एक कलेक्टर ने बदल दी हजारों आदिवासी लोगों की जिंदगी, पढ़िए सराहनीय ख़बर

Anusha MishraAnusha Mishra   26 May 2018 3:21 AM GMT

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एक कलेक्टर ने बदल दी हजारों आदिवासी लोगों की जिंदगी, पढ़िए सराहनीय ख़बरझाबुआ की आदिवासी महिलाएं

#CivilServicesDay जानिए उन अधिकारियों के बारे में जो अपने कार्यों और फैसलों से दूसरे लोगों के लिए उदाहरण बने। #MadhyaPradesh में झबुआ के कलेक्टर रहे आशीष सक्सेना हजारों आदिवासियों की जिंदगी बदलने में अहम भूमिका निभाई

भोपाल। मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले के गाँवों में लगभग 97 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। इन आदिवासियों की शादियों की कहानी बाकी जगहों से कुछ अलग है।

यहां शादी में लड़कियां दहेज देती नहीं बल्कि लेती हैं। एक समय था जब एक शादी में लड़के के घर वालों को 4 से पांच लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते थे। हो सकता है कि इस बात को पढ़कर आपको लगे कि अरे ये तो अच्छी बात है। महिला सशक्तिकरण है लेकिन सच्चाई इससे अलग है। बाकी जगहों की तरह यहां भी दहेज लड़कियों के लिए मुसीबत ही बन जाता था और इसे खत्म करना ज़रूरी था।

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मध्यप्रदेश की समाज सेविका गायत्री बताती हैं, "इन आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं होती कि ये दहेज में ज़्यादा रकम खर्च कर पाएं। पुराने समय में यहां साधारण तरीके से ही शादियां होती थीं लेकिन धीरे - धीरे माहौल बदलने लगा और यहां भी शादियों में तामझाम शुरू हो गया।" वह कहती हैं, "डीजे, अंग्रेज़ी शराब कई तरह के गहनों का लेन देन यहां शादियों में होने लगा जिससे लड़के वालों पर खर्च का बोझ बढ़ने लगा।

यहां शादी में लड़कियां दहेज देती नहीं बल्कि लेती हैं। एक समय था जब एक शादी में लड़के के घर वालों को 4 से पांच लाख रुपये तक खर्च करने पड़ते थे। हो सकता है कि इस बात को पढ़कर आपको लगे कि अरे ये तो अच्छी बात है।

वह बाताती हैं कि यहां के लोग शादी करने के लिए ज़मीन गिरवीं रखकर कर्ज लेने लगे या बंधुआ मज़दूरी करते थे, इसका उल्टा असर महिलाओं पर ही हुआ।" गायत्री बाताती हैं कि कर्ज चुकाने के लिए यहां के लड़के घर छोड़कर आस-पास के क्षेत्रों में मज़दूरी करने चले जाते थे और उनके साथ उनकी नवविवाहित पत्नियों को भी मज़दूरी करने जाना पड़ता था ताकि वो जल्दी से जल्दी कर्ज से मुक्ति पा सकें। यहां से पलायन करने वालें की संख्या बढ़ने लगी थी लेकिन झाबुआ के कलेक्टर आशीष सक्सेना ने इस पलायन को रोकने की दिशा में पहल की।

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झाबुआ के कलेक्टर कार्यालय में जन सम्पर्क अधिकारी अनुराधा गहरवाल बताती हैं कि यहां के कलेक्टर और एसपी ने मिलकर गाँव के मुखिया (जिसे स्थानीय भाषा में तड़वी कहते हैं) से बात की। उन्हें पता था कि गाँव के लोगों को यह समझाना कि शादी में फिजूलखर्ची नहीं करनी चाहिए, उनके लिए मुश्किल है लेकिन अगर गाँव का मुखिया अपने तरीके से इस बात को गाँव वालों को समझाए तो शायद बदलाव आ सकता है।

जाति पंचायत ने सुनाया फरमान

कलेक्टर और एसपी ने मिलकर इसके लिए तड़वी से संपर्क किया और दहेज व शादी में फिज़ूलखर्ची के दुष्प्रभावों के बारे में समझाया और उन्होंने जाति पंचायत के रूप में इसका तोड़ निकाला। जाति पंचायत ने गाँव के लोगों को आदेश दिया कि जो भी अब शादी में 25 हज़ार रुपये से ज़्यादा खर्च करेगा उसे जाति से बेदखल कर दिया जाएगा यानि उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाएगा। इसके साथ ही वहां डीजे बजाने और अंग्रेज़ी शराब पीने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। गायत्री बताती हैं कि गाँव में जाति से बाहर करने को बहुत बड़ा तिरस्कार माना जाता है इसलिए गाँव वालों ने जाति पंचायत के आदेश को मान लिया।

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आ गया बदलाव

अनुराधा गहरवाल कहती हैं कि जाति पंचायत के इस आदेश के बाद गाँव में काफी बदलाव आया है। अब यहां शादी में 25 हज़ार से ज़्यादा रुपये नहीं खर्च होते। अंग्रेज़ी शराब की जगह महुआ की देशी शराब का इस्तेमाल होने लगा और डीजे की जगह यहां पुराने परंपरागत ढोल 'मांदल' ने ले ली।

वह बताती हैं कि इससे यहां के लोगों पर आर्थिक बोझ कम हुआ है, लोग अब कर्ज लेने से बचते हैं और अपने पैसों का इस्तेमाल अपना जीवन स्तर बेहतर करने में करते हैं।

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