बुंदेलखंडः उड़द की बर्बादी से किसानों की दीवाली सूनी, पलायन को मजबूर

घरों में लटकते ताले किसानों की बर्बादी की गवाही दे रहे हैं। सितंबर माह के अंत और अक्टूबर माह की शुरुआत में हुई अतिवृष्टि से किसानों की उड़द दाल की फसल बर्बाद हो गई और वे अब पलायन के लिए मजबूर हैं।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   30 Oct 2019 6:32 AM GMT

ललितपुर, बुंदेलखंड: दीपावली के कुछ रोज पहले शारदा सहरिया के घर से चार लोग मजदूरी करने परदेस निकल गए। शारदा सहरिया ललितपुर के महरौनी तहसील के अजान गांव की निवासी हैं और उन्होंने इस बार बहुत ही सूनी दीवाली मनाई।

शारदा कहती हैं, "मेरे पति तीन भाई हैं और हम तीन देवरानी-जेठानी, सास-ससुर और बच्चों को लेकर हमारा तेरह लोगों का परिवार है। हमारे पास चार एकड़ की खेती है लेकिन इस बार सब बर्बाद हो गया। अब घर के चार लोग परदेस में हैं। वह कुछ कमाकर लाएंगे तो ही गेहूँ की खेती संभव हो पाएगी।"

यह कहानी अकेले सिर्फ शारदा सहरिया की नहीं बल्कि बुंदेलखंड के सभी जिलों के किसानों की कहानी है। बुंदेलखंड में उड़द की फसल बर्बाद होने पर लगातार पलायन की स्थिति बढ़ रही है।

अतिवृष्टि के कारण बुंदेलखंड के किसानों की उड़द की खेती बर्बाद हो गई

घर की रखवाली के लिए गांवों में अब सिर्फ महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे बचे है। वहीं कई किसान अपने पूरे परिवार को लेकर पलायन कर गए हैं। उनके घरों में लटकते ताले किसानों की बर्बादी की गवाही दे रहे हैं। हालांकि इस बार किसान सूखे से नहीं बल्कि अधिक हुई बारिश से परेशान हैं। सितंबर माह के अंत और अक्टूबर माह की शुरुआत में हुई अतिवृष्टि से किसानों की उड़द दाल की फसल बर्बाद हो गई और वे अब पलायन के लिए मजबूर हैं।

बुंदेलखंड के प्रवास सोसाइटी के आंतरिक समिति की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड के जिलों में बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख 44 हजार 801, महोबा से दो लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख 17 हजार 489, उरई (जालौन) से पांच लाख 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख 58 हजार 377 व ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 लोग महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं।

ऑर्गेनाइजेश फॉर इकनामिक कॉपरेशन एंड डेलवमेंट (ओएसडीसी) की जुलाई 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले दो दशकों में सेल्फ एम्पलाई वर्कर कम हो रहे हैं जबकि कैजुअल वर्कर की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह साफ दर्शाता है कि गांवों में किसानों की संख्या कम हुई है जबकि शहरों में मजदूरों की संख्या बढ़ी है।

विश्व बैंक के मुताबिक भारत में लगभग एक करोड़ लोग हर साल शहर और कस्बों की तरफ रुख कर रहे हैं। विश्व बैंक ने इसे इस सदी का 'विशालतम ग्रामीण पलायन' भी कहा है। वहीं अगर बुंदेलखंड की बात की जाए तो नियोजन विभाग के आंकड़ों के अनुसार बुंदेलखंड के सात जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर से कम से कम 20 फीसदी आबादी हर साल पलायन करती है। इससे स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है।

बस स्टैंड पर पलायन की स्थिति को साफ महसूस किया जा सकता है

घर के दरवाजे पर बैठी शारदा सहरिया (24 वर्ष) कहती हैं, "दीवाली के इंतजार में कोई नही रूका। मुहल्ले में हर घर से लोग बाहर गए हैं। कई घरों में ताला लटक चुका है। मेरे घर से ही दो देवर, एक देवरानी और सास मजदूरी करने के लिए गए हैं। अगर मजदूरी को नही जाते तो खेत ऐसे ही पड़ी रहती और रबी की फसल नहीं हो पाती।"

