ग्राउंड रिपोर्ट: सीतापुर में 3 साल से संदिग्ध बुखार लगातार ले रहा है जान, 35 दिनों में एक ब्लॉक में 19 मौंते, 2000 हजार से ज्यादा बीमार

संदिग्ध बुखार से मौतों के मामले में क्या दूसरा मुजफ्फरपुर बनता जा रहा है यूपी का सीतापुर, पढ़िए क्या है गांवों के हालात

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   30 Aug 2019 10:55 AM GMT

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ग्राउंड रिपोर्ट:  सीतापुर में 3 साल से संदिग्ध बुखार लगातार ले रहा है जान, 35 दिनों में एक ब्लॉक में 19 मौंते, 2000 हजार से ज्यादा बीमार

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। बाइस साल के आशीष कुमार को घर वाले चारपाई पर उठाकर गाँव में लगाए गए सरकारी मेडिकल कैंप में ले गए तब उसका पूरा शरीर बुखार से तप रहा था। बेटे को छटपटाता देख मां गीले कपड़े से उसका शरीर पोछ रही थी। मेडिकल जांच में मलेरिया की पुष्टि होने के बाद आशीष के साथ उसके घरवालों की घबराहट बढ़ गई।

आशीष का परिवार इसलिए ज्यादा परेशान था, क्योंकि उनके गाँव में पिछले एक महीने में दो लोगों की संदिग्ध बुखार से मौत हो चुकी है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के गोंदलामऊ ब्लॉक में आशीष के गाँव पैरुआ व आसपास के कई गाँवों में पिछले एक माह में 19 लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि आशीष के गाँव पैरुआ में 50 से अधिक लोग अभी भी बुखार से पीड़ित हैं। जबकि सीतापुर जिले में अब तक 30 लोगों की मौतें हो चुकी हैं, और करीब 2000 लोग बुखार से पीड़ित हैं।

मुजफ्फरपुर में चमकी का कहर, असम जैसे कई राज्यों में बुखार से हुई मौतों के बाद बाद अब सीतापुर में जानलेवा बुखार से हुई मौतों को जो एक चीज जोड़ती है वो है चौपट ग्रामीण व्यवस्था, साफ-सफाई की अनदेखी और दूषित पेयजल। गाँवों में इसकी अनदेखी से हर साल हजारों लोग काल के गाल में समा रहे हैं।


ऐसे ही पिछले साल भी सीतापुर जिले के गोंदलामऊ ब्लॉक के कई गाँवों में बुखार से करीब 50 लोगों की मौत हो गई थी।

सीतापुर जिले के गोंदलामऊ में फैले जानलेवा बुखार से हो रहीं मौतें आइना हैं जर्जर हुई भारत की ग्रामीण व्यवस्था का? चाहे मुजफ्फरपुर में जानलेवा चमकी बुखार, या फिर असम जैसे कई राज्यों में बुखार सी हुई मौतें, इस सब के पीछे कारण एक जैसे हैं, गंदगी, गरीबी और आधारभूत सुविधाओं के साथ ही समय पर उचित चिकित्सीय सुविधाओं का ना मिल पाना।


बारिश के बाद इन गाँवों में बुखार से हो रहीं मौतों के कारणों के बारे में गोंदलामऊ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. धीरज मिश्र ने कहा, "पिछले करीब एक महीने में 19 लोगों की मौत हुई है, जबकि 100 के आसपास में मलेरिया की पुष्टि हुई, 35 लोगों को टॉयफाइड (मियादी बुखार) हुआ है," इसके बाद गाँवों की मुख्य समस्या के बारे में कहा, "पूरे इलाके में गंदगी की भरमार है, मच्छर और गंदगी बीमारियों की वजह।"

पिछले तीन सालों से गोंदलामऊ ब्लॉक के इन गाँवों में ऐसे ही बुखार लोगों की ज़िंदगियां लील रहा है। गाँव कनेक्शन रिपोर्टर ने जब गाँव में पहुंच के हालात देखे तो जलभराव, नालियां टूटी हुईं, जलभराव और हैंडपंप के किनारे भरा गंदा पानी स्थिति को और भयावह बना रहे थे।

"ज्यादातर मरीज उन्हीं गाँवों से आ रहे हैं, जहां पिछले साल भी बीमारी फैली थी। मलेरिया मच्छर से होता है, और ये गंदे पानी में पनपता है। टाइफाइड दूषित पानी पीने से होता है। यही सब कारण हैं," डॉ मिश्र ने आगे कहा।


केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में देशभर में मलेरिया के 11 लाख दो हजार दो सौ पांच 11,02,205 मामले सामने आए थे, जो आंकड़ा वर्ष 2015 में घटकर 10,05,905 हुआ, लेकिन 2016 में यह संख्या फिर बढ़कर 11, 69,261 हो गई।

एक तरफ गाँवों में बुखार लोगों की ज़िंदगियां छीन रहा है, दूसरे जिला प्रशासन खत-ओ-किताबत में व्यस्त है। "हमारी टीम ने लगातार जिले के अधिकारियों को पत्र लिखे हैं। इन दिनों रोजाना की रिपोर्ट एसडीएम के माध्यम से सरकार को भी भेजी जा रही है, लेकिन वैसा काम नहीं हुआ," सीएमएस डॉ. मिश्र ने बताया।

गाँव में पसरी गंदगी पर पैरुआ गाँव के पास के ही गाँव सैदपुर में रहने वाली सरोज देवी (45 वर्ष) कहती हैं, "मेरे बेटे को एक हफ्ते से बुखार है। सरकारी अस्पताल से दवा लाए हैं, लेकिन फायदा नहीं हुआ। गाँव में गंदगी बहुत है, न मच्छर मारने वाला (फॉगिंग) कोई आता है, न साफ-सफाई के लिए।

बात गाँव में साफ-सफाई की आए तो सफाईकर्मी का काम अहम हो जाता है। लेकिन पैरुआ गाँव सहित अन्य गाँवों में सफाईकर्मी काफी दिनों से आए ही नहीं था। सरकार सफाईकर्मियों को 22 हजार रुपए सैलरी देती है।


यहीं नहीं, हर ग्राम पंचायत में ग्रामीण स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति (वीएचएसएनसी) भी होती है, जिसका काम होता है मानसून से पहले गाँव की साफ-सफाई कराना। इसका बजट भी 10 हजार रुपए है।

पैरुआ गाँव में रहने वाले रामविलास गाँव में फैले संक्रामक रोग के लिए ग्राम प्रधान सुशील कुमार को दोषी मानते हैं। रामविलास ने कहते हैं, "प्रधान से इस बारे में कई बार कहा गया, लेकिन प्रधान को कोई परवाह नहीं। प्रधान गाँव में रहते ही नहीं हैं। सीतापुर शहर में मकान बनाकर वहीं रहते हैं। महीने में एक-दो बार आ जाते हैं। अब हम लोग अपनी समस्या किससे कहने जाएं।"

लखनऊ मंडल के अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण डॉक्टर विकास सिंघल ने टीम के साथ संक्रामक बीमारियों की गिरफ्त में इन गाँवों का दौरा किया और प्रधानों को फटकार भी लगाई। डॉ. एसके कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ज्यादातर गाँव गंदगी से पटे पड़े हैं। सफाई कर्मचारियों व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को गाँवों में सफाई और दवा छिड़काव के निर्देश दिए गए हैं।"

वर्ष 2018 में बुखार से मौतों के बाद 'गाँव कनेक्शन' सीतापुर के गोंदलामऊ ब्लॉक् के कई गाँवों का दौरा किया था, तो उस वक्त भी सीएमओ डॉ. राजकुमार नैय्यर जिले में तैनात थे, और उन्होंने फैले बुखार के लिए गाँवों में गंदगी को ही बड़ी समस्या बताया था।

ठीक एक साल बाद वर्ष 2019 में भी गाँवों में फैले जानलेवा बुखार के बारे में उन्होंने कहा, "जिले में संक्रामक बीमारियों का काफी प्रकोप है। कई गाँवों में मलेरिया के मरीज मिले हैं। संदिग्ध मरीजों की जांच स्लाइड से कराई जा रही है। मच्छरों को मारने के लिए डीडीटी का स्प्रे भी कराया जा रहा है। ग्रामीणों को अपने आस-पास साफ-सफाई रखने के निर्देश दिए गए हैं," आगे बताया, "ये जो मामले सामने आ रहे हैं उनकी अलग-अलग वजहें हैं। मलेरिया से अभी तक किसी की मौत नहीं हुई है।"


उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 70 किमी दूर सीतापुर जिले के इन गाँवों में यह तीसरा साल है जब बुखार लोगों की ज़िंदगियां छीन रहा है। पिछले वर्ष बुखार से 19 मौतों के बाद भी जिलाधिकारी ने गाँव पहुंच कर हकीकत देखना जरूरी नहीं समझा। सीतापुर के जिलाधिकारी अखिलेश तिवारी के सीयूजी नंबर पर बात करने की कई बार कोशिश की गई लेकिन फोन नहीं उठा।

इन गाँवों में ग्राम प्रधानों की लापरवाही से फैल रही गंदगी के बारे में जिला पंचायती राज अधिकारी इंदर नारायण सिंह ने बताया, "कई प्रधान साफ-सफाई में लापरवाही कर रहे हैं। हम लोग टीमें बनाकर गाँवों का दौरा कर रहे हैं, लापरवाह प्रधानों की लिस्ट बनाई जा रही है, इन पर कार्रवाई की जाएगी।"

पैरुआ गाँव के केसन पासवान अपने परिवार के एक मात्र कमाने वाले थे, लेकिन छह अगस्त को उनकी मौत हो गई। परिवार में पीछे पत्नी और तीन बच्चे हैं, जिनमें एक दिव्यांग है। सबसे बड़ी पिंकी (12 वर्ष) पिता की पासपोर्ट साइज फोटो जो उन्होंने राशनकार्ड के लिए खिंचवाई थी, दिखाते हुए कहा, "पापा को अचानक तेज बुखार आया, उनकी सांसे तेज चल रही थीं, उन्हें लेकर सीतापुर गए तो डॉक्टरों ने कहा लखनऊ ले जाओ, लेकिन रास्ते में मौत हो गई।' पिंकी अब स्कूल नहीं जाएगी, "स्कूल जाऊंगी तो घर का काम कौन करेगा?"

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