'इस साल बच्चा लोग मरा, अगले साल भी मरेगा, लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला'

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   15 Jun 2019 2:50 PM GMT

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मुजफ्फरपुर (बिहार)। हर साल बच्चों को मौत की नींद सुलाने वाली बीमारी अभी भी डॉक्टर और जांच एजेंसियों के लिए एक पहेली बनी हुई है। हर साल बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य महकमा हाय तौबा मचाता है, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही साबित होते हैं।

केजरीवाल अस्पताल में अपनी बेटी का इलाज करा रहे वैशाली के रहने वाले सुरेश सहानी (44वर्ष) स्वास्थ्य विभाग और सरकार के खिलाफ गुस्सा है। बेटी की तबीयत कैसी है पूछने पर तमतमा के कहते हैं," अब क्या बताऊं, कैसी है। यहां बच्चे मर रहे हैं लेकिन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क क्यों पड़ेगा, आखिर उनके बच्चों की मौत थोड़े न हो रही है। इस साल बच्चा लोग मरा है, अगले साल भी मरेगा, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।"

संदिग्ध बुखार से मारने वाले बच्चों की संख्या 70 पहुंच चुकी है। 200 से अधिक बच्चों का इलाज विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है। हर साल बच्चे मर रहे हैं लेकिन मरीजों को पुख्ता इलाज मयस्सर नहीं हो रहा है।

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मुजफ्फरपुर के रहने वाले राजेश शाही (55वर्ष) ने बताया, "करीब एक दशक से हमारे यहां यही हाल है। गर्मी के मौसम में बच्चे मरते हैं, कुछ दिन लोग हो-हल्ला मचाते हैं फिर बारिश होते ही सब ठंडे हो जाते हैं। हर साल पुणे की एक जांच टीम नेशनल काउंसिल ऑफ डिजीज कंट्रोल आती है, कुछ दिन रहकर चली जाती है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलता है। आखिर इन बच्चों के मौत का सिलसिला कब थमेगा।"

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केंद्रीय टीम भी बुखार का नहीं लगा सकी पता

बुखार से पीड़ित बच्चों की जांच के लिए केंद्रीय टीम के लिए भी यह बीमारी अबूझ पहेली बनी हुई है। राष्ट्रीय बाल कल्याण कार्यक्रम के सलाहकार डॉ अरुण सिन्हा ने मीडिया को बताया, "यह ब्रेन टिश्यू से संबंधित मामला लग रहा है। आखिर यह बीमारी क्या है इसपर अध्ययन की जरूरत है। अभी तक बीमारी के लक्षणों के आधार पर इलाज किया जा रहा है।"

लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक जांच एजेंसी इस बीमारी का अध्ययन करेगी? कब पुख्ता इलाज बच्चों को मिलेगा? कब थमेगा बच्चों के मौत का सिलसिला?

गुरुवार को बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे से मुलाकात की। अश्वनी चौबे ने कहा" इस संदिग्ध बुखार को पहले से नियंत्रित कर लिया गया है। वर्ष 2014 में ऐसी परेशानी थी लेकिन इसे काबू में पा लिया गया है।"


मंत्री के इस बयान पर भी सवाल खड़े होते हैं, आखिर 2014 में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत होने के बाद भी सरकारें क्या कर रही थीं? इस मुसीबत से लड़ने की क्या तैयारी थी। शायद इन सवालों का जवाब किसी के पास न हो। क्योंकि मरने वाले बच्चे किसी मंत्री, किसी अधिकारी या किसी व्यापारी के नहीं हैं।

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