भारत में कोरोना वायरस की परीक्षण रिपोर्ट आने में लग रहा है समय, टेस्टिंग दर भी दूसरे देशों की तुलना में है काफी कम

कोरोना वायरस की एक जांच रिपोर्ट आने में चार घंटे से लेकर पांच दिन का समय लग रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है इतने दिनों तक ये लोग कहाँ रहेंगे जिनकी इस संक्रमण की जांच हुई है? अगर रिपोर्ट आने के बाद पता चला कि यह व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव है, तब उन लोगों को चिंहित करना मुश्किल होगा कि यह व्यक्ति किन-किन लोगों के संपर्क में रहा।

Neetu SinghNeetu Singh   27 March 2020 1:53 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
भारत में कोरोना वायरस की परीक्षण रिपोर्ट आने में लग रहा है समय, टेस्टिंग दर भी दूसरे देशों की तुलना में है काफी कम

भारत में कोरोना वायरस की अभी तक हुई जांचों की रिपोर्ट आने में वक़्त लग रहा है वहीं जो टेस्ट परीक्षण की दर चल रही है वो भी दूसरे देशों की तुलना में बहुत कम है।

एक सैम्पल की जांच रिपोर्ट आने में दिल्ली के एम्स में चार से पांच घंटे लग रहे हैं वहीं दूसरी लैब्स में ये रिपोर्ट आने में पांच दिन तक लग रहे हैं, इतने दिनों तक ये मरीज कहां और कैसे रहेंगे? इसका अभी तक कोई इंतजाम नहीं है। दूसरा रिपोर्ट आने से पहले तक जांच कराए लोगों को पता ही नहीं है कि वो इस वायरस से संक्रमित हैं या नहीं।

रिपोर्ट आने से पहले तक इनमें से हर एक व्यक्ति कई लोगों के संपर्क में आएगा। अगर रिपोर्ट में एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया तब उन लोगों को चिंहित करना और मुश्किल होगा जिनके-जिनके संपर्क में इस दौरान वह व्यक्ति रहा है। अगर जल्द ही इस समस्या पर गौर नहीं किया गया तो आने वाले समय में स्थिति और भयावह हो सकती है।

कोरोना वायरस के संक्रमण के सैम्पल की रिपोर्ट आने के 800-1,000 मामले पेंडिग में चल रहे हैं।

रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (आरडीए,एम्स) नई दिल्ली के जनरल सेक्रेटरी डॉ. श्रीनिवास राजकुमार ने गाँव कनेक्शन संवाददाता को फोन पर बताया, "अभी हमारी लैब्स में जितने भी टेस्टिंग के केसेज आ रहे हैं उसके लिए पर्याप्त किट हैं। इस समय की महत्वपूर्ण समस्या यह है कि टेस्टिंग रिपोर्ट दिल्ली एम्स में आने में न्यूनतम चार से पांच घंटे लगते हैं, जबकि दूसरी जगहों पर इस रिपोर्ट को आने में दो से पांच दिन तक लग रहे हैं क्योंकि इसकी प्रक्रिया थोड़ी जटिल है।"

डॉ श्रीनिवास जिस जांच रिपोर्ट को आने में चार पांच घंटे से लेकर पांच दिन का वक़्त बता रहे हैं वहीं जांच की रिपोर्ट साउथ कोरिया में एक घंटे के अन्दर मिल जाती है।

डॉ श्रीनिवास कहते हैं, "जब इस टेस्ट के परिणाम इतनी देर में आयेंगे ऐसे में मरीज कहां रहेगा? कितने लोगों को छुएगा क्योंकि उसे तो पता ही नहीं कि वो संक्रमित है या नहीं। इसलिए पहला प्रयास अभी यही जरूरी है कि टेस्टिंग की रिपोर्ट जितनी जल्दी से जल्दी आ सके उतने जल्दी इस माहमारी पर काबू पाया जा सकता है। अभी कुछ लैब्स में इन रिपोर्ट्स जांच की वेटिंग लिस्ट 800-1,000 है।"

भारत में कोरोना वायरस की कम जांच लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत ने इतने देर से टेस्ट क्यों शुरू किये? टेस्टिंग की संख्या इतनी कम क्यों हैं? विदेश से भारत 18 जनवरी से 23 मार्च तक 15 लाख लोग आये हैं, क्या इन सभी की जांच हुई है? अभी ये लोग क्या स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में हैं?

