मराठवाड़ा: किसानों पर दोहरी मार, लगातार बारिश से खेत में दोबारा जम गईं तैयार फसलें

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं मराठवाड़ा में होती है। 2015 से 2018 के बीच के महाराष्ट्र में 12021 किसानों के आत्महत्या की है। ये आंकड़े सामाजिक कार्यकर्ता शकील अहमद की आरटीआई के जवाब में खुद सरकार ने दिए हैं। औसतन रोज 8 किसान जान दी है। मराठवाड़ा में इस बार बारिश से हजारों एकड़ फसल चौपट हुई हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   31 Oct 2019 7:18 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

औरंगाबाद/नांदेड़/अकोला। "मराठवाड़ा के किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। जब जून-जुलाई में पानी चाहिए था जब बारिश नहीं हुई, जिससे बुवाई प्रभावित हुई। अब किसी तरह किसान ने थोड़ा बहुत बोया तो जो फसल थी वो अक्टूबर की 15 दिनों की बारिश में तबाह हो गई। मेरे बाप-दादा के जमाने में कभी इस महीने इतनी बारिश नहीं हुई थी।"

महाराष्ट्र में उस्मानाबाद के किसान अशोक पंवार, पिछले दिनों लगातार हो रही बारिश से नुकसान के बारे में बताते हैं। अशोक पंवार का गांव तालुका उमरगा के चिंचौली भुयार में है। महाराष्ट्र के ज्यादातर इलाके में अक्टूबर में थोड़ी बहुत बारिश का सिलसिला जारी रहा है। लेकिन चक्रवाती तूफान क्यार के चलते 16 अक्टूबर से शुरु हुई मूसलाधार बारिश ने किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

उस्मानाबाद, लातूर, नांदेड़, औरंगाबाद, बीड़, अकोला और शोलापुर में सोयाबीन, बाजारा, उड़द, कपास और मूंग कहीं-कहीं तूर की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। खरीफ की फसलें इन इलाकों में तैयार थीं बारिश शुरू हो गई, जिसके चलते हजारों किसानों की मूंग, उदड़ और सोयाबीन या तो खेत में सड़ गई या दोबारा उसमें अंकुरण हो गया।

नांदेड में अपने खेत में सोयाबीन की बची फसल उठाती महिलाएं। फोटो- मलंग शेख

ये भी पढ़ें- बुंदेलखंडः उड़द की बर्बादी से किसानों की दीवाली सूनी, पलायन को मजबूर

उस्मानाबाद से करीब पौने 300 किलोमीटर दूर औरंगाबाद में लोहा तालुका में भी किसानों के घर में दीवाली नहीं मनाई गई। पारंडु गांव के जाकिर जमीरुद्दीन शेख बताते हैं, "हमारे इलाके में किसानों पर मुसीबत टूट पड़ी है। बाजरा का 100 टका (फीसदी) नुकसान है तो कपास में 50 फीसदी नुकसान हुआ है। बाजरा तो ढेर लगे-लगे दोबारा जम गया है। हमारे इलाके में दाड़िम (अनार) और मोसंबी की बहुत खेती होती है, लेकिन इस पानी से अब उसमें अगले सीजन में फल नहीं आएंगे।"

तीन एकड़ और एक गुंठा जमीन के मालिक जाकिर ने पिछले सीजन में 3000-3500 रुपए प्रति टैंकर (20 हजार लीटर) का पानी खरीदकर मोसंबी की फसल बचाई थी। इस बार उनके खेत में बने 65 फीट गहरे कुएं 50 फीट तक पानी है। खेतों के आसपास भी बन बह रहा है, डैम भी भरे हैं, लेकिन जाकिर के मुताबिक बेमौसम इतना पानी भी किस काम का।जाकिर कहते हैं, "पिछले 10-15 सालों में मुझे याद नहीं एक साथ इतनी बारिश अक्टूबर में हुई हो। 2015 में यहां ठीक बारिश हुई थी। 2016-17 और 18 में तो भीषण सूखा पड़ा है। यही वजह है कि 2018 में 1076 किसानों ने औरंगाबाद में आत्महत्या की थी। इस बार तो दोहरी मार पड़ी है। इसका असर आगे भी दिखेगा, अगर सरकार ने यही तरीके से किसानों की मदद नहीं की तो किसान भूखे मर जाएगा।" अकोला में किसानों के खेतों से बाजरा बहते हुए वीडियो सोशल मीडिया में शेयर हुआ है।

मराठवाड़ा के उस्मानाबाद जिले में लगातार बारिश के बाद बाजरे की फसल में दोबारा हुआ अंकुरण, ऐसा ही कई फसलों के साथ हुआ। तस्वीर साभार- अशोक पंवार, किसान

नदियों और जलाशयों पर नजर रखने वाली अंतराष्ट्रीय संस्था साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम रिवर्स एंड पीपुल के कोर्डिनेटर हिमांशु ठाकुर फोन पर गांव कनेक्शन इसे किसानों के साथ त्रासदी बताते हैं।

