एक छत के नीचे पशुपालकों को मिल रही पशुओं के पोषण से लेकर इलाज तक की सारी जानकारियां

छोटे पशुपालकों को जागरूक करने और उन्हें उन्नत पशुपालन तकनीकी बताने के लिए हेस्टर और गाँव कनेक्शन के द्वारा उत्तर प्रदेश के दस जिलों कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

Diti BajpaiDiti Bajpai   13 July 2018 10:11 AM GMT

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पिपराइच (गोरखपुर)। "दो से तीन किलो शरीफे की पत्ती ले लें और इस पत्ती को तीन से चार लीटर पानी में डालें जब एक लीटर पानी बच जाए तो पशु के आस पास इसका छिड़काव कर दें और फिर एक हफ्ते बाद इसका छिड़काव करें 70 से 80 प्रतिशत मच्छर गायब हो जाएंगे, "छोटे पशुपालकों को जानकारी देते हुए हेस्टर कंपनी के सीनियर एरिया सेल्स मैनेजर लाल जी द्विवेदी ने बताया।

छोटे पशुपालकों को जागरूक करने और उन्हें उन्नत पशुपालन तकनीकी बताने के लिए हेस्टर और गाँव कनेक्शन के द्वारा उत्तर प्रदेश के दस जिलों (गोरखपुर, सीतापुर, बाराबंकी, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फैजाबाद, वाराणसी, चंदौली, आज़मगढ़, गोंडा) कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। गोरखपुर जिले के पिपराइच ब्लॉक के राउतापार गाँव में पहले कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस कार्यक्रम में गाँव के छोटे पशुपालकों ने भाग लिया। साथ ही पशुपालकों ने विशेषज्ञों के सामने अपनी समस्याओं को भी बताया।

कम खर्चे में, कम स्थान और कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का अहम योगदान है। ऐसे में पशुपालकों को नुकसान न उठाना पड़े इसके लिए हेस्टर और गाँव कनेक्शन ने साझा प्रयास कर रहा है।

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"ज्यादातर पशुपालक अपने अंदाज से पशुओं की नांद बनवा देते हैं, नांद गलत बनाने से पशुपालक को एक लीटर दूध का नुकसान होता है। इसलिए हमेशा 27 इंच ऊंचाई की ही नांद बनवानी चाहिए।" कार्यक्रम में पशुपालकों को पशुओं की नांद की महत्वता बताते हुए लाल जी ने बताया, "कोई पशु छोटा होता कोई बड़ा। इसलिए नांद की एक ही ऊंचाई रखनी चाहिए, अगर ज्यादा ऊंची है तो जब पशु चारा खाता है तो गले पर दवाब बनता है और वो चारा ठीक से खा नहीं पाता है। और अगर नांद नीचे है तो वो झुक के खाता है जिससे उसका दो अंगुल खाली रह जाएगा, जिससे एक लीटर दूध का नुकसान होता है। पशु आराम से चारा खाएगा तो दूध भी अच्छा देगा।"


ज्यादातर पशुपालक जानकारी और आर्थिक तंगी के चलते अपने पशु को न तो पूरी खुराक दे पाते हैं और न ही वक्त पर दवा, जिससे पशुपालक को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में छोटे पशुपालकों की आमदनी को बढ़ाने के लिए, उन्नत तरीके से पशुपालन और पशुपालकों को जागरुक करने के लिए हेस्टर बायोसाइंसेज ने एक समर्पित विभाग 'वेटनरी सोशल बिजनेस' बनाया है जो उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड में छोटे पशुपालकों को जागरूक करने का काम कर रहा है। अंतराष्ट्रीय संस्था गाल्वमेद के सहयोग से ये काम भारत के बाहर नेपाल और अफ्रीका जैसे देशों में भी रहा है।

हेस्टर कंपनी के सहायक उपाध्यक्ष डॉ. राहुल श्रीवास्तव बताते हैं, "जानकारी के अभाव में छोटे पशुपालकों को कम मुनाफा हो पाता है। छोटे पशुओं को बाजार में बेचने में भी कई नुकसान पशुपालक को होते हैं। इसलिए हमने 'वेटनरी सोशल बिजनेस' विभाग बनाया है, जिसमें सहयोगी सस्थाओं, पशुचिकित्सकों और विशेषज्ञों की मदद से छोटे पशुपालकों को जागरूक करने का काम रहे हैं। इसमें पशु स्वास्थ्य, टीकाकरण, पशु पोषण की जानकारी दी जा रही है।"

ज्यादातर पशुपालक आर्थिक रूप व सामाजिक रूप से कमजोर यानि गरीब और पिछड़े वर्गों के होते हैं। आंकड़ों की बात करें तो भारत में लगभग 70 फीसदी बकरी और भेड़, सीमान्त और छोटे किसान या भूमिहीन मजदूरों के द्वारा पाली जाती हैं। पशुपालकों के लिए ये पशु न सिर्फ उनकी रोजमर्रा की कमाई का जरिया बल्कि वो बैंक होते हैं जो जरुरत पड़ने पर उनकी आर्थिक मदद करते हैं। इसलिए इस मुहिम के जरिए पशुपालकों को बताया जाएगा कि कैसे करें पशुओं की ठीक से देखभाल, क्या हो उनका खानपान ताकि वो बीमार कम पड़े और उनसे फायदा ज्यादा मिले कैसे पशु पालन को फायदे का सौदा बनाना है।


