केरल बाढ़: लोगों की जान बचाने वाले जांबाज नाविकों की रोजी-रोटी पर खतरा

जिन नाविकों ने केरल में बाढ़ के समय समन्दर में जाकर लोगों की जान बचाई थी, वही लोग अब रोजी-रोटी के लिए परेशान हैं। दूसरों की मदद करने में उनकी नाव टूट चुकी है।

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   19 Sep 2018 1:23 PM GMT

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त्रिवेन्द्रम। जिन लोगों ने केरल में आई बाढ़ में लोगों की जान बचाई, उनकी रोज़ी रोटी पर खतरा मंडरा रहा है। बाढ़ में राहत कार्य में लगे इन मछुआरों की नावें टूट गईं हैं जिनकी मरम्मत के लिए उन्हें आर्थिक मदद चाहिए

अपने साथियों के साथ जैक

केरल में त्रिवेन्द्रम के पास वेलियावेल्ली गाँव में रहने वाले जैक मंडेला को पिछले महीने जब पता चला कि सैकड़ों लोग बाढ़ में फंस गये हैं तो वो अपने साथियों के साथ समन्दर में निकल पड़े। पांच नावें और बारह साथी मंडेला के साथ थे। इन मछुआरों को समन्दर की लहरों से खेलने का अच्छा अनुभव है। लिहाजा पानी उफान पर होने और मौसम खराब होने के बावजूद ये लोग 150 किलोमीटर दूर पट्थनमिता ज़िले के बाढ़ ग्रस्त इलाकों में पहुंच गये और तीन दिन के बीच करीब 1800 लोगों की जान बचाई।

अपनी नाव के साथ जैक

जैक बताते हैं, " हमने कुछ 1750 लोगों की जान बचाई। पंचायत सचिव ने हमें इस काम के लिये शाबाशी और एक प्रमाणपत्र दिया लेकिन बड़ी खुशी है कि हम मौके पर काम आ सके। मौसम खराब था लेकिन हमारे परिवार वालों ने ही हमसे कहा कि जाकर लोगों की जान बचाओ।"

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इस काम के लिए सरकार ने इन मछुआरों को तीन हज़ार रुपये प्रति दिन देने का फैसला किया लेकिन जैक और उनके साथियों ने पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में दे दिया।

टूटी नाव दिखाते जोशी जोज़फ

लेकिन अब इन मछुआरों के सामने एक बड़ी दिक्कत है, अपनी टूटी नावों को ठीक कराने की। राहत कार्य में लगे रहे जैक और उनके साथियों की कई नावों का ऐसा नुकसान हो गया कि अब वह समन्दर मछली पकड़ने लायक नहीं रही..

जैक के साथ राहत मिशन पर गये 27 साल के जोशी जोज़फ कहते हैं, "सरकार ने वादा किया है कि वह हमारी नावों की मरम्मत करेगी। आखिर यही नावें हमारी रोज़ी रोटी का ज़रिया हैं।"

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केवल जैक और उनके ये साथी ही नहीं बल्कि केरल तकरीबन 4500 मछुआरों ने अपनी जान पर खेलकर करीब 70 हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया। महत्वपूर्ण है कि पिछले कुछ सालों में मछुआरों की रोजी-रोटी पर जलवायु परिवर्तन और समुद्र तट रेखा की बर्बादी से बुरा असर पड़ा है। समन्दर में मछलियां पकड़ना मुश्किल हो गया है और इनके काम की सही कीमत भी इन्हें नहीं मिल पा रही। इसके बावजूद जब आपदा आयी तो ये लोग उसी समन्दर में लोगों का जान बचाने के लिए कूद पड़े। इनके परिवार वालों ने भी इनको राहत कार्य करने के लिए प्रेरित किया।

कई नावें इस काबिल नहीं कि दोबारा समन्दर में उतारी जा सकें

उत्तराखंड की 2013 की त्रासदी में भी फंसे लोगों को निकालने में स्थानीय लोगों ने अहम रोल अदा किया.. केरल के इन मछुआरों की हिम्मत और कुशलता से एक बार फिर साबित हो गया कि आपदा प्रबंधन में सर्वश्रेष्ठ राहतकर्मी स्थानीय लोग ही हो सकते हैं लेकिन सरकार को अब इन मछुआरों की मदद करनी होगी ताकि मुश्किल वक्त में दिलेरी दिखाने वाले ये जांबाज़ ठगा महसूस न करें।

      

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