एमएसपी और किसानों की आमदनी बढ़ाने के शोर के बीच पढ़िए, स्वामीनाथन ने मोदी सरकार की कृषि नीतियों पर क्या कहा

यह लेख स्वामीनाथन के जन्मदिन के मौके पर एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने इस लेख का हवाला देते हुए एक बयान भी जारी किया है।

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   7 Aug 2018 12:26 PM GMT

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एमएसपी और किसानों की आमदनी बढ़ाने के शोर के बीच पढ़िए, स्वामीनाथन ने मोदी सरकार की कृषि नीतियों पर क्या कहा

काफी समय से विपक्ष और किसान नेता हरित क्रांति के प्रणेता कहे जाने वाले एम. एस. स्वामीनाथन की सिफारिशों पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने अपने एक लेख में किसानों के हालात सुधारने और उनकी आय बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर मोदी सरकार की तारीफ की है। यह लेख उनके जन्मदिन के मौके पर अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने इस लेख का हवाला देते हुए एक बयान भी जारी किया है। प्रस्तुत है स्वामीनाथन के लेख का अनुवाद:

"तत्कालीन कृषि मंत्री राजनाथ सिंह ने 2004 में आजाद भारत और औपनिवेशिक भारत के इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन किया था। भारत सरकार के इस आयोग का उद्देश्य किसानों के परिवारों की समस्याओं पर विचार करना व खेती को और फायदेमंद व नई पीढ़ी के लिए आकर्षक बनाना था।

2006 में आई आयोग की रिपोर्ट में न केवल कृषि क्षेत्र के विकास बल्कि किसानों के परिवारों के आर्थिक उन्नयन के लिए कई सिफारिशें की गई थीँ। एनसीएफ ने किसानों के कल्याण के लिए जो सबसे अहम लक्ष्य तय किया वह था किसानों को एक न्यूनतम आय सुनिश्चित करके खेती की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार लाना। इसके साथ ही यह कि कृषि क्षेत्र के विकास को किसानों की आय में होने वाले सुधारों के लिए उठाए गए कदमों के अनुसार नापा जाए।

कुछ दूसरे महत्वपूर्ण लक्ष्य थे समस्त कृषि नीतियों और कार्यक्रमों का मानवीय और लैंगिक पक्ष सुनिश्चित करना, एक स्थायी ग्रामीण आजीविका पर विशेष ध्यान देना, भूमि सुधार में बाकी बचे काम को पूरा करना और किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा तंत्र और इसमें मददगार सेवाएं मुहैया कराना।



इसके अलावा, प्रमुख कृषि व्यवस्थाओं की उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थायित्व को बढ़ाने के लिए भूमि और जल की जैव विविधता का संरक्षण करना और इसके संरक्षण के लिए आर्थिक हिस्सेदारी को बढ़ावा देना शामिल है। इसके तहत माना गया कि फसलों, खेतिहर जानवरों, मछली और वन्य पेड़ों की जैव सुरक्षा को सुदृढ़ करने से कृषक परिवारों के रोजगार और आय की सुरक्षा होगी साथ ही देश के स्वास्थ्य और व्यापार की सुरक्षा होगी। इसी तरह ग्रामीण भारत में समुदाय केंद्रित भोजन, पानी और ऊर्जा सुरक्षा प्रणालियों को बढ़ावा देने से हर बच्चे, महिला और पुरुष के स्तर पर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

युवाओं को खेती की तरफ आकर्षित करने के लिए एनसीएफ ने खेती को बौद्धिक रूप से उत्तेजक और आर्थिक रूप से फायदेमंद बनाने का सुझाव दिया है। हर कृषि और गृह-विज्ञान स्नातक को उद्यमी बनने और कृषि शिक्षा को जेंडर सेंसेटिव बनाने के लिए कृषि पाठ्यक्रमों और शैक्षिक पद्धतियों के पुनर्गठन पर भी जोर दिया गया है। और अंतत: सूचना, संचार के माध्यमों व जैवतकनीक की मदद से भारत को वैश्विक स्तर पर ऐसा केंद्र बनाने का लक्ष्य है जहां से दुनिया भर में स्थाई कृषि के लिए जरूरी सेवाएं मुहैया कराई जा सकें।


हालांकि एनसीएफ रिपोर्ट 2006 में जमा की गई थी, लेकिन जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली मौजूदा सरकार नहीं आ गई तब तक इस दिशा में कोई खास काम नहीं किया गया। सौभाग्य से पिछले चार वर्षों में किसानों की स्थिति और उनकी आय में सुधार के लिए कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं।

कृषि मंत्रालय को किसान कल्याण मंत्रालय में बदलना इस बात का संकेत है कि अब किसानों के कल्याण के जरिए कृषि का विकास करने पर जोर दिया जा रहा है। सभी किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड जारी किए गए जो अपने आप में एक अहम बात है क्योंकि मिट्टी का स्वास्थ्य पौधे के स्वास्थ्य का आधार है और अंतत: मानव स्वास्थ्य का भी आधार है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए बजटीय और गैर-बजटीय दोनों संसाधन आवंटित किए गए हैं। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से मवेशियों की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधान मंत्री ने पहली अंतर्राष्ट्रीय कृषि जैवविविधता कांग्रेस का भी उद्घाटन किया।

यह भी देखें: स्वामीनाथन आयोग: अगर लागू हो जाएं ये सिफारिशें तो हर किसान होगा पैसे वाला

इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार को बढ़ावा देने से विभिन्न कृषि बाजारों को एक साथ लाने में मदद मिल रही है। इसी प्रकार ग्रामीण कृषि बाजारों की स्थापना उपभोक्ताओं को खुदरा और थोक रूप दोनों में प्रत्यक्ष बिक्री के अवसर मुहैया कराएगा। इस संदर्भ में कृषि उत्पादन और पशुधन विपणन अधिनियम, 2017 और कृषि उत्पादन और पशुधन अनुबंध कृषि सेवा अधिनियम, 2018 का लागू करना उल्लेखनीय है।

एनसीएफ की सिफारिशों के आधार पर एमएसपी का निर्धारण व एमएसपी के तहत और फसलों की खरीद का आश्वासन भी उल्लेखनीय है। पीडीएस, मिड डे मील और आईसीडीएस सहित कल्याणकारी कार्यक्रमों में प्रोटीन समृद्ध दालें और पोषक समृद्ध बाजरा को शामिल करना भी अहम है।

किसानों के परिवारों के लिए अतिरिक्त रोजगार और आय के अवसर मुहैया कराने के लिए मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती, बांस उत्पादन, कृषि-वानिकी, वर्मीकंपोस्टिंग और कृषि प्रसंस्करण जैसी गतिविधियां प्रचारित की जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी सुझाव दिया है कि हमें वे तरीके खोजने चाहिए जिनकी मदद से किसानों की आय को पांच वर्षों के भीतर दोगुना किया जा सके। इसके अलावा चल रही सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने, डेयरी सहकारी समितियों में बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करने और अंतर्देशीय और समुद्री जलीय कृषि को अपनाने और मजबूत करने के लिए समग्र निधियां स्थापित की गई हैं।

यह भी देखें: आखिर क्यों केन्द्र द्वारा घोषित खरीफ फसलों के एमएसपी से राष्ट्रीय किसान महासंघ है निराश ?

इन सबसे ऊपर, कृषि की आर्थिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए एनसीएफ की सिफारिशों के आधार पर लाभकारी मूल्य की हालिया घोषणा एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। इसे रेखांकित करने के लिए, सरकार ने अपनी अधिसूचना में यह सुनिश्चित किया है कि 2018 के खरीफ सीजन के बाद से अधिसूचित फसलों के एमएसपी उत्पादन की लागत का न्यूनतम 150% होंगे; ये मोटे अनाज के लिए 150-200% से लेकर है।

चूंकि किसानों के आंदोलन अभी भी जारी हैं, एक बड़ी मांग कर्ज माफी और एमएसपी पर एनसीएफ की सिफारिशें लागू करने की है। इन दोनों समस्याओं पर ध्यान दिया जा रहा है और उचित कार्रवाई हो रही है।

जय किसान की अवधारणा को वास्तविकता बनाने के लिए ये कुछ कदम उठाए जा रहे हैं। यदि उपरोक्त सभी योजनाएं राज्य और केंद्र सरकारें प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करें, तो खेती और किसानों के भविष्य को ऐसा आकार दिया जा सकता है कि वह भारत को खाद्य और पोषण सुरक्षा दोनों में अग्रणी बना सकता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने तीन वर्ष के लिए 9000 करोड़ रुपए के बजट के साथ राष्ट्रीय पोषण मिशन शुरू किया है। खेती-किसानी को ग्रामीण भारत के प्रमुख उद्योग के रूप में विकसित करने पर उनका जोर देना बताता है कि उनका आग्रह है कि कृषि को आय का स्रोत और हमारे देश का गौरव, दोनों बनाने के लिए हम सभी हर संभव कोशिश करें।"

यह भी देखें: स्वामीनाथन रिपोर्ट से किसानों को क्या होगा फायदा, क्यों बार-बार उठ रही इसे लागू करने की मांग ?

       

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