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कार्यक्रम में मौजूद गोरखपुर जिले के पिपराइच ब्लॉक के पशुचिकित्सक डॉ. विकास सिंह ने बताया, "पशुपालक चाहे कोई भी पशु पाल रहा है उसकी साफ-सफाई बहुत जरूरी है क्योंकि साफ-सफाई से ही 80 प्रतिशत बीमारियां खत्म हो जाती है। पहले थनैला दवाइयों से ठीक हो जाता था लेकिन अब काफी भारी दवाइयां देनी होती हैं तब भी नहीं ठीक हो पाता है और थनैला साफ-सफाई न रखने से होता है।"

कार्यक्रम में पशुचिकित्सक डॉ. सिंह ने पशुपालन विभाग द्वारा चलाई जा रहे खुरपका-मुंहपका टीकाकरण अभियान और बैकयार्ड मुर्गीपालन के बारे में छोटे पशुपालकों को जानकारी दी। कार्यक्रम में ग्राम प्रधान प्रतिनिधि दीनदयाल यादव, जिला पंचायत सदस्य सर्वजीत गौड़ की भी सहभागिता रही।

राउतापार गाँव के संजय सिंह पिछले कई वर्षों से मुर्गी पालन कर रहे हैं। संजय सिंह बताते हैं, "गाँव में अगर ऐसे ही समय-समय पर जानकारी मिल जाए तो हम लोगों को काफी लाभ होगा। पशुओं का इलाज कराने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है अगर ऐसी पशु चौपाल हर महीने हो तो हमारी समस्याएं ऐेसे ही कम हो जाए।"

पशुओं में बांझपन बड़ी समस्या

दुधारू पशुओं में बांझपन एक बड़ी समस्या बनती है। "पशुओं में बांझपन का मुख्य कारण पोषक तत्वों की कमी। जब भी आपके पशु के रीढ़ की हड्डी वाले हिस्से पर बाल पूंज में खड़े हुए दिखाई पड़े तो समझ जाए की पशुपालक को पोषक तत्वों की कमी है।" पशुओं में बांझपन को देखने के लिए हेस्टर कंपनी के सीनियर एरिया सेल्स मैनेजर लाल जी द्विवेदी ने बताया, "इसके अलावा पशुओं के थन के आस-पास बाल बढ़ने लगे तो समझे कि उनके रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। ऐसे में पशुओं को संतुलित आहार देना बहुत जरूरी है। पशुओं में कैल्शियम और पोषक तत्वों की कमी नहीं होने देना चाहिए।"


इस तरह पशुओं में खत्म करे किलनी

"अगर पशुओं में किलनी लगी होती है तो वो पशु एनीमिक (खून की कमी) होता है। वो बार-बार अपनी पूंछ हिलाता है, जिससे उसकी ताकत भी खत्म होता है। इसके लिए ऑलगान दवा को दो लीटर पानी में 4 एमएल मिलाएं और उससे पशु को नहलाएं। इससे पशुओं में जूं और किलनी खत्म हो जाएगी।" जानकारी देते हुए पशुपालकों को लाल जी द्विवेदी ने बताया, "पशु में भीतरी कीड़े की काफी नुकसान करते है। पांच किलो राशन अगर आप अपने पशुओं को देते है तो डेढ़ किलो राशन पशुओं के अंदर मौजूद कीड़े खा जाते हैं। इसके लिए पशुओं को फेनसेफ आई दवा दें। हर तीन महीने में पशु को पेट के कीड़े की दवा जरूर दें।"

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मुर्गीपालक साफ-सफाई का रखे ध्यान होगा ज्यादा मुनाफा

मुर्गीपालन एक ऐसा व्यवसाय है जिसको कम पू्ंजी, कम समय और कम मेहनत में करके अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है, लेकिन इस व्यवसाय में जरा सी लापरवाही हुई तो काफी बड़ा नुकसान मुर्गीपालकों को होता है। मुर्गीपालकों को जानकारी देते हुए हेस्टर कंपनी के वेटनरी सेल्स एग्जीक्यूटिव आशीष कुमार ने बताया, "अगर बाड़े में साफ-सफाई है तो उन्हें कोई बीमारी नहीं होगी। इसके अलावा जब भी मुर्गियों को बाड़े मे लाए तो छह दिन के बाद उनका टीकाकरण की जो प्रक्रिया है उसको शुरू कर दें। क्योंकि मुर्गियों में कई ऐेसी बीमारियां होती है जिसमें एक साथ सब मर जाती है इससे मुर्गीपालक को काफी नुकसान होता है।"


       

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