बलरामपुर केस: "हमें नहीं पता अब इस घटना का दहशत कितने साल तक रहेगा ? ऐसे माहौल में कौन चाहेगा उनकी बेटी पढ़े और नौकरी करे"

देश में निर्भया, हाथरस, कठुआ और बलरामपुर जैसी घटनाएं कहने को तो किसी एक लड़की के साथ हुईं पर ऐसी घटनाएं दूसरी लड़कियों पर दहशत छोड़ती हैं। इस गाँव में खौफ़ और दहशत में जी रही लड़कियों को ये बातें बेचैन कर रहीं हैं कि अब उन पर फिर से बंदिशें बढ़ा दी जाएंगी। सालोंसाल बाद काफी मशक्कत से इन्हें बाहर निकलने का मौका मिला था लेकिन ये घटनाएं इन्हें कितने साल पीछे ले जायेंगी? पढ़िए बलरामपुर से ग्राउंड रिपोर्ट ...

Neetu SinghNeetu Singh   4 Oct 2020 12:43 PM GMT

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बलरामपुर केस: हमें नहीं पता अब इस घटना का दहशत कितने साल तक रहेगा ? ऐसे माहौल में कौन चाहेगा उनकी बेटी पढ़े और नौकरी करे

नीतू सिंह और मुहम्मद आरिफ़

बलरामपुर (उत्तर प्रदेश)। "अब लड़कियां ब्याह करने के लिए पढ़ाई जाएंगी, फ्यूचर बनाने के लिए नहीं।"

ये कहते हुए पीड़िता की 20 वर्षीय बहन की आँखों में आंसू थे, चेहरे पर निराशा थी, बड़ी बहन को खोने का दुःख था, अब लड़कियों पर बंदिशे बढ़ा दी जायेंगी इस बात की चिंता थी।

"गाँव में लड़कियों को वैसे भी बहुत मुश्किल से बाहर निकलने का मौका मिलता है,ऐसी घटनाओं के बाद तो और मनाही हो जायेगी। अब इस घटना का ही लड़कियों को सालोंसाल उदाहरण दिया जाएगा। मैं ही जब बाहर निकलूंगी लोग यही कहेंगे, 'इसी की बहन के साथ गैंगरेप' हुआ था, हमें जज किया जाएगा, गलत ठहराया जाएगा," ये कहते हुए पीड़िता की बहन की आवाज़ काँप रही थी, बहन को खोने की तकलीफ थी पर समाज के रवैए पर नाराजगी भी थी।

इस घटना ने सिर्फ पीड़िता की बहन पर ही नहीं बल्कि क्षेत्र की दूसरी लड़कियों के मन पर गहरा आघात किया है। क्षेत्र की लड़कियाँ इस घटना से दु:खी हैं , खामोश हैं, अपने बंद होते रास्तों को देखकर चिंतित हैं। वो जानती हैं अब उन्हें सालोंसाल इस घटना का हवाला देकर उनके भविष्य के तमाम रास्ते रोक दिए जायेंगे, उनके सपनों को मार दिया जाएगा, उनकी जल्दी शादी कर दी जायेगी, ऐसे कई सवाल इन लड़कियों को अब परेशान कर रहे हैं।

पीड़िता के घर से 300 मीटर की दूरी पर अपने दरवाजे की ओट से झांकती ज्योति यादव (20 वर्ष) हर आने-जाने वाले को देख रही थी। वो उदास थी, डरी-सहमी थी। आप उनको (पीड़िता) जानती थीं, वो बोली, "हां, वो मेरी सीनियर थीं। हम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। बहुत हंसमुख थी, पढ़ने में होशियार थीं, हमेशा कहती थीं कि वो कुछ अलग करेगी। जब वो नौकरी करने लगीं मुझे उनको देखकर बहुत उत्साह मिलता था।"

पीड़िता की बहन इस समय इस बात से चिंतित है कि अब वो बाहर कैसे निकलेगी?

"जबसे उनके साथ ऐसी घटना हुई है तबसे रात में कई बार मेरी आँख खुल जाती है। पूरी-पूरी रात सोचती रहती हूँ सब कैसे हो गया? अब तो मेरे मम्मी-पापा भी बाहर नहीं जाने देंगे। एक तो उनके साथ बहुत गलत हुआ दूसरा सब उन्हें ही गलती दे रहे हैं कि लड़कियों को पढ़ाने और नौकरी कराने का ये नतीजा होता है," ज्योति के उदास चेहरे पर एक अजीब सी चिंता थी।

देश में जब भी निर्भया, हाथरस, कठुआ और बलरामपुर जैसी घटनाएं सुर्ख़ियों में आती हैं तो सबकी रूह कांप जाती है। कुछ दिनों तक लोगों में आक्रोश रहता है, जगह-जगह धरना प्रदर्शन चलते हैं, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगते हैं, चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है पर धीरे-धीरे ये घटनाएं ख़ामोशी में तब्दील होने लगती हैं। लेकिन इन घटनाओं का कितना गहरा प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों पर पड़ता है आप इन लड़कियों की बातों से समझ सकते हैं।

