गरुड़ों की संख्या 600 से ज़्यादा हो चुकी है। सितंबर महीने में ये पक्षी यहाँ प्रजनन के लिए आते हैं और मार्च के आखिर तक अपने बच्चों को साथ लेकर उड़ जाते हैं।

गाँव के बाहर ही भागलपुर वन विभाग का एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर लिखा है - दुनिया में सबसे लुप्तप्राय गरुड़ भागलपुर में कदवा दियारा का निवासी है।

कदवा दियारा के रहने वाले प्रशांत कहते हैं, "22 दिसंबर 2023 को पेड़ से गिरने पर एक गरुड़ को चोट लग गई थी, जैसे ही मुझे इसकी जानकारी मिली मैंने गाँव के ही डॉक्टर नगीना राय को जानकारी दी; इसके बाद डॉक्टर साहब ने प्राथमिक इलाज किया और भागलपुर के अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया।"

कदवा दियारा में गरुड़ पक्षियों के संरक्षण के लिए यह घटना आम है। डॉक्टर नगीना राय कहते हैं, "यहाँ सभी ग्रामीणों का पहला कर्तव्य गरुड़ संरक्षण है; साल 2020-21 में इस इलाके से सरकार फोरलेन सड़क निकाल रही थी जिसमें कई बड़े पेड़ कट जाते, गाँव के लोगों की अपील पर फोरलेन सड़क का रास्ता बदल दिया गया।"

"उसी तरह एक हाई वोल्टेज तार में आने की वजह से गरुड़ मर गया, फिर प्रशासन ने गाँव के लोगों के कहने पर उस तार को दूसरे रास्ते से निकाल दिया; खानाबदोश लोग शिकार करने भी इस इलाके में आते हैं लेकिन जहाँ-जहाँ गरुड़ पक्षी का आशियाना है वहाँ एक भी शिकारी आपको नहीं मिलेगा; सब सजग हैं, शिकारी गरुड़ के अंडों का शिकार करने आते हैं; अब तो कुछ ग्रामीणों को प्राथमिक उपचार संबंधित प्रशिक्षण भी मिल चुका है ताकि वे ज़रूरत पड़ने पर गरुड़ का इलाज कर सके। " डॉ नगीना ने गाँव कनेक्शन से आगे कहा।


पर्यावरण वन विभाग के बिहार बर्ड्स बुक के मुताबिक बिहार में प्रवासी पक्षियों की संख्या दिनों दिन घट रही है। वहीं कदवा दियारा इलाके में गरुड़ की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के स्टेट कोऑर्डिनेटर पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा के अनुसार 2006 में इस इलाके में गरुड़ की संख्या लगभग 70-80 थी। अभी इस इलाके में लगभग 600-700 के बीच है।

ग्रामीणों के अलावा स्वयं सेवी संस्था और वन विभाग का भी इसमें योगदान है। गरुड़ संरक्षण के लिए भागलपुर पक्षी महोत्सव में कुछ ग्रामीणों को सरकार ने सम्मानित किया।

गरुड़ संरक्षण को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने भागलपुर सुंदरवन में गरुड़ पुनर्वास केंद्र बनाया है। कहीं गरुड़ बीमार पड़ जाता है या वह पेड़ से गिरकर घायल होता है तो वन विभाग उसे गरुड़ पुनर्वास केंद्र लाकर उसका इलाज करता है। जब वो स्वस्थ हो जाता है तो उसे छोड़ दिया जाता है।

पर्यावरणविद् ज्ञानेंद्र ज्ञानी बताते हैं, "गरुड़ की वजह से इस पूरे इलाके में खेत में आपको चूहा देखने को नहीं मिलता है; चूहे से होने वाले नुकसान के लिए किसानों को कुछ नहीं करना पड़ता है, साँप भी इस इलाके में कम रहता है जबकि जंगल और नदी की वजह से यहाँ सांप के काटने की घटना बहुत होती थी।"


बिहार में प्रवासी पक्षियों का शिकार आम बात है, शिकारी सर्दियों के इंतज़ार में रहते हैं कि कब पक्षी आएं और वो शिकार करें। शिकारी प्रवासी पक्षियों का माँस बेचते हैं जो हज़ार रुपए तक बिक जाता है।

भागलपुर के पूर्व वन प्रमंडल पदाधिकारी भरत चिंतापल्ली के प्रयास से कदवा दियारा को ओईसीएम का टैग मिला है, जो जैव विविधता को बढ़ावा देने वाले क्षेत्रों को वर्गीकृत करता है। ओईसीएम टैग किसी विशेष क्षेत्र में पक्षी संरक्षण प्रयासों को बेहतर बनाने में मदद करता है।

भरत चिंतापल्ली बताते हैं, "भागलपुर प्रशासन कदवा दियारा इलाके को गरुड़ संरक्षण में विकसित करने के लिए लगातार काम कर रहा है। इसके विकास के कई उदाहरण आप देख सकते हैं।"

गरुड़ के लिए मशहूर यहाँ के गाँव के लोगों का कहना है कि इस एरिया को टूरिस्ट विलेज के रूप में विकसित करना चाहिए, जिससे लोगों को गरुड़ के बारे में जानने का मौका मिले।

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