पास में खड़े प्रताप के घर से भी चार लोग मजदूरी करने बाहर गए हुए हैं। बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अब प्रताप के कंधों पर है। दुःख जाहिर करते हुए प्रताप (60 वर्ष) कहते हैं, "पहले सूखे से मरे अब बसकारे (बरसात) से। उड़द में फफूदी लग गई, बीज तक नही निकला। उसी को देखकर बैठे रहेंगे तो आगे क्या खाएंगे।"

मुहल्ले में ताले लगे घरों को दिखाते हुए प्रताप आगे कहते हैं, "हमारे पास दीपावली के दीये खरीदने तक के पैसे नहीं हैं। खेत में बोने के लिए गेहूं के पांच दाने भी नहीं हैं, खाद-बिजली-पानी की बात छोड़ ही दीजिए। गांव से सैकड़ों लोग मजदूरी के लिए बाहर गए हुए हैं। अगर मजदूर वापस नही लौटे तो गेहूं की बुआई भी नही हो पाएगी।"

मनरेगा का जिक्र करते हुए प्रताप बताते हैं, "मनरेगा में दो पैसे की भी मजदूरी नहीं मिली। मनरेगा में ही काम मिला होता तो हमारे लोगों की दीवाली सूनी नहीं होती। हमारे लोगों को पलायन नही करना पड़ता। क्या करें साहब मजबूरी में मजदूरी करने जाना पड़ा, बच्चों को देखकर दुख होता हैं।"

प्रत्येक माह की एक तारीख को पंचायतों में रोजगार दिवस मनाने का प्रावधान है, जिससे मनरेगा मजदूर काम मांग सकें। लेकिन रोजगार दिवस मनाने में सरकारी कर्मचारी रूचि नही लेते। ऐसी स्थिति में कामगार मजदूर काम से वंचित रह जाते हैं और वे पलायन का रास्ता चुनते हैं। कामगारों के पलायन को रोकने में मनरेगा विफल साबित हो रहा है।

घरों पर लटकते ताले आसानी से देखे जा सकते हैं

मनरेगा की वेबसाइट के अनुसार ललितपुर जिले की 416 ग्राम पंचायतों में 1,69,712 जॉब कार्ड हैं, जिसमें से काम करने वाले एक लाख आठ हजार जॉब कार्ड एक्टिव हैं। वित्तीय वर्ष 2019-20 में इन जॉब कार्डों पर 21 लाख 98 हजार तीन सौ चार मानव दिवस का काम हुआ, जिसमें आठ लाख सात हजार उनसठ महिलायें शामिल हैं।

अजान गांव की ही की पार्वती अहिरवार (42 वर्ष) काम ना मिलने से बहुत परेशान हैं। उन्हें मजदूरी करके अपना कर्ज चुकता करना है, जो उन्होंने उड़द की फसल के लिए गांव के महाजन से ही उधार लिया था।

पार्वती अहिरवार (42 वर्ष) कहती हैं, "खेती ने धोखा दे दिया, गाँव में कोई मजदूरी नहीं हैं। अगर उर्दा (उड़द) फरा होता तो खेतों में मजदूरी मिल जाती। लेकिन उड़द निकली ही नहीं अब गाँव में कहाँ से मजदूरी मिलेगी। हमने जो कर्ज लिया था, वह महाजन वापिस माँग रहे हैं। अब हम कर्जा कहाँ से वापिस कर दें? महाजन से कहा है कि पति मजदूरी करने जा रहे हैं, कमा के वापिस कर देगें।"

ललितपुर जिले के कृषि विभाग के सितंबर के आंकड़े के अनुसार, जिले में 4.46827 लाख एकड़ की उड़द की फसल बर्बाद हो गई। गाँव की सुखवती (45 वर्ष) बताती हैं, "छोटे-छोटे बच्चे छोड़ गए। बहु-लड़का बाहर गये कमाने के लिए। उड़द तो काम के नही निकलें, पैसे भी हाथ में नही हैं। काहे से खेती करें, कहाँ से खाद-बीज खरीदें?"

इसी गाँव के हरिचरन (32 वर्ष) कहते हैं, "यहाँ के लोगो की दीवाली घर नहीं बाहर मनेगी। घर सूने रहेगे। यहां कुछ नही है तभी तो बाहर जा रहे हैं। वहां से मजदूरी करके ले आएंगे नहीं तो बच्चो को क्या खिलाएंगे?" इतना कहकर हरिचरन झोला उठाकर बस स्टैंड की तरफ बढ़ जाते हैं।

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