"पानी की दृष्टि से बारिश ठीक है, लेकिन मराठवाड़ा के किसान का बहुत नुकसान हुआ है। आर्थिक रुप में किसान देश का सबसे कमजोर तबका है। जहां की खेती बारिश पर निर्भर है वहां किसानों की हालात और खराब है मराठवाड़ा का किसान सबसे बुरी हालत में है, वो (किसान) जब मुसीबत में हैं और उनके लिए कोई खड़ा नहीं होता तो ये देश के गंभीर समस्या है।"

हिमांशु ठाकुर का इशारा किसानों के बर्बाद फसलों की मुआवजे को लेकर है। किसानों की आत्महत्या के कुख्यात मराठवाड़ा में सरकारी उदासीनता और फसल बीमा कंपनियों की लापरवाही से किसान का दर्द और बढ़ गया है। महाराष्ट्र में पिछले दिनों ही चुनाव संपन्न हुए है, बीजेपी और शिवसेना में सरकार बनाने को लेकर बैठकों का दौर जारी है, लेकिन सरकार बनने में हो रही देरी किसानों पर भारी भी पड़ सकती है।

उस्मानाबाद के किसान अशोक पंवार कहते हैं, "महाराष्ट्र में ऐसी आपदाओं के बाद सरकार अनिवारी (गिरदावरी- नुकसान का जायजा) करवाती है। उसमें तहसीलदार, ग्राम सेवक और कृषि सहायक शामिल होता है। इनकी रिपोर्ट पर ही मुआवजा मिलता था, लेकिन इस बार कोई खेत तक अभी आया नहीं है, और बीमा कंपनी वाले भी फोन नहीं उठा रहे।"

अशोक पंवार अनिवारी (नुकसान का जायजा) की समिति में बीते कुछ समय से बीमा कंपनी को शामिल किए जाने पर ऐतराज जताते हैं। "महाराष्ट्र की अनिवारी व्यवस्था बहुत अच्छी है, लेकिन इसमें बीमा कंपनी के कर्मचारी, एजेंट को शामिल नहीं करना चाहिए क्योंकि वो क्यों चाहेगा किसान का भला हो।"

स्काईमेट के मौसम बुलेटिन के अनुसार चक्रवात तूफान महाराष्ट्र से काफी दूर पहुंच गया है, ये तूफान एक नवंबर के बाद अदन की खाड़ी यमन और ओमान के बीच कहीं लैंड कर सकता है। भारतीय मौसम विभाग ( IMD) के अनुसार अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र में सामान्य से 127 फीसदी अधिक बारिश हुई। वहीं अगर सिर्फ मराठवाड़ा की बात की जाए तो इस दौरान मराठवाड़ा के 8 जिलों में सामान्य से 217 फीसदी अधिक बारिश हुई। औरंगाबाद में सामान्य से 223, जालना में 323, पारभनी में 220, हिंगोली में 127, नांदेड़ में 171, लातूर में 163, ओस्मानाबाद में 193 और बीड में सामान्य से 294 फीसदी अधिक बारिश हुई। स्त्रोत- भारतीय मौसम विभाग (http://hydro.imd.gov.in)



बारिश के चलते नाशिक में अंगूर की अगैती फसल को भी नुकसान हुआ है। सटाणा तहसील में अजमानेे गांव में किसान संजू का 8 एकड़़ का अंगूर का तैयार बाग ढह गया। कई लाख के नुकसान से सदमे में आए इस किसान का वीडियो किसानों के कई व्हाट्सअप ग्रुप में शेयर हुआ है।

सोयाबीन की फसल को महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।

हिमांशु ठाकुर कहते हैं, "मौसम का बदलाव जलवायु परिवर्तन का असर कहा जा सकता है, लेकिन आप उसे कोई भी नाम दीजिए किसान के लिए ये झटका है।"

औरंगाबाद के किसान शोएब हाजीमिया शेख कहते हैं, "4 एकड़ बाजरा था, जो कटने के बाद मंडी जाने के इंतजार में था लेकिन पूरा दोबारा जम गया है। अब उसका एक रूपया नहीं मिलने वाला है। कपास में बहुत नुकसान हुआ है।"

मूंग, उडद या सोयाबीन की जो फली होती है, अगर वो एक बार भीगी और फिर धूप लगी तो कड़क हो जाती है। फिर नर्म-गर्म में वो फूट जाती है, जिससे पानी फली में चला जाता है, इसी के चलते उसमें अंकुरण हो गया है।

नांदेड जिले में पोकरभोसी गांव के किसान बली राम जती राम डांगी कहते हैं, "इस सीजन में हमारे पास ज्वार, सोयाबीन, हल्दी और कपास था, लेकिन सब बर्बाद हो गए। सरकार को चाहिए प्रधानमंत्री फसल बीमा का पूरा पैसा हमको दिलाए, नहीं तो हमारे बच्चे क्या खाएंगे।"

महाराष्ट्र में हाल ही विधानसभा चुनाव के चलते 40 दिन पहले लागू हुई आचार संहिता 25 अक्टूबर को खत्म हुई है। जिसके बाद दीवाली की छुट्टियां शुरु हो गई। किसानों को उम्मीद है बृहस्पतिवार से शायद उनके खेतों की तरफ कोई अधिकारी कर्मचारी सुध लेने आएगा।

ख़बर अपडेट हो रही है...

सहयोग- शेख मलंग, नांदेड., औरंगाबाद, जाकिर शेख, अकोला- पीयूष कांत


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.