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित पहला मरीज जनवरी के आख़िरी सप्ताह में ही पता चल गया था फिर जाँच प्रक्रिया में इतनी लापरवाही क्यों बरती गयी? ऐसे कई सवालों के जबाब सरकार की तरफ से अभी तक नहीं मिल पाए हैं।

अगर बात इटली की करें तो 15 फरवरी को यहाँ कोरोना पॉजिटिव के सिर्फ तीन केस थे वहीं दक्षिण कोरिया में 28 थे। कोरिया में अब तक 9,037 पॉजिटिव मामले हैं और 129 लोगों की मौत हुई है, जो इटली से बहुत कम है। कोरिया ने ऐसा क्या किया जो इटली नहीं कर पाया? वो है ज्यादा से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग।

दक्षिण कोरिया में सबसे ज्यादा टेस्ट हुए हैं इस बात की दुनिया भर में सराहना हो रही है। यहाँ जब कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या दो अंको में पहुंचने वाली थी तब तक साउथ कोरिया ने हजारों टेस्टिंग किट तैयार कर ली थी। यहाँ 600 से ज्यादा जांच केंद्र बनाये गये हैं, अब तक तीन लाख से ज्यादा लोगों की जांच हो चुकी है।

अगर भारत में शुरुआती दौर की बात करें तो यहाँ 10 लाख लोगों पर केवल पांच से 10 लोगों के ही टेस्ट हुए वहीं दक्षिण कोरिया ने 10 लाख लोगों पर 4,000 टेस्ट किये। इस तुलना में भारत ने न के बराबर ही टेस्ट किये हैं। अगर जल्द ही भारत ने साउथ कोरिया की तरह टेस्टिंग संख्या नहीं बढ़ाई तो एक और इटली बनने में वक़्त नहीं लगेगा।

इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) का कहना है कि भारत में पहले उन्हीं लोगों के टेस्ट किये जा रहे थे जो कोरोना वायरस के ज्यादा असर वाले देशों से लौटे थे या फिर उन लोगों के जो कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के संपर्क में आये हों। इन लोगों में भी पहले उन लोगों की टेस्टिंग हुई जिन्हें सूखी खांसी, बुखार या सांस लेने में तकलीफ जैसे कोरोना के लक्षण थे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी यही कहा है कि भारत में केवल 21 दिन का लॉकडाउन समस्या का समाधान नहीं है। कोविड-19 से निपटने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच जरूरी है। कोरोना वायरस की भयावह स्थिति को देखते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की तरफ से 26 मार्च को कोरोना वायरस संक्रमण की जांच के लिए 35 निजी प्रयोगशालाओं को अनुमति दे दी है। इस जांच के लिए 4,500 रुपए निर्धारित किये गये हैं। इसके अलावा देश के 50 संस्थानों को सरकारी लैब में बदला गया है। सरकारी लैब में पहली और दूसरी जांच निशुल्क की जाएगी।

प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एम्स के पूर्व डॉक्टर डॉ हरजीत सिंह भट्टी का कहना है, "टेस्टिंग को लेकर जो कदम सरकार ने अब उठाये हैं वो बहुत पहले उठाने चाहिए थे। सरकार की तरफ से एक मिलियन टेस्टिंग किट्स आर्डर की गयी हैं वो कब तक आयेंगी?

"हम अभी एक ऐसी स्टेज में पहुंच गये हैं जहाँ पर हमें बुखार, सांस, कफ़ से पीड़ित मरीजों की भी टेस्टिंग करनी चाहिए चाहें वो छोटे क्लिनिक में आये हों या फिर बड़े अस्पताल में। जबतक बड़ी संख्या में टेस्ट नहीं होंगे, लोगों को आइसोलेट नहीं किया जाएगा तबतक ये चैन नहीं टूटेगी।" डॉ हरजीत सिंह ने कहा।

भारत ने 25 मार्च तक 25,144 लोगों में कोरोना वायरस का परीक्षण किया था जिसमें 649 पॉजिटिव केस पाए गये। वहीं अमेरिका में 94,514 लोगों का परीक्षण किया गया जिसमें 54,453 केस सकारात्मक थे। चीन में 3,20,000 लोगों के परीक्षण में 81,116 और इटली में 3,24,445 की जांच पर 74,386 कोरोना वायरस के संक्रमण के सकारात्मक केस मिले।

परीक्षण के इन आंकड़ों में किये गये जांच के आधार पर भारत में कोविड-19 के तीन प्रतिशत मामले सकारात्मक हैं जो दक्षिण कोरिया के बराबर हैं। जबकि संक्रमण के ये मामले अमेरिका से 58 प्रतिशत, चीन से 25 प्रतिशत और इटली से 23 प्रतिशत कम हैं।

