सबसे ज्यादा दूध पैदा करने वाले देश में किसानों को नहीं मिलता सही रेट

सबसे ज्यादा दूध पैदा करने वाले देश में किसानों को नहीं मिलता सही रेट

Diti Bajpai

Diti Bajpai   14 Jun 2019 9:13 AM GMT

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2018 की बात करे तो देश में 176.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। विश्व के कुल दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है। लेकिन इसके व्यापार से जुड़े किसान सही कीमत के लिए तरस रहे हैं। सही कीमत न मिलने के कारण पंजाब से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश तक के किसानों ने पिछले वर्षों में कई आंदोलन किए, लेकिन स्थिति जस की तस है।

भूमिहीन और सीमांत किसानों के लिए डेयरी व्यवसाय उनके जीवनयापन का एक बड़ा जरिया है। करीब 7 करोड़ ग्रामीण परिवार डेयरी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गाय-भैंस को रोजाना खिलाने की लागत ज्यादा होने और दूध के दाम न मिलने से डेयरी किसान अब इस व्यवसाय धीरे-धीरे मुंह मोड़ रहे हैं।अगर इस पर ध्यान नहीं दिया तो वो दिन दूर नहीं जब दूध की नदियां कहने वाले भारत देश में दूध की किल्लत हो जाएगी।


फसलों की तरह तय हो दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य

देश में 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय है। अगर दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होता है तो किसानों को इससे फायदा मिलेगा। उत्तराखंड राज्य पशु चिकित्सा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष कैलाश उनियल बताते हैं, "सरकार को दूध का समर्थन मूल्य तय कर देना चाहिए इससे किसान को प्रोत्साहन मिलेगा साथ ही किसान को पता होगा कि इतना पैसा तो मिलना ही है। अभी जो किसान इस व्यवसाय को मुख्य करोबार बनाए हुए है उनके लिए यह घाटे का सौदा होता जा रहा है।"

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अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ कैलाश बताते हैं "हर क्षेत्र में हरे चारे की समस्या है। पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादातर किसानों को दूसरे राज्यों से हरा चारा मंगवाना पड़ता है। इसलिए सरकार को अलग-अलग क्षेत्र में दूध के दाम तय करने चाहिए। देहरादून में किसानों को 4 रुपए सपोर्ट प्राईस दिया हुआ है फिर भी उनकी लागत के मुताबिक पैसा नहीं मिल रहा है।"


वर्ष 2018 में 1 जून को देशभर के कई किसान संगठनों ने लंबे समय से अपनी मांगों को नहीं माने जाने के विरोध में 'गाँव बंद' आंदोलन किया था। इस गाँव बंद में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब समेत कई राज्यों के किसान शामिल थे। किसानों ने दूध की न्यूनतम कीमत 27 रुपए लीटर करने की मांग के साथ कई मांगें रखी थीं। आंदोलन के बाद भी दूध की कीमतें नहीं बढ़ी।

दूध में उपलब्ध फैट और एसएनएफ के आधार पर ही दूध की कीमत तय होती है। कोऑपरेटिव की तरफ से दूध के जो दाम तय किए जाते हैं, वह 6.5 फीसदी फैट और 9.5 फीसदी एसएनएफ के होते हैं, इसके बाद जिस मात्रा में फैट कम होता जाता है उसी तरह कीमत में कमी आती है।

जो किसान बाजार में दूध बेच देते हैं यानी जो ग्राहकों तक सीधे दूध को पहुंचाते हैं उन्हें तो काफी फायदा हो जाता है लेकिन जो लोग ऐसा नहीं कर पाते उन्हें मजबूरन दूध को तमाम निजी डेयरी कंपनियों के केंद्रों पर औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है। अगर दूध के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो तो किसान को दूध बेचने के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।

दूध के नकली कारोबार से बिगड़ी स्थिति

वर्ष 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलुवालिया देश में बिकने वाले करीब 68 प्रतिशत दूध और उससे बने उत्पादों को नकली बताया था और कहा कि यह उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। अहलुवालिया ने दूध और उससे बनने वाले उत्पादों में मिलावट की पुष्टि करते हुए कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।

प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन से जुड़े और डेयरी संचालक पंजाब के फजिल्का जिले में रहने वाले गुरुप्रीत सिंह संधु ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे पंजाब में 40 प्रतिशत ही दूध शुद्ध है बाकी का 60 प्रतिशत नकली। लेकिन सरकार इसमें कुछ नहीं करती। सरकार को इस पर कड़ी कारवाई करनी चाहिए। अगर मिलावटखोरी पर रोक लगे तो जो दूध 35 रुपए में बिक रहा है उसकी कीमत 50 रुपए के ऊपर होगी, साथ ही लोगों को बिना किसी मिलावट के दूध मिलेगा। "

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प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) के प्रबंधन निदेशक दलजीत सिंह किसानों को दूध के दाम न मिलने की सबसे वजह मिलावटी दूध और उससे बनने वाले उत्पादों को मानते हैं।

पिछले 13 वर्षों से डेयरी व्यवसाय को एक नई दिशा देने के प्रयास कर रही पीडीएफए के दलजीत बताते हैं, "कई वर्षों से हम मिलावटी दूध, घी बनाने वालों को पकड़ा चुके हैं लेकिन सबस्टैंडर्ड (मिलावट के दायरे से नीचे) का हवाला देकर छूट जाते हैं और पांच दिन के बाद धड़ल्ले से अपनी दुकान चलाते हैं। छोटे से बड़े अधिकारी इसमें मिले होते हैं। पैसे देकर सैंपल पास हो जाते है। सरकार कुछ नहीं करती। अगर सरकारें मिलावट को रोके तो किसानों को सीधे लाभ होगा लोगों की सेहत भी नहीं खराब होगी।"


अपनी बात को जारी रखते हुए वे आगे बताते हैं, "देश में मिलावटी दूध और जो उत्पाद बन रहे है उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। अगर उपभोक्ता को मिलावटी दूध से बचना है तो ऐसे किसानों को देखे जो वाकय दूध में मिलावट न कर रहे हो उन्हें बिचौलियों से बचना होगा।"

दूध की मिलावट को लेकर कानून तो बने लेकिन इनका पालन सिर्फ कागजों में ही होता है। "मिलावट करने वालों के लिए कानून बने हैं लेकिन अफसर इन पर कड़ी कार्रवाई नहीं करते। आज भी कई ऐसी जगह है जहां बार-बार छापा पड़ता है लेकिन लोग छूट जाते हैं।" उत्तर प्रदेश के बनारस जिले में पिछले छह वर्षों से डेयरी चला रहे पवन सिंह ने बताया।

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ ए.के सिंह बताते हैं, "नकली दूध पर रोक लगनी जरूरी है अगर सरकार चाहे तो इस पर कड़े कदम उठा सकती है।"

हर ब्लॉक में खुले कॉ-ओपरेटिव, तभी किसान को मिलेगा फायदा

अभी किसान को दूध बेचने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। गुजरात में सफल कॉ-ओपरेटिव का उदाहरण देते हुए उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में पशु विज्ञान वैज्ञानिक डॉ गोविंद वर्मा बताते हैं, ''गुजरात की तरह ही और राज्यों में ब्लॉक स्तर पर कॉ-आपरेटिव बनवाने चाहिए। गुजरात में जो कॉ-आपरेटिव बने उसमें किसान का पहले पंजीकरण किया जाता है। उस पंजीकरण में यह रहता है जितना दूध उत्पादन होगा और जब तब होगा तब तक खरीदा जाएगा।

इसके साथ ही सस्ती दरों में किसान को चारा-दाना, कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण आदि की सुविधा भी मिलती है। इससे किसान को फायदा होता है और दूध की गुणवत्ता भी बनी रहती है।"

दूध से बने उत्पाद बनाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत

देश के डेयरी किसानों की सबसे बड़ी समस्या दूध के दाम न मिलना है। अगर सरकार किसानों को दूध में वैल्यू एडिशन (मूल्य संवर्धन) के बारे में प्रचार प्रसार करे तो किसानों के लिए यह व्यवसाय से मुनाफा होगा। दिल्ली में डेयरी क्षेत्र के जानकार डॉ राहुल श्रीवास्तव बताते हैं, "दूध की कीमतों की बजाय किसानों को दूध से बने उत्पादों के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही डेयरी क्षेत्र को संगाठित करने के लिए एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी) बनाएं इससे किसानों को फायदा मिलेगा।"

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अपनी बात को जारी रखकर डॉ राहुल आगे कहते हैं, "बड़ी बात यह है कि पशुपालकों के पास पशुओं को लेकर सही जानकारी नहीं पहुंच पाती, अगर सरकार प्रचार-प्रसार को मज़बूत करे तो जागरुकता बढ़ने पर किसान अपने आप फायदे में रहेगा।" गाय-भैंस पालने वाले ज्यादातर किसानों को यह पता ही नहीं होता है कि पशुओं के आहार की मात्रा मौसम, उसके वजन और उत्पादन क्षमता के अनुसार रखी जाती है।


डॉ श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को आगे बताया, " कैसे आस-पास उपलब्ध हरे चारे को पूरे साल कैसे प्रयोग में ला सकता है इसके बारे में भी किसानों को जागरूक करने की जरूरत है। इसके साथ ही जो किसान इस क्षेत्र में अच्छा काम करे रहे उनको प्रोत्साहित करे। ताकि और किसानों को प्रेरणा मिले।"

चिलिंग सेंटर बने तो युवाओं को मिलेगा रोजगार

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ ए.के सिंह का कहना हैं, ग्राम पंचायत या ब्लॉक स्तर पर चिलिंग प्लांट लगे तो दूध को दूसरे दिन तक सुरक्षित किया जा सकता है। इससे ज्यादा मात्रा में दूध का कलेक्शन होगा और वैल्यू एडिशन करके प्रोड्क्ट बना सकते हैं। इससे किसान को बेचने के लिए सही जगह मिलेगी और युवाओं को रोजगार मिलेगा।"

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