छत्तीसगढ़ के इस गांव में स्कूल तो हैं पर शिक्षक नहीं, बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई

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छत्तीसगढ़ के इस गांव में स्कूल तो हैं पर शिक्षक नहीं, बच्चों ने छोड़ी पढ़ाईबरपटिया गांव में प्राथमिक कक्षा के ये बच्चे पास होकर माध्यमिक विद्यालय तो पहुंचेंगे पर वहां उन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं हैं।

सूरजपुर, छत्तीसगढ़

सूरजपूर जिले के बरपटिया गांव के शासकीय माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे अजीब सी उलझन में हैं। उन्होंने स्कूल में दाखिला तो ले लिया और पढने की चाह भी रखते हैं लेकिन उनके स्कूल में इस सत्र में कोई शिक्षक ही नहीं है। जून से कोई शिक्षक न होने की वजह से छठी, सातवीं और आठवीं में पढने वाले कुल पांच बच्चों ने स्कूल में आना ही छोड़ दिया।

यह मुद्दा अहम इसलिए है क्योंकि 800 की जनसंख्या और 70 स्कूली बच्चों वाला यह गांव छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा के विधानसभा चुनाव क्षेत्र में पड़ता है। छत्तीसगढ़ में बहुत जल्द विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।


बरपटिया गांव में दो प्राथमिक और एक माध्यमिक विद्यालय है। पिछले साल दोनों प्राथमिक स्कूलों में पांचवी में 11 बच्चे पढ़ रहे थे। उनमें से सिर्फ एक ने इस साल छठी में दखिला लिया है, जो इस गांव का रहने वाला है भी नहीं। बाकी बच्चे कहां गए हैं? क्या कर रहे हैं? किसी को कोई खबर नहीं है। एक और गौर करने वाली बात यह है कि इनमें दो छात्राएं- कुमारी मोहर मनिया और कुमारी निराशो विलुप्त होते हुए पंडो समुदाय की हैं जिसको राष्ट्रपति ने गोद लिया हुआ है। इन दोनों ने स्कूल में शिक्षक न होने की वजह से ही पढ़ाई छोड़ दी है।

प्राथमिक स्कूल में भी एक ही शिक्षक है जो पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। पढ़ाने के अलावा एक शिक्षक को बाकी के सारे काम जैसे स्कूल की देख-रेख से लेकर दाखिला प्रक्रिया, चुनाव प्रक्रिया में ड्यूटी निभाने तक के काम करने पड़ते हैं। "अगर माध्यमिक स्कूल में शिक्षक ही नहीं हैं और बच्चे स्कूल ही नहीं जा रहे हैं तो हमारी भी सारी मेहनत व्यर्थ जा रही है," गांव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक लोचन कुमार आरमो कहते हैं।

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शिक्षक न होने की वजह से अभिभावकों को मजबूरी में अपने बच्चों को दूसरे गांवों के स्कूलों में भेजना पड़ रहा है। एक अभिभावक मुनदेव आयाम को अपने बेटे जीत सिंह आयाम का नाम स्कूल से कटवाना है लेकिन कोई शिक्षक न होने की वजह से वह ये भी नहीं कर पा रहे हैं। "रोज़ स्कूल का चपरासी घर आकर बताता है कि बच्चों को स्कूल भेजो कोई शिक्षक आएगा लेकिन यह चार महीनों से चल रहा है। मेरे बच्चे का भविष्य ख़राब हो रहा है," मुनदेव ने बताया।

हालात इतने खराब हैं कि बरपटिया गांव के पंच के बेटे गोरेलाल मरावी की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है फिर भी उन्हें अपने बच्चे को दूर के गांव रामकोला में पढ़ने के लिए भेजना पड़ा। सरपंच बुधमनिया का कहना है, "शिक्षक न होने की वजह से हमारे गांव के बच्चों का भविष्य खतरे में है। हमने बहुत बार यह मुद्दा ग्राम पंचायत में उठाया, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी को भी सूचना है, संकुल प्रमुख को भी पता है लेकिन क्या हम लोग आदिवासी होने की सजा भुगत रहे हैं?"

सरपंच ने यह भी बताया कि कुछ दिन पहले ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने गांव का दौरा कर आश्वासन दिया है कि कुछ दिनों में यहां शिक्षक की नियुक्ति हो जाएगी | लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई है|

सूरजपुर के कलेक्टर के.सी देव सेनापति से संपर्क नहीं हो पाया। बहुत जल्द राज्य में चुनाव प्रचार शुरू हो जाएगा जिसमें बड़े-बड़े दावे और वादे किए जाएंगे। प्रदेश में एक ही पार्टी की पिछले पंद्रह साल से सरकार है लेकिन आदिवासी गांवों में शिक्षा का हाल बेहाल है। सरकार को इन बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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(स्वाति सुभेदार अहमदाबाद से हैं, कई बड़े मीडिया संस्थानों के साथ जुड़ी रही हैं, फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार हैं।)


     

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