"हमें नहीं पता अब इस घटना का दहशत कितने साल तक चलेगा? जब ऐसी घटनाएं होंगी तो कोई भी नहीं चाहेगा उनकी बहन-बेटी पढ़े और नौकरी करे," ये कहते हुए पीड़िता की बहन के शब्द लड़खड़ा रहे थे।

देशभर में 29 सितंबर की शाम जब पूरा देश हाथरस गैंगरेप काण्ड पर आक्रोशित था। जब चैनलों की रंगीन खिड़कियाँ बहस-मुबाहिस में उलझी थीं और सियासत ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद नारों में खो गयी थी ठीक उसी वक़्त यूपी के बलरामपुर की ये गलियां देख रहीं थीं कि कैसे एक 22 साल की जिंदादिल लड़की ... सुबह दस बजे हंसते-मुस्कुराते घर से कॉलेज के लिए निकली थी। शाम को जब वो घर लौटी तो बदहवास थी, उसके बाल बिखरे थे, गले में दुपट्टा नहीं था, पैरों में चप्पल नहीं थी, उसके कमर का हिस्सा काम नहीं कर रहा था, कपड़ों में खून के धब्बे थे और उसकी जुबान से बमुश्किल से शब्द निकल रहे थे। उसकी हालत बहुत खराब थी अस्पताल ले जाते वक़्त उसकी मौत हो गयी।

पीड़ित परिवार का आरोप है कि मृतका के साथ गैंगरेप हुआ है, जब उसकी हालत बिगड़ी तो आरोपियों ने उसे रिक्शे पर बिठाकर घर भिजवा दिया। पीड़िता के घर आने और अस्पताल तक ले जाने में आधे घंटे के दौरान ही उसकी मौत हो गयी। परिजनों ने पुलिस की निगरानी में 30 सितंबर को रात में ही पीड़िता का दाह संस्कार कर दिया। हाथरस की बेटी की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी तबतक इस पीड़िता के शव को भी आग लगा दी गयी थी।

कुछ समय बाद हम और आप ये घटना भले ही भूल जाएं पर इस क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं को नहीं पता कि वो कितने साल बाद इसे भूल पाएंगी भी या नहीं। इस घटना के बाद से खौफ़ और दहशत में जी रही इस क्षेत्र की लड़कियों को ये बात बेचैन कर रही है कि अब उन पर फिर से बंदिशें बढ़ा दी जाएंगी।

पीड़िता के घर से 200 मीटर दूर परमावती देवी (35 वर्ष) चिंता जताती हैं, "अब तक लखनऊ, दिल्ली, बंबई में सुनते थे कि एक लड़की के साथ ऐसा हो गया वैसा हो गया, आज तो हमारे गाँव में इतनी बड़ी घटना हो गयी। मेरी चार बेटियां हैं सब पढ़ने जाती हैं। समझ नहीं आ रहा अब इन्हें कैसे पढ़ाउंगी? कुछ ऊंच-नीच हो गया सब यही कहेंगे इस घटना से भी सबक नहीं लिया।"

हाथरस गैंगरेप मामले को लेकर इस समय देशभर में जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे लग रहे हैं, राजनैतिक सियासत तेज है, मीडिया का शोर है? इस शोर से लगभग 550 किलोमीटर दूर बलरामपुर में पीड़िता के घर के अगल-बगल ख़ामोशी पसरी है। महिलाएं और लड़कियाँ दरवाजे की ओट से आने-जाने वाले लोगों को देख रही हैं।

अपनी दादी के साथ चारपाई पर बैठी बारह साल की लक्ष्मी सहमी-सहमी बैठी थी। जब मैंने उससे पूछा क्या तुम्हें डर लग रहा है कि अब स्कूल कैसे जाओगी? वो धीमी आवाज में नाखूनों को कुरेदती हुए बोली, "हमको डर लग रहा है। हमारी पढ़ाई छूट जायेगी, हमें घबराहट हो रही है अब हम पढ़ नहीं पाएंगे। क्या पता मेरी जल्दी शादी भी कर दी जाए?"


महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली छेड़छाड़ या बलात्कार के बाद इनकी मनस्थिति क्या हो जाती है? परिवार और समाज का रवैया कैसा हो जाता है? इस सवाल के जवाब में मनोवैज्ञानिक डॉ नेहा आनंद कहती हैं, "शहरों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के कई माध्यम होते हैं, पर ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों पर ये घटनाएं घहरा आघात करती हैं। उन पर पाबंदियां बढ़ा दी जाती हैं। जब उन्हें उनके अपने ही बाहर निकलने पर टीका-टिप्पणी करते हैं तो वो मानसिक रूप से कुंठित होने लगती हैं, ऐसे मामलों में कई बार अपनों से नफरत भी करने लगती हैं।"

डॉ नेहा आनंद आगे कहती हैं, "इस तरह की घटनाओं के बाद लड़कियों की शादी भी जल्दी होने लगती है। कई लड़कियों की पढ़ाई छुड़वा दी जाती है। कहने को तो वो घटना किसी एक लड़की के साथ होती है लेकिन इसकी दहशत दूसरी लड़कियों पर बहुत गहरा आघात छोड़ती है। उनका शारीरिक और मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।"


    

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