झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास में लगे हैं मुट्ठी भर कलाकार
झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास में लगे हैं मुट्ठी भर कलाकार

By Manoj Choudhary

झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला जोकि पैटकार समुदाय की संस्कृति, संगीत और परंपराओं की कहानियां बताती है। इस कला में किसी भी तरह के रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं होता है, सारे पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं। गुप्त कालीन कला अब अपने वजूद के लिए लड़ रही है।

झारखंड की सदियों पुरानी पैटकार कला जोकि पैटकार समुदाय की संस्कृति, संगीत और परंपराओं की कहानियां बताती है। इस कला में किसी भी तरह के रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं होता है, सारे पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं। गुप्त कालीन कला अब अपने वजूद के लिए लड़ रही है।

बिहार की टिकुली कला: महिलाओं को सजाने से लेकर उन्हें सशक्त बनाने का सफर
बिहार की टिकुली कला: महिलाओं को सजाने से लेकर उन्हें सशक्त बनाने का सफर

By Lovely Kumari

800 साल पुरानी टिकुली की खूबसूरत कला गुमनामी के अंधेरे में कहीं गुम होती जा रही थी। लेकिन यह कलाकार अशोक कुमार बिस्वास का समर्पण भाव ही था जिसने न केवल इस कला को फिर से जिंदा कर दिया बल्कि इसे 300 से ज्यादा महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया भी बना दिया।

800 साल पुरानी टिकुली की खूबसूरत कला गुमनामी के अंधेरे में कहीं गुम होती जा रही थी। लेकिन यह कलाकार अशोक कुमार बिस्वास का समर्पण भाव ही था जिसने न केवल इस कला को फिर से जिंदा कर दिया बल्कि इसे 300 से ज्यादा महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया भी बना दिया।

With Strings Attached: An old puppeteer is keeping the folk art alive in rural Odisha
With Strings Attached: An old puppeteer is keeping the folk art alive in rural Odisha

By Ashis Senapati

Puppeteers are a fading phenomenon but 74-year-old Fakir Singh is doing his bit by teaching the tricks of his trade to young children in his village in Kendrapara, Odisha.

Puppeteers are a fading phenomenon but 74-year-old Fakir Singh is doing his bit by teaching the tricks of his trade to young children in his village in Kendrapara, Odisha.

सपेरों के कालबेलिया समुदाय की बूटेदार रजाई बनाने वाली कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास
सपेरों के कालबेलिया समुदाय की बूटेदार रजाई बनाने वाली कला को पुनर्जीवित करने का प्रयास

By Chandraprakash Pathak

कालबेलिया समुदाय का अपना पारंपरिक शिल्प है जिसमें ऐक्रेलिक ऊन व रेशम के चटकीले धागों और शीशे जड़कर कपड़े के रिसायकिल टुकड़ों पर चित्रों को उकेरा जाता है। फिर उससे गूदड़ी या रजाई बनाई जाती है। कालबेलिया क्राफ्ट रिवाइवल प्रोजेक्ट इस कला को फिर से जिंदा करने और इससे जुड़े उन कलाकारों को रोजगार दिलाने में मदद कर रहा हैं, जो कमाई का कोई जरिया नहीं होने की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं।

कालबेलिया समुदाय का अपना पारंपरिक शिल्प है जिसमें ऐक्रेलिक ऊन व रेशम के चटकीले धागों और शीशे जड़कर कपड़े के रिसायकिल टुकड़ों पर चित्रों को उकेरा जाता है। फिर उससे गूदड़ी या रजाई बनाई जाती है। कालबेलिया क्राफ्ट रिवाइवल प्रोजेक्ट इस कला को फिर से जिंदा करने और इससे जुड़े उन कलाकारों को रोजगार दिलाने में मदद कर रहा हैं, जो कमाई का कोई जरिया नहीं होने की वजह से दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर हैं।

एक बार फिर ओडिशा की जौकंधेई लाख गुड़िया बनाने वाले पारंपरिक कलाकारों को दिख रही उम्मीद की किरण
एक बार फिर ओडिशा की जौकंधेई लाख गुड़िया बनाने वाले पारंपरिक कलाकारों को दिख रही उम्मीद की किरण

By Ashis Senapati

जौकंधेई ओडिशा की एक पारंपरिक लोक कला है जो राज्य की संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करती है। जौकंधेई गुड़िया आमतौर पर एक पुरुष और एक महिला के साथ जोड़े में होती हैं, इन्हें शुभ प्रतीक माना जाता है।

जौकंधेई ओडिशा की एक पारंपरिक लोक कला है जो राज्य की संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म और आध्यात्मिकता का प्रतिनिधित्व करती है। जौकंधेई गुड़िया आमतौर पर एक पुरुष और एक महिला के साथ जोड़े में होती हैं, इन्हें शुभ प्रतीक माना जाता है।

पारंपरिक शॉल की बुनाई से अपनी आमदनी बढ़ाने वाली डोंगरिया कोंध आदिवासी महिलाएं
पारंपरिक शॉल की बुनाई से अपनी आमदनी बढ़ाने वाली डोंगरिया कोंध आदिवासी महिलाएं

By Ashis Senapati

ओड़िशा में डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय में आदिवासी मोटिफ के साथ शॉल की बुनाई और कढ़ाई करना एक पुरानी प्रथा रही है। सालों पुरानी यही कला रायगडा जिले में 18,00 आदिवासी महिलाओं के लिए आय का एक अहम जरिया भी बन गई है। उनके पारंपरिक शॉल दूर-दूर तक बेचे और खरीदे जा रहे हैं। वे अब अपनी इस मेहनत के लिए जीआई टैग के इंतजार में हैं।

ओड़िशा में डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय में आदिवासी मोटिफ के साथ शॉल की बुनाई और कढ़ाई करना एक पुरानी प्रथा रही है। सालों पुरानी यही कला रायगडा जिले में 18,00 आदिवासी महिलाओं के लिए आय का एक अहम जरिया भी बन गई है। उनके पारंपरिक शॉल दूर-दूर तक बेचे और खरीदे जा रहे हैं। वे अब अपनी इस मेहनत के लिए जीआई टैग के इंतजार में हैं।

She studied till class 9, but is now a businesswoman who supports 200 rural women
She studied till class 9, but is now a businesswoman who supports 200 rural women

By Rajesh Khandelwal

A resident of a village in Rajasthan, Brajesh Bhargav, along with 200 other women, makes 250 different types of jute-based products. She receives bulk orders from Delhi, Jaipur and Agra. Her products under the brand name Raksakhi are listed on Flipkart and Amazon too.

A resident of a village in Rajasthan, Brajesh Bhargav, along with 200 other women, makes 250 different types of jute-based products. She receives bulk orders from Delhi, Jaipur and Agra. Her products under the brand name Raksakhi are listed on Flipkart and Amazon too.

WATCH: Neelesh Misra's '10000 Creators Project' kicks off in Chhattisgarh, MoU signed with Bastar district admin
WATCH: Neelesh Misra's '10000 Creators Project' kicks off in Chhattisgarh, MoU signed with Bastar district admin

By गाँव कनेक्शन

The project, which seeks to connect rural artisans, craftspersons and other creative artists with the urban markets, was launched in Chhattisgarh's Bastar district in the presence of Chief Minister Bhupesh Singh Baghel and Bastar District Magistrate Rajat Bansal. Details here.

The project, which seeks to connect rural artisans, craftspersons and other creative artists with the urban markets, was launched in Chhattisgarh's Bastar district in the presence of Chief Minister Bhupesh Singh Baghel and Bastar District Magistrate Rajat Bansal. Details here.

मणिपुर की लोंगपी पॉटरी: एक ऐसी कारीगरी जो खूबसूरत होने के साथ टिकाऊ भी है
मणिपुर की लोंगपी पॉटरी: एक ऐसी कारीगरी जो खूबसूरत होने के साथ टिकाऊ भी है

By Pankaja Srinivasan

मणिपुर की पहाड़ियों के उनके गांव की सुंदरता काली मिट्टी से बने बर्तनों में भी दिखायी देती है, जिसे बनाने के लिए किसी भी तरह के चाक का उपयोग नहीं किया जाता है। कोयंबटूर में लगी शिल्प प्रदर्शनी में ये मिट्टी के बर्तन दो बहनें प्रेस्ली और पामशांगफी नगसैनाओ लेकर आयीं हैं।

मणिपुर की पहाड़ियों के उनके गांव की सुंदरता काली मिट्टी से बने बर्तनों में भी दिखायी देती है, जिसे बनाने के लिए किसी भी तरह के चाक का उपयोग नहीं किया जाता है। कोयंबटूर में लगी शिल्प प्रदर्शनी में ये मिट्टी के बर्तन दो बहनें प्रेस्ली और पामशांगफी नगसैनाओ लेकर आयीं हैं।

तमिलनाडु की मशहूर कल्लाकुरिची लकड़ी शिल्पकला, जिसे जीआई-टैग भी मिला हुआ है
तमिलनाडु की मशहूर कल्लाकुरिची लकड़ी शिल्पकला, जिसे जीआई-टैग भी मिला हुआ है

By Satish Malviya

कुप्पू स्वामी अपने पिता और दादा को लकड़ी के ब्लॉक के साथ काम करते हुए देखकर बड़े हुए, जिन्होंने सुंदर मूर्तियां बनाईं। वह एक कल्लाकुरिची शिल्पकार भी हैं। उनकी लकड़ी की नक्काशी एक फुट से लेकर चार से पांच फीट ऊंची देवताओं की मूर्तियों तक होती है।

कुप्पू स्वामी अपने पिता और दादा को लकड़ी के ब्लॉक के साथ काम करते हुए देखकर बड़े हुए, जिन्होंने सुंदर मूर्तियां बनाईं। वह एक कल्लाकुरिची शिल्पकार भी हैं। उनकी लकड़ी की नक्काशी एक फुट से लेकर चार से पांच फीट ऊंची देवताओं की मूर्तियों तक होती है।

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