मुगलकालीन शिल्प गुलाबी मीनाकारी को वाराणसी में मिल रहा है बढ़ावा

देश की दूसरी कलाओं की तरह जो सालों से घटती रहीं और गायब हो गईं, वाराणसी उत्तर प्रदेश की गुलाबी मीनाकारी भी धीरे-धीरे समाप्त हो रही थी। लेकिन, जीआई टैग और सरकार के प्रोत्साहन ने इसे बढ़ावा दिया है। कई महिलाएं इस कला से अपनी रोजी रोटी कमा रही हैं क्योंकि उन्हें इस कला में प्रशिक्षित किया जा रहा है।

Ankit RathoreAnkit Rathore   20 July 2022 10:28 AM GMT

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश। वाराणसी के गाय घाट की तंग गलियों में कहीं एक पुरानी कला, गुलाबी मीनाकारी के संरक्षक कुंज बिहारी सिंह रहते हैं। जो गुलाबी मीनाकारी में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं और उन्होंने इस कला को फैलाने के लिए कई देशों की यात्रा की है।

कहा जाता है यह कला ईरान में उत्पन्न हुई और मुगल काल में इस को भारतीय उपमहाद्वीप में लाया गया, तामचीनी और कीमती धातु की इस कला को जीआई टैग 2015 में मिला था।

शिल्पकार ने बताया, "कला भले ही फारस (ईरान) से आई हो, लेकिन बनारस (वाराणसी) के लोगों ने इसे अपना बना कर इसे प्रसिद्ध बना दिया है।"

तामचीनी के काम ने राजाओं के मुकुटों और उनके सिंहासनों को सुशोभित किया और मुगल इसे वाराणसी ले कर आए तब से यह कला वहां प्रचलित है। एक वक्त था जब हाथियों, घोड़ों, मोर आदि की आकृतियों के साथ मीनाकारी में सोने चांदी के आभूषणों को भी अलंकृत किया जाता था। अब भारतीय देवताओं की मूर्तियों को भी चमकीले नीले, हरे, पीले और लाल रंग में उम्दा मीनाकारी का काम होता है।


वाराणसी में गंगा के किनारे रहने वाले बहुत सारे लोगों के लिए मीनाकारी का काम रोजी रोटी का स्रोत रहा है। इसमें धातुओं की सतह को रंगों से रंगा जाता है, जिसमें गुलाबी रंग प्रमुख है, इसलिए इसका नाम गुलाबी मीनाकारी है।

जैसा कि देश की दूसरी हस्तशिल्प और कलाओं के साथ हुआ, वैसे ही गुलाबी मीनाकारी में भी कुशल कारीगरों की संख्या घटने लगी। 2007 और 2014 के बीच शिल्प लगभग गायब हो गया था, क्योंकि कारीगरों के लिए कोई सरकारी प्रोत्साहन नहीं था।

अपनी मां लीला देवी से शिल्प सीखने वाले कुंज बिहारी ने बताया, "बनारस में इस शिल्प से 250 से ज्यादा लोग जुड़े हुए थे। लेकिन अब मुश्किल से 30 या 40 लोग ही बचे हैं, जो अभी भी इस कला का अभ्यास कर रहे थे।" कुंज बिहारी ने गांव कनेक्शन को बताया,"अब, संख्या बढ़ रही है और बनारस में लगभग 400 कारीगर गुलाबी मीनाकारी का काम कर रहे हैं, जिनमें 200 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं।"

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ने बताया, "जब सोने और चांदी की कीमत बढ़ी, तो कई कारीगरों ने फैसला किया कि वे पान की दुकानें खोलकर या ऑटो चलाकर ज्यादा पैसा कमा सकते हैं।" कुंज बिहारी ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने भी बुरे वक्त का सामना किया है और 2012-13 में, लगभग खुद को एक ऑटो खरीदने के तैयार कर लिया था। लेकिन, मुझे नहीं पता कि ऐसा क्या था जिसने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। मुझे खुशी है कि मैंने अपना विचार बदल दिया क्योंकि अब मुझे एक कलाकार के रूप में पहचान मिल गई है।" उन्होंने बताया कि गुलाबी मीनाकारी कलाकृतियों की कीमत 1 हजार से 1 लाख के बीच है।

केंद्र और राज्य सरकारें पारंपरिक कारीगरों को मंच प्रदान करके क्षेत्रीय कला और शिल्प को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जहां वे प्रदर्शनियों, डेमो आदि के माध्यम से अपना शिल्प दिखा सकते हैं। उन्होंने बताया,"पिछले आठ सालों में सरकार के समर्थन से, अपने काम का प्रदर्शन करने के लिए मैंने सऊदी अरब, दुबई और जिनेवा की यात्रा की है।"

कुंज बिहारी गर्व के साथ बताते हैं कि कैसे पिछले महीने, जर्मनी में G7 की बैठक के दौरान, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन, को कफ़लिंक की एक जोड़ी और अमेरिकी प्रथम महिला जिल बिडेन को एक मोर ब्रोच उपहार में दिया था। दोनों पर गुलाबी मीनाकारी का काम हुआ था।

कुंज बिहारी ने बताया, "पिछले कुछ सालों में, सरकार ने कारीगरों को देश के भीतर और बाहर कई प्रदर्शनियों में अपने काम का प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया है।" उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के प्रोत्साहन ने पहले के कारीगरों को जो दूसरी नौकरियों में चले गए थे, मीनाकरी के काम में वापस आने पर पुनर्विचार करने के लिए हौसला अफजाई की है।

गुलाबी मीनाकारी

गुलाबी मीनाकारी लगभग 400 साल पुरानी कला है, जिसकी उत्पत्ति फारस (ईरान) में हुई है, इस कला में सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं पर डिजाइन उकेरने के बाद उसमें रंग भरे जाते हैं। यह जटिल है और इसमें सही परिणाम के लिए कई चरणों पर सख्ती से पालन करना शामिल है।

रंगों को ठीक से सेट करने के लिए, उच्च तापमान की जरूरत होती है। बहुत कम या बहुत अधिक तापमान काम को खराब कर सकता है। आधार रंग सफेद है जिसके ऊपर दूसरे चमकीले रंगों से चित्र बनाए जाते हैं जिन्हें पहले चंदन के तेल में मिलाया जाता है।


देश में कई तरह के मीनाकरी के कार्य हैं। एक रंग खुला मीना एक ऐसा रूप है जिसमें सिर्फ एक पारदर्शी रंग इस्तेमाल किया जाता है और उसका आउटलाइन सोने से बनाया जाता है; पंच रंगी मीना, जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है, इसमें लाल, सफेद, हरा, हल्का नीला और गहरा नीला पांच रंगों का उपयोग होता है; और अंत में वाराणसी की गुलाबी मीनाकारी जिसका नाम गुलाबी रंग से मिलता है इस मीनाकरी में प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है।

महिला कारीगर

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ने कहा, शहर की 200 से ज्यादा महिलाओं के लिए गुलाबी मीनाकारी का काम आय का जरिया बन गया है। कभी इस काम को सिर्फ पुरुष करते थे, आज महिलाएं घर पर ही दिन में तीन से चार घंटे इस पर काम करती हैं और अच्छी आय अर्जित करती हैं। उनके साथ करीब 50 महिलाएं खुद काम करती हैं।

मास्टर ऑफ कॉमर्स (एम कॉम) की छात्रा चांदनी यादव ने गांव कनेक्शन को बताया, "मैंने यह कला सीखी है और जब से मैं हर महीने लगभग 18,000 से 20,000 रुपये कमाती हूं।" उसने यह कला सीखी है और पांच साल से इसका काम भी कर रही है, और अब दूसरों को भी सिखा रही है।

चांदनी ने एक फैशन डिजाइनर बनने का सपना देखा था लेकिन उसने कहा कि गुलाबी मीनाकारी ने उसे वही उपलब्धि दी। उसको राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भी अपना काम दिखाने का अवसर मिला।

एक अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता तरुण कुमार सिंह एक निजी फर्म के सीएसआर पहल के माध्यम से महिलाओं को शिल्प का प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "ट्रेन से आने वाली करीब पंद्रह महिलाएं दिन में तीन से चार घंटे काम करती हैं और सीख कर हर महीने करीब चार हजार रुपए कमाती हैं।"

तरुण कुमार सिंह के नेतृत्व में शिल्प सीख रही मीनू सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "मैंने यहां गुलाबी मीनाकारी का काम सीखा। मुझे इसमें मजा आता है और मैं कुछ पैसे भी कमाती हूं। " शिल्पकार ने कहा कि महिलाओं के लिए वजीफा बढ़ाने की चर्चा चल रही है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन, अहमदाबाद (गुजरात) की छात्रा अरुंधति, गुलाबी मीनाकारी के काम से इतनी प्रभावित हुई कि वह इस महीने की शुरुआत में 10,000 रुपये की कलाकृतियाँ अपने साथ ले जा रही थी।

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