गोकशी के बवाल में फिर मौत, क्‍या पीएम मोदी की भी नहीं सुन रहे गौरक्षक

इंडियास्पेंड ने अंग्रेजी मीडिया की रिपोर्टों के संग्रह और डेटा के माध्यम से इस विश्लेषण को किया है। इसके मुताबिक, पशु आधारित हिंसा के 97 फीसदी मामले (75 में से 73) मई 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद हुए।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   6 Dec 2018 11:33 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
गोकशी के बवाल में फिर मौत, क्‍या पीएम मोदी की भी नहीं सुन रहे गौरक्षक

लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश के बुलंदशहर में गोकशी के शक के बाद हुए बवाल में स्‍याना थाना के इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह की भीड़ ने हत्‍या कर दी। इससे पहले भी गोकशी को लेकर भीड़ द्वारा लोगों की हत्‍या के मामले सामने आते रहे हैं। इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आया है कि पिछले आठ वर्षों (2010 से वर्ष 2017) में पशु से जुड़े मुद्दों पर होने वाली हिंसा के 97 फीसदी मामले पीएम मोदी की सरकार के दौरान हुए।

इंडियास्पेंड ने अंग्रेजी मीडिया की रिपोर्टों के संग्रह और डेटा के माध्यम से इस विश्लेषण को किया है। इसके मुताबिक, पशु आधारित हिंसा के 97 फीसदी मामले (75 में से 73) मई 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद हुए। वहीं, इन आठ वर्षों में हुई पशुवत हिंसा में 56 फीसदी मुसलमान निशाने पर रहे हैं, और 75 घटनाओं में 86 फीसदी (28 में से 24) मुसलमान मारे गए हैं।

ये भी पढ़ें - बुलंदशहर से ग्राउंड रिपोर्ट "हम गाय के कंकाल हाइवे पर लेकर जाएंगे, प्रदर्शन करेंगे, इसे प्रमुखता से कवर करें''


इतनी तादाद में हो रही घटनाओं से पीएम मोदी भी खुद को दूर नहीं रख सके। उन्‍होंने कथित गौरक्षों की हिंसा को गलत करार दिया और खुले मंच से कहा कि इस तरह की घटनाएं बर्दाश्‍त नहीं की जाएगी। 2017 में साबरमती आश्रम की सौंवी वर्षगांठ पर पीएम मोदी ने कहा था, ''क्‍या ये भक्‍ति है, क्‍या ये गौरक्षा है, जहां इंसान को मारने का हक मिल जाता हो। ये बापू (महात्‍मा गांधी) का रास्‍ता नहीं हो सकता।''

बुलंदशहर में इसी ट्राली में रखकर सड़क पर लाए गए थे गायों के कंकाल।


इससे पहले 2016 में पीएम मोदी ने कहा था कि, ''मुझे इस बात पर गुस्सा आता है कि लोग गाय की रक्षा के नाम पर दुकान चला रहे हैं। उनमें से अधिकतर असामाजिक तत्व हैं जो गाय रक्षा के नाम पर चेहरा छिपाते हैं। मैं राज्य सरकारों से कहूंगा कि ऐसे लोगों पर दस्तावेज तैयार करें क्योंकि उनमें से 80 फीसदी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाएंगे जिसे कोई भी समाज मान्यता नहीं देगा।''

लेकिन सवाल ये उठता है कि क्‍या बीजेपी शासित सरकारें देश के प्रधानमंत्री की सुन रही हैं? क्‍या कथित गौरक्षकों पर पीएम की अपील का असर हो रहा है? अगर आंकड़ों की बात करें तो ऐसा होता नहीं दिखता। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2017 के 33वें सप्ताह में, भारत में गाय संबंधित हिंसा की 30वीं घटना दर्ज की गई थी। वहीं, 2017 में गाय संबंधित हिंसा की घटनाएं पिछले आठ वर्षों में सबसे ज्यादा रहीं।



इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि, 2010 से 2017 के बीच कम से कम 53 फीसदी गाय संबंधित हिंसा के मामले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा नियंत्रित राज्यों से सूचित किए गए हैं। पिछले साल गौरक्षा के नाम पर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था।

6 सितंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा था कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए और हर जिले में नोडल अफसर बनाए जाएं। इन अफसरों की जिम्‍मेदारी है कि उनके जिले में गौरक्षक कानून को अपने हाथ में न लें सकें। हालांकि इसके बाद भी राज्‍यों में इसे लेकर खास काम नहीं किया गया। इसके बाद तुषार गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने राज्यों के चीफ सेकेट्री से पूछा था कि क्यों ना उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाए।

इससे पहले अप्रैल 2017 में, पहलू खान की मृत्यु के कुछ दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा शासित राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड और कांग्रेस संचालित कर्नाटक सहित केंद्र और छह राज्यों से जवाब मांगा था और गाय-संरक्षण समूहों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कहा था।

Factchecker.in के आंकड़ों से पता चलता है कि, ऐसी हिंसा में वृद्धि विशेष रूप से 2015 के बाद से देखने को मिलती है। 2015 में गाय से संबंधित 12 हिंसक घटनाओं में से 10 की मौत हुई, 2016 में 24 घटनाओं में से आठ की, 2017 में 11 और 2018 में सात लोगों की मौत की खबर मिलती है। बता दें, ये 2015 में ही उत्तर प्रदेश में मोहम्मद अखलाक सैफी की हत्या हो गई थी। अखलाक के मामला कई दिनों तक सुर्खियों में रहा था।


लगातार बढ़ रहे ये आंकड़े साफ दिखाते हैं कि पीएम मोदी और सुप्रीम कोर्ट की झिड़कियों के बावजूद ऐसे मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे। इस बार भी गोकशी के नाम पर बवाल हुआ और इसमें एक इंस्‍पेक्‍टर के साथ युवक की मौत हो गई। फिलहाल देश में गाय के नाम पर हत्‍या करना उतना ही आम हो चला है जितना कि हमारे और आपके लिए इन खबरों को पढ़ना।

ये भी पढ़ें- बुलंदशहर हिंसा के वीडियो, योगेश की सफाई और गांव वालों की दबी जु़बान क्या कहती है…

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.