अभी इण्डिया में टेस्टिंग किट्स को लेकर क्या इंतजाम हैं इस पर डॉ श्रीनिवास कहते हैं, "अभी अमेरिका की एक कम्पनी इम्पोर्टेड किट्स बना रही है जिसे मंगाने की प्रक्रिया चल रही है। इण्डिया की एक कम्पनी द्वारा बनाई गयी किट्स को अप्रूवल दे दिया गया है। अभी हाल ही में इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने प्राइवेट लैब्स को भी जांच की अनुमति दे दी है।"

"अभी टेस्टिंग का जो प्रोटोकॉल था उसे भी बदला गया है। अब अस्पताल स्टाफ और अस्पतालों में भर्ती वो मरीज जिनमें कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं उनकी भी जांच की जा रही है। लॉक डाउन इसीलिये किया गया है जिससे ये दूसरे लोगों में फैले नहीं। लॉक डाउन से यह बीमारी ख़त्म नहीं होगी बल्कि कम जरुर होगी," डॉ श्रीनिवास राजकुमार ने कहा।

दुनिया भर में कोविड-19 से पांच लाख से ज़्यादा लोग संक्रमित हो गये हैं वहीं मरने वालों की संख्या 23,000 के पार पहुंच चुकी है। भारत में इस वायरस से संक्रमित मरीज 700 से ज्यादा हो गये हैं, अब तक 17 लोगों की मौत हो चुकी है।

कोरोना से संक्रमित मामले में दक्षिण कोरिया आठवें नम्बर पर है। यहाँ न तो लॉक डाउन हुआ और न ही लोगों को घरों से निकलने में पाबंदी लगाई गयी। यहाँ सिर्फ जल्दी और ज्यादा संख्या में टेस्टिंग की गयी, तत्काल इलाज शुरू किया गया जिससे मौतें कम हुईं।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ भारत जहाँ एक सप्ताह में 5,000 लोगों के टेस्ट कर रहा है, वहीं अमरीका एक सप्ताह में 26 हज़ार और ब्रिटेन एक सप्ताह में 16 हज़ार लोगों के टेस्ट हो रहे हैं। दक्षिण कोरिया हर सप्ताह लगभग 80 हज़ार लोगों की टेस्टिंग कर रहा है वहीं जर्मनी में ये संख्या 42,000 है और इटली में लगभग 52,000 लोगों की टेस्टिंग की जा रही है।

केंद्र सरकार के संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए 22 मार्च को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर जनरल डॉ बलराम भार्गव ने कहा था कि भारत में प्रति सप्ताह 60 से 70 हज़ार लोगों की टेस्टिंग करने की क्षमता है।

डॉ हरजीत सिंह अपने सहयोगियों के साथ कोरोना वायरस की इस जंग में दे रहे अपना योगदान.

"सरकार नहीं मान रही है कि यहाँ भी कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो गया है, अगर न हुआ होता तो सरकार लॉक डाउन जैसा बड़ा कदम नहीं उठाती भले ही वो स्वीकार न कर रही हो ये एक अलग बात है।" डॉ हरजीत सिंह ने कहा।

आईसीएमआर ने हाल ही में अपनी एक रिसर्च के आंकड़े जारी किए थे जिसके मुताबिक़ सोशल डिस्टेंसिंग और सेल्फ क्वारेंटाइन को सख्ती से लिया गया तो 89 फीसदी तक कोरोना के मामलों में कमी आ सकती है।

"इस बीमारी का बचाव ही उपाय है। सभी लोग लॉक डाउन और सोशल डिसटेंसिंग का गम्भीरता से पालन करें। हमारे सुरक्षित रहने का यही एक मात्र उपाय है। हम खुद को शुक्रगुजार समझें कि बाकी देशों की तुलना में हमारे देश की काफी ठीक है," डॉ वेदप्रकाश ने बताया।

डॉ वेदप्रकाश लखनऊ में स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच को लेकर डॉ वेदप्रकाश कहते हैं, "अभी जांच के केसेज बढाए गये हैं, अभी हम उन मरीजों की भी जांच करा रहे हैं जिन्हें निमोनिया है। यूपी में अबतक 12,000 से ज्यादा टेस्ट कराए जा चुके हैं।"

"अभी हमारे पास पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन और दवाइयां नहीं हैं, ऐसे में लॉक डाउन ही इस वायरस से बचाव का एक मात्र उपाय है। जब तक लॉक डाउन रहेगा हो सकता है तब तक हमारे पास वो सभी सुविधाएं हो जायें जिनकी अभी कमी है। आप सब घरों में रहें जिससे हम आने वाले दिनों में इस वायरस से बढ़ने वाले मरीजों को रोक सकें," जनरल सेक्रेटरी डॉ. श्रीनिवास राजकुमार ने कहा।

कोरोना वायरस से संबंधित अधिक जानकारी के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय की वेबसाइट https://www.mohfw.gov.in/ पर जा सकते हैं।


   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.