अगले साल 10 फीसदी ज्यादा होगा चीनी का उत्पादन, बन सकता है सिर दर्द !

बंपर चीनी उत्पादन और पाकिस्तानी से आयात के चलते गन्ना किसानों और चीनी इंडस्ट्री की हालत खस्ता है, ऐसे में अगले साल का अनुमानित रिकार्ड उत्पादन नया सिर्द दर्द बन सकता है। क्योंकि अधिक गन्ना उत्पादन से चीनी की कीमतें गिर सकती हैं।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   16 July 2018 1:10 PM GMT

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अगले साल 10 फीसदी ज्यादा होगा चीनी का उत्पादन, बन सकता है सिर दर्द !

लखनऊ। अगले साल यानी आगामी गन्ना पेराई सीजन 2018-19 में इस साल के अपेक्षा 10 फीसदी ज्यादा यानी करीब 350-355 लाख टन चीनी पैदा हो सकती है। बंपर चीनी उत्पादन और पाकिस्तानी से आयात के चलते गन्ना किसानों और चीनी इंडस्ट्री की हालत हालत खस्ता है, ऐसे में अगले साल का अनुमानित रिकार्ड उत्पादन नया सिर्द दर्द बन सकता है। क्योंकि अधिक गन्ना उत्पादन से चीनी की कीमतें गिर सकती हैं।

चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन (इस्मा) ने 2018-19 सीजन के लिए शुरुआती अनुमान जारी किया है, जिसके मुताबिक अगले साल भी उत्पादन का रिकॉर्ड बनेगा। इस्मा के मुताबिक 2018-19 के दौरान देश में 350-355 लाख टन चीनी पैदा हो सकती है जो अबतक का सबसे अधिक और मौजूदा चीनी वर्ष 2017-18 के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक होगा। इस साल इसमा ने देश में 322.5 लाख टन चीनी पैदा होने का अनुमान जारी किया है।

ज्यादा गन्ना उत्पादन से चीनी की कीमतें तो गिर ही रहीं, कंपनियों के शेयर भी लुढ़के



इस बार भी गन्ने की बंपर पैदावार हुई है और किसानों को गन्ना बेचने और चीनी मिलों से पैसा निकालने में नाको चने चबाने पड़े हैं। किसानों का 20 हजार करोड़ रुपए मिलों पर बाकी है। ज्यादा भंडारण और घटती मांग से चीनी का वैश्विक बाजार भी परेशान है। आगामी चीनी वर्ष में गन्ने का बढ़ता बोवाई रकबा चीनी बाजार को और रसातल में धकेल सकता है, क्योंकि घरेलू चीनी के निर्यात की संभावनाएं न के बराबर हैं, जिससे उद्योग की चिंताएं बढ़ गई हैं।

किसान नेता सरदार वीएम सिंह का कहना है, " हमारे देश में गन्ना किसानों का बड़ा ही बुरा हाल है। देश के गन्ना किसानों का लगभग 20 हज़ार करोड़ रुपया बकाया है। मूल कारण यह है कि शक्कर के अच्छे उत्पादन के बाद भी शक्कर का भाव धराशायी हो गया है। आने वाले सत्र में अगर चीनी का उत्पादन ज्यादा हुआ तो किसानों को इसका लाभ नहीं मिलेगा।"


मेरठ के रहने वाले गन्ना किसान अभिमन्यु त्यागी (33वर्ष) का कहना है, " अगर अगले पेराई सत्र में चीनी का उत्पादन ज्यादा होगा तो चीनी मिलें किसानों का भुगतान नहीं देंगी। मजबूरी में किसान को अपना गन्ना कोल्हू पर बेचना पड़ेगा जहां उन्हें औने-पौने दाम ही मिलेंगे।"

गन्ना के बकाया पिछले कई वर्षों से यूपी समेत पूरे देश में मुद्दा बना हुआ है। सरकार के आदेशों के मुताबिक गन्ने की तौल के 14 दिन के भीतर भुगतान होना चाहिए। लेकिन लाखों किसानों को ये पैसा कई महीनों से नहीं मिला है। पिछले महीने सरकार ने चीनी मिलों को 8000 करोड़ का पैकेज दिया था, बावजूद इसके अभी भी 20 हजार करोड़ किसानों का पैसा चीनी मिलों पर बाकी है।

वहीं गोरखपुर के रक्षवापार निवासी किसान वशिष्ठ कुमार (70वर्ष) का कहना है," कोई भी सरकार किसानों की हितैषी नहीं है। हर साल हमें लगता है कि गन्ने का सही रेट मिलेगा, लेकिन हमेशा निराशा हाथ लगती है। यह बहुत ही चिंता का कारण है जब गन्ने का उत्पादन ज्यादा हो जाता है किसानों को उसका लाभ नहीं मिलता है।"

2030 तक 35 मिलियन टन चीनी की होगी आवश्यकता


इस्मा के मुताबिक इस साल ज्यादा चीनी उत्पादन की वजह से चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आई है, चीनी का एक्स सुगर मिल भाव उसके उत्पादन लागत से करीब 8 रुपए प्रति किलो तक घट गया है। कम भाव की वजह से चीनी इंडस्ट्री पर किसानों का बकाया बढ़ता जा रहा है। 15 मार्च तक इंडस्ट्री पर किसानों का करीब 18000 करोड़ रुपए कर्ज था और ऐसी संभावना है कि यह कर्ज अब 20000 करोड़ तक पहुंच गया है जो सीजन के मौजूदा समय तक अबतक का सबसे अधिक कर्ज है। चालू गन्ना पेराई सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के शुरुआती पांच महीनों में देशभर की चीनी मिलों ने 230.5 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 67.88 टन यानी 41 फीसदी ज्यादा था। ऐसे में चीनी की कीमतों में गिरावट तो आया ही , चीनी कंपनियों के शेयर भी अब तेजी से गिर गए थे।

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पिछले एक साल में चीनी कंपनियों के शेयर 75 फीसदी तक गिरे हैं। चालू सत्र में देशभर में 522 चीनी मिलों ने उत्पादन शुरू किया मगर 28 फरवरी 2018 तक 479 मिलें चालू थीं। बाकी मिलों में उत्पादन बंद हो चुका था। चीनी उद्योग को उबारने के लिए 12 जुलाई को मंत्रियों के समूह की बैठक हुई थी, जिसमें चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ ही एथेनॉल पर जीएसटी को 18 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी करने की सिफारिश की गई थी। जीओएम ने चीनी पर सेस लगाने का समर्थन नहीं किया। अधिकारियों ने बताया कि असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता वाला जीओएम इस मामले पर अटॉनी जनरल की राय का इंतजार करेगा कि मौजूदा जीएसटी व्यवस्था के तहत सेस लगाया जा सकता है या नहीं।

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इस्मा ने सामान्य मानसून का अंदाजा लगाते हुए यह अनुमान जारी किया है और पहला एडवांस अनुमान सितंबर में जारी करेगा। संगठन के मुताबिक इस साल देश में गन्ने का कुल रकबा 54.35 लाख हेक्टेयर रह सकता है जो पिछले साल के मुकाबले 8 प्रतिशत अधिक होगा। संगठन ने यह भी बताया है कि 2013-14 के दौरान भी देश में गन्ने का रकबा लगभग इतना ही था। संगठन ने 2018-19 सीजन के दौरान उत्तर प्रदेश में 130-135 लाख टन और महाराष्ट्र में 110-115 लाख टन चीनी पैदा होने का अनुमान लगाया है। मौजूदा सीजन के दौरान उत्तर प्रदेश में 120.5 लाख टन और महाराष्ट्र में 107.15 लाख टन चीनी पैदा होने का अनुमान है।

भारत में चीनी उत्पादन महंगा

कृषि जानकारों के मुताबिक चीनी उद्योग की समस्याओं की वजह हमारे यहां चीनी उत्पादन महंगा होना है। दुनिया के कई देशों में एक किलो चीनी बनाने में करीब 22 रुपए का खर्च आता है, जबकि भारत में ये 28 रुपए तक पहुंच जाता है। गन्ने की पूरी रिकवरी न होना और गन्ने के बाई प्रोडक्ट (एथनॉल, बैगास, बिजली, खाद) की संख्या काफी कम और उनका उत्पादन भी कम होने के चलते उत्पादन लागत बढ़ती है। अमरीकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार, साल 2017-18 में भारत में चीनी की खपत 265 लाख टन थी जबकि अगले साल चार फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 275 लाख टन होने का अनुमान है। कीमतों में गिरावट से खाद्य प्रशंस्करण उद्योग, रेस्तरांओं व मिठाई की दुकानों व घरेलू मांग जबरदस्त रह सकती है। अमरीकी एजेंसी के आकलन के अनुसार पिछले छह महीने में भारत में चीनी के दाम में 21 फीसदी की गिरावट आई है और पिछले साल से सात फीसदी भाव मंदा है जबकि बीते सितंबर से फरवरी तक त्योहारी मांग तेज रहने से अक्टूबर 2017 में चीनी का भाव 40,300 रुपए प्रति टन हो